आँखों के सामने
जीते जी मार दिया है
कुछ 'हमपरवाजों' ने
ना समझी में
उसे जो जिन्दा है
मुझ में
और मेरे बाद
मेरे लिखित अलिखित अल्फाजों में,
मुमकिन है उनमें भी, जो
इसके सम्मान को कम लिखते हैं
गिरा लिखते हैं.
हिंदी अजर है
और अमर रहेगी
कैसी सोच, कैसे दिन हैं
ये भी बताना पड़ता है उनको
जिन्होंने इसे काबिले-रफ़ू समझा
उनकी पासबां है हिंदी
जब भी लिखने बैठता हूँ अल्फ़ाज़
मेरी जबीं को चूमती सी लगती है हिंदी
माँ की तरह
जो एक दुसरे में
प्राण फूंकते रहते हैं.
"रोहित"
हमपरवाज़= साथ में उडान भरने वाले, काबिले-रफ़ू = रफ़ू कराने योग्य, पासबां = द्वारपाल, जबीं = ललाट
जीते जी मार दिया है
ना समझी में
उसे जो जिन्दा है
मुझ में
और मेरे बाद
मेरे लिखित अलिखित अल्फाजों में,
मुमकिन है उनमें भी, जो
इसके सम्मान को कम लिखते हैं
गिरा लिखते हैं.
हिंदी अजर है
और अमर रहेगी
कैसी सोच, कैसे दिन हैं
ये भी बताना पड़ता है उनको
जिन्होंने इसे काबिले-रफ़ू समझा
उनकी पासबां है हिंदी
जब भी लिखने बैठता हूँ अल्फ़ाज़
मेरी जबीं को चूमती सी लगती है हिंदी
माँ की तरह
जो एक दुसरे में
प्राण फूंकते रहते हैं.
"रोहित"
हमपरवाज़= साथ में उडान भरने वाले, काबिले-रफ़ू = रफ़ू कराने योग्य, पासबां = द्वारपाल, जबीं = ललाट
मार्मिक रचना।
ReplyDeleteजय हिन्दी...।
ReplyDeleteजय नागरी...।।
बहुत सुन्दर सटीक भावपूर्ण अभिव्यक्ति हिंदी के नाम पर अपनी बिंदी चमकाने वालों को खबरदार करती सी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सटीक भावपूर्ण अभिव्यक्ति हिंदी के नाम पर अपनी बिंदी चमकाने वालों को खबरदार करती सी।
ReplyDeleteसुंदर व बेहतरीन रचना
ReplyDeleteहिंदी और उर्दू के शब्दों का अनोखा मेल...
ReplyDeleteBahut sunder rachna ki prastuti .....umdaa!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteभाषा को मारना संभव नहीं होता ... ऐसे प्रयासों से तो खास कर ...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
बहुत खूब
ReplyDeleteआदरणीय रोहित जी! हिन्दी ऐसी भाषा है, जो हमेशा रहेगी! सुंदर ब्लॉग के लिए सादर धन्यवाद!
ReplyDeleteधरती की गोद
बहुत भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteखूबसूरत अंदाज़ की राष्ट्र प्रेम से आप्लावित रचना शुक्रिया आपकी टिप्पणी का।
ReplyDeleteहिंदी अजर है
ReplyDeleteऔर अमर रहेगी.....
बहुत खूब
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक चिंतन .
ReplyDeleteसुन्दर सटीक भावपूर्ण
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.in/
'माँ' की तरह हिन्दी..बहुत अच्छी सोच ! उम्दा अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसचमुच हिंदी हमारी माँ के तुