tag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post4010094560116178244..comments2024-03-06T00:34:13.109+05:30Comments on Rohitas Ghorela: लोकतंत्र Rohitas Ghorelahttp://www.blogger.com/profile/02550123629120698541noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-53005295200269193912020-03-23T14:31:21.907+05:302020-03-23T14:31:21.907+05:30गगन जी,
कविता ने अपना काम कर दिया,
इस मायने में कि...गगन जी,<br />कविता ने अपना काम कर दिया,<br />इस मायने में कि खानापूर्ति करने वाले ये समझ पाएं कि जो ये लोकतंत्र है वो हकीकत में राजतंत्र का सुधारा गया रूप है।<br />नियत तब बदलती है जब हम इसे दिशा देना चाहें।<br />अगर इस रचना ने दो जनों का भी शीशा साफ किया है तो मेरा लिखना सफ़ल है।<br />बाकी व्यक्तिगत तौर पर हम लगे हुए हैं।<br /><br />कोटि कोटि आभार।Rohitas Ghorelahttps://www.blogger.com/profile/02550123629120698541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-711444623864770782020-03-23T10:59:03.721+05:302020-03-23T10:59:03.721+05:30आपके आक्रोश की यहां सब ने प्रशंसा तो की है ! पर उस...आपके आक्रोश की यहां सब ने प्रशंसा तो की है ! पर उसमें ज्यादातर खानापूर्तियां हैं ! हल कहां निकला किसी बात का ! वह तो वहीं की वहीं ही रही ! कुछ तो ऐसा हो जो ठोस हो ! जिसकी आवाज बहरे कानों तक पहुंचे ! अवाम को कोई ''ग्रांटेड'' ना ले सके ! गगन शर्मा, कुछ अलग साhttps://www.blogger.com/profile/04702454507301841260noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-19010497455644015692020-03-17T22:50:35.787+05:302020-03-17T22:50:35.787+05:30प्रिय रोहित , पाश के पाठक और प्रशंसक हो और उन...प्रिय रोहित , पाश के पाठक और प्रशंसक हो और उन्हीं जैसी शैली और आक्रोश की झलक आपके लेखन में मिलती है | पाश कहते हैं सबसे खतरनाक है मुर्दे का शांति से मर जाना और हमारे सपनों का मर जाना | लोकतंत्र के नाम पर वंशवाद को पोषित करते जनता जनार्दन के रूप में हम वही कर रहे हैं | हमारी शक्तियाँ क्षीण हो चुकी हैं हम भ्रष्टाचार के अभ्यस्त हो चुके हैं | न्याय, समानता और अधिकार की अमर मांग चलती रही है और भविष्य में भी चलती रहेंगी | सत्ताएं आती हैं आती रहेंगी | | अच्छा -बुरा कैसा भी तरीका हो पक्ष को विपक्ष गिराने की कोशिश में लगा है | नैतिकता ताक पर टंगी है | समसामयिक रचना जो मौजूदा व्यवस्था की पोल खोलती नये प्रश्न उठाने में सक्षम है ये लेखनी यूँ चलती रहे | हार्दिक शुभकामनाएं | | रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-54128579159041290482020-02-09T00:44:17.136+05:302020-02-09T00:44:17.136+05:30सार्थक और चिन्तन करने योग्य रचना, शुभकामनाएँ. सार्थक और चिन्तन करने योग्य रचना, शुभकामनाएँ. डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/11843520274673861886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-25397742816652558842020-02-07T06:53:36.857+05:302020-02-07T06:53:36.857+05:30हम पहले से ही नितारे गए लोग हैं- बहुत सही कथ्य। बध...हम पहले से ही नितारे गए लोग हैं- बहुत सही कथ्य। बधाई और आभार।विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-79037583970306867872020-02-05T17:01:12.089+05:302020-02-05T17:01:12.089+05:30नए बिम्ब लेकर आम नागरिक के यथार्थ को खूबसूरती से श...