Friday, 1 January 2021

समानता २

taken from Google image 




















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मुझे रिवाजों का हवाला ना दें 
मुझे अंधेरों वाली मशालें ना दें 
एक जुर्म जिसे दुनिया का हर एक 
आदमी रिवाजों के हवाले से करता हो- तो 
मैं पूछता हूँ क्या वो जुर्म; जुर्म नहीं रहता 
मैं कहता हूँ विवाह एक जुर्म है 
इस जुर्म की सज़ा क्यूँ नहीं 
हर बार डोली में चहकती-चीखती चिड़िया ही क्यों?
बेटी को बाप से अलग करना जुर्म है 
माँ के घर बेटी का मेहमां हो जाना जुर्म है 
घर को उसका अपना घर न होने देना जुर्म है 
जबरदस्ती का अन्यत्र समायोजन जुर्म है 
पली बडी लडकी पर अधिकार करना 
घिनोना ही नहीं जुर्म है

तो फिर दुनियां कैसे बढ़ेगी?
सवाल का जवाब रिवाजों के हवाले से क्यों सोचें 
सोचें कि प्रजनन और प्यार दोनों अलग विषय हैं 
हर बार के विवाह में प्यार की सुविधा नहीं 
हर बार के विवाह में प्रजनन की सुविधा है
आप अपनी पशुता को पशुता क्यों नहीं मानते  
मैं पूछता हूँ ये जुर्म नहीं तो क्या है? 

पूछना चाहोगे कि विवाह की रस्म कैसे हो?
मैं कहता हूँ मानसिक तैयारी जरूरी है
ये जो जुर्म है उसे कबूल करना जरूरी है 
रस्मो-रिवाज में घुन लग गये ये मानना जरूरी है  
सवाल-जवाब के खातिर आमने-सामने होना जरूरी है
अइयो मिलने मैं मिल जाऊंगा जिंदगी में से जहर फांकते हुए 
अंधेरों में तीर चलाते हुए 
मुझे रिवाजों का हवाला ना दें 
मुझे अंधेरों वाली मशालें ना दें. 

-ROHIT