Tuesday 7 April 2020

एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए


जनाबे जॉन एलिया साब की एक गज़ल आज के इस दौर पर कितनी सटीक बैठती है आप ही देख लीजिये इस गजल के चंद शेर-

ऐश-ए-उम्मीद   ही   से   ख़तरा   है
दिल  को  अब  दिल-ही  से  ख़तरा  है

जिस के   आग़ोश   का   हूँ   दीवाना
उस के   आग़ोश   ही   से   ख़तरा   है

है  अजब  कुछ  मोआ'मला  दरपेश
अक़्ल  को   आग ही   से  ख़तरा  है
  
शहर-ए-ग़द्दार  जान  ले  कि  तुझे
एक   अमरोहवी   से   ख़तरा   है

आसमानों  में   है   ख़ुदा   तन्हा
और  हर  आदमी  से   ख़तरा   है

अब  नहीं  कोई   बात   ख़तरे  की
अब सभी  को  सभी  से  ख़तरा  है




कोरोना जैसी महामारी के बारे में अब तक आपने खूब पढ़ लिया होगा और खूब ही जान लिया होगा। इस वक्त तक जब मैं ये लिख रहा हूँ; भारत में 4908 मामले और 137 मौते हो चुकी है।  इसमें कोई संदेह नहीं की बहुत सारे लोग ठीक भी हुए हैं; अब तक भारत में 382 लोग रिकवरी कर चुके हैं।  लेकिन इसके रोकथाम के सन्दर्भ में जाने-अनजाने में हमसे बहुत बड़ी गलतियां हो रही है। और ये गलतियां मैंने अपने अनुभव से जाना है। ये वो गलतियां है जो हर कहीं लिखी या सुनाई नहीं जा रही है।  गलतियाँ जो आमतौर पर हम कर रहे हैं वो ये कि--
1. रुमाल और मास्क में मास्क को ही चुने- बहुत से लोग मास्क की बजाय रुमाल बाँध लेते हैं। ये सही है कि रूमाल मास्क जैसा काम करती है लेकिन हम वही रुमाल हमारे कमरे तक ले जाते हैं, वही रुमाल बिस्तर पर डाल देते हैं, बहार से आते ही हम हाथ तो धो लेते है लेकिन उसी रुमाल से हाथ पूंछ लेते हैं।  बहुत से लोग वही रुमाल अपनी माँ या पत्नी से धुलाते हैं जिससे खतरा बढ़ जाता है।
2. हजामत ना करवाएं- वैसे तो सैलून या ब्यूटी पार्लर जैसी दुकाने बंद हैं लेकिन फिर भी नाई  (जाती सूचक शब्द ना समझा जावे)  का काम करने वाले घरों में जा-जा कर काम कर रहे हैं।  ऐसे काम करने वाले व्यक्ति सबसे ज्यादा संक्रमित हो सकते हैं क्यूंकि ये एक ऐसा काम है जिसे दूरी बनाकर नहीं किया जा सकता। इसलिए इनसे काम ना करवाएं ये आप और आपके नाई की सुरक्षा के लिए बेहतर होगा।  दाड़ी या केश बढा लो कुछ दिन- हो सकता है ये आपके रूप को ओर बेहतर बना दे।
3. गम्भीरता से लेने की जरूरत- सुरक्षा ही इलाज़ है, लॉकडाउन का सख्ती से पालन करें (हमें आने वाले 2 महीनों तक इसी लॉकडाउन की बहुत सख्त जरूरत है)  बहादुरी दिखाने की जरूरत नहीं है। जो भी लॉकडाउन का पालन नहीं करता है वो देशद्रोही ही नहीं वरन सम्पूर्ण वैश्विक सभ्यताद्रोही है। खुद को घर के कामों में, रसोईघर में, गार्डनिंग में या मनोरंजन में व्यस्त रखें। एक डॉक्टर के अंदाजे के मुताबिक भारत में यह आगे आने वाले अप्रेल-मई के दिनों में 1.5- 2 लाख लोगों को प्रभावित कर सकती है।
घबराएँ नहीं ये खुद को खुद तक ले जाने का सही समय है।

आइये अब ले चलता हूँ साहित्यिक रसपान यानि मेरी नई रचना की तरफ़-

एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 


गलियाँ   जो   बनी   थी   सूनी  रहने    के    लिए
क्योंकर   किया   आबाद   एक   दफ़े   के    लिए

तुम तो क्या, कोई भी तो किसी का सानी नहीं है
खींचा दम तैयार है मगर दूर तक  जाने के  लिए

ए   मेरी  ज़िंदगी   की   आबो-हवा  पास  तो  आ
अब  तो  एक  ही  साँस   है  बाकी मरने के  लिए

तू  उस  कफ़स  से   छुटा   कर   आ   सकती है
मैं  भी  बैताब  हूँ  मेरे  कफ़स  में  लाने के लिए

नज़र   ही   क्या   बुरी  होती  हम  पर   उनकी
एक    सांस   ही   काफ़ी   है   मारने   के  लिए

बे-रूहों   में,   है    किस   बख़्त    की   बेवफ़ाई?
तुम   ना   मिलते   सिर्फ़     मिलने    के   लिए

अंदर शोर  मचाया गले  मिलने  को  किसी  ने
गला हद्द तक उतर  आया  बन्द  होने  के लिए

हर दुकाँ बन्द है आँखों  की  तरह  नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े  से  कर्ज़े   के  लिए


- Rohit