नए बिम्ब लेकर आम नागरिक के यथार्थ को खूबसूरती से शब्दांकित किया है। अब पहले से उत्पाद भी कहाँ हैं, सड़े गले वही प्रोडक्ट, बदलती हुई आकर्षक पैकिंग, न चाह कर भी खुश होने की आदत सी बन गई है। अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)https://www.blogger.com/profile/11022098234559888734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-2538382273434927982020-02-04T15:23:32.329+05:302020-02-04T15:23:32.329+05:30सच, सार्थक सटीक लेखन सच, सार्थक सटीक लेखन Rewa Tibrewalhttps://www.blogger.com/profile/06289019678581015004noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-809426189264571532020-02-04T09:34:53.412+05:302020-02-04T09:34:53.412+05:30बहुत सही और सटीक लिखा आपने 👍बहुत सही और सटीक लिखा आपने 👍सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-72937688145910039502020-02-03T16:11:00.244+05:302020-02-03T16:11:00.244+05:30वाह! लोकतंत्र और राजतंत्र दोनों मिलकर लगभग वंशवाद ...वाह! लोकतंत्र और राजतंत्र दोनों मिलकर लगभग वंशवाद की ओर अग्रसर होता नजर आ रहा है।चाचा या भतीजा।किसी भी तरह तो तंत्र किसी वंश को ही हासिल होता है। और तंत्र के प्रति उनका नजरिया भी वैसे ही होता है।गरीबों की ओर से उन्हें गालियाँ क्यो मिलेगी ।उनका मुँह तो छोटी-छोटी सुविधाएँ प्रदान कर बंद कर दिया जाता है।SUJATA PRIYEhttps://www.blogger.com/profile/04317190675625593228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-54507140699786504702020-02-03T10:55:31.373+05:302020-02-03T10:55:31.373+05:30. बिल्कुल सही कहा राजतंत्र और लोकतंत्र सब बराबर ही.... बिल्कुल सही कहा राजतंत्र और लोकतंत्र सब बराबर ही हो गए हैं अब तो कुछ और ही तंत्र चल रहा है जिसकी लाठी उसकी भैंस तंत्र आज चाचा बैठे हैं तो कल यकीनन उनकी जगह पर भतीजा ही बैठेगा यह पंक्तियां बहुत बड़े सच को दर्शा रही है.... वर्तमान परिस्थितियों पर कविताएं पढ़ना अच्छा लगता है बहुत ही अच्छा लिखा आपने शुभकामनाएंAnita Laguri "Anu"https://www.blogger.com/profile/10443289286854259391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-85339238468830222192020-02-03T01:57:37.999+05:302020-02-03T01:57:37.999+05:30हमारी ही स्वीकृति से
जो लोग हुकूमत के मद्द में
अन्...हमारी ही स्वीकृति से<br />जो लोग हुकूमत के मद्द में<br />अन्नदाता या सर्वज्ञ बन गए<br />उनकी असलियत इतनी ही है कि<br />इनको गरीबों की गलियां नहीं मिलती;<br /><br />और गरीब उनके गिरेबान को जकड़ नहीं सकते<br /><br />दर्द में जीना मजबूरी है<br /><br />सामयिक सार्थक लेखनविभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-9222192182937938422020-02-02T22:49:13.923+05:302020-02-02T22:49:13.923+05:30बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सटीक सृजन।बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सटीक सृजन।Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-74503626838043261132020-02-02T18:57:20.135+05:302020-02-02T18:57:20.135+05:30हाँ...ऐसा तो है हीं...राजतंत्र और लोकतंत्र की सीमा...हाँ...ऐसा तो है हीं...राजतंत्र और लोकतंत्र की सीमायें अब पहचानी नहीं जाती...के कौन कहाँ से शुरू होती है और कौन कहाँ पे ख़त्म I बढ़िया रचना INeeraj Kumarhttps://www.blogger.com/profile/18211543969289797190noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-44724065762571821202020-02-02T11:40:23.421+05:302020-02-02T11:40:23.421+05:30बहुत सुंदर और सार्थक रचना 👌👌बहुत सुंदर और सार्थक रचना 👌👌Anuradha chauhanhttps://www.blogger.com/profile/14209932935438089017noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-50228101717382219522020-02-02T10:53:47.264+05:302020-02-02T10:53:47.264+05:30कटु यथार्थवादी सशक्त लेखन कटु यथार्थवादी सशक्त लेखन Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-21789956033171669932020-02-02T07:55:51.585+05:302020-02-02T07:55:51.585+05:30हम जो है इस तंत्र के बँटे हुये लोग
हमारी प्रबुद्ध...हम जो है इस तंत्र के बँटे हुये लोग <br />हमारी प्रबुद्धता को कट्टरवाद ने लील लिया है।<br />विचारधारा खेमों में बाँटकर <br />हम निष्पक्ष कैसे रह सकते हैं?<br />यह प्रश्न स्वयं से पूछने की आवश्यकता है।<br />बढ़िया रचना है।<br />समसामयिक।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-3656582965153490692020-02-02T07:42:15.261+05:302020-02-02T07:42:15.261+05:30सच कहा आपने । यह लोकतंत्र नही थोड़ा सा बदला हुआ रा...सच कहा आपने । यह लोकतंत्र नही थोड़ा सा बदला हुआ राजतंत्र ही है।<br />जनता बेवश थी और बेवश ही है।<br />करारा प्रहार किया है आपने।<br />लेकिन मुझे नहीं लगता कि कुछ भी बदलने वाला है। बस, मन की भड़ास निकालते रहिए।<br />पुरुषोत्तम कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/16659873162265123612noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-8771045354630306552020-02-01T19:40:03.054+05:302020-02-01T19:40:03.054+05:30बहुत शानदार प्रस्तुति।
सटीक और सार्थक।बहुत शानदार प्रस्तुति।<br />सटीक और सार्थक।मन की वीणाhttps://www.blogger.com/profile/10373690736069899300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-43710106962394719572020-02-01T13:22:33.063+05:302020-02-01T13:22:33.063+05:30लोकतंत्र है कहाँ आज भी,
सरकार चाहे जिसकी हो, परंत...लोकतंत्र है कहाँ आज भी,<br /> सरकार चाहे जिसकी हो, परंतु सत्य यह है कि व्यवस्था नौकरशाहों के हाथ में रही हैं और है..<br />और ये अफसर <br />सदैव राजतंत्र के अंग रहे हैं..।<br />जब-तक हमें इन्हें हाकिम -हुजूर की जगह जनता का नौकर नहीं बोलना नहीं आएगा..।<br />जनतंत्र की जय बोलेंगे।<br />हमारे नेता तो नौकरशाही व्यवस्था के मुखौटा मात्र हैं।<br />सार्थक और विचारणीय पोस्ट।<br />व्याकुल पथिकhttps://www.blogger.com/profile/16185111518269961224noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-15519293473924129132020-01-31T22:09:51.638+05:302020-01-31T22:09:51.638+05:30सार्थक रचना .....लोकतंत्र के नाम पर अब तो राजतन्त्...सार्थक रचना .....लोकतंत्र के नाम पर अब तो राजतन्त्र ही चलन में है....राजनीति एक अलग लेवल पर है यहाँ लोगों को पारदर्शिता का चस्मा पहनाया जा रहा है ......सब मिल बांट कर खा रहे हैं बस आम जनता को नहीं खाने देना अश्विनी ढुंढाड़ाhttps://www.blogger.com/profile/03416174588302665609noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1082671218814482868.post-47927375476898692762020-01-31T11:57:21.713+05:302020-01-31T11:57:21.713+05:30तंत्र है बहुत सुन्दर।तंत्र है बहुत सुन्दर।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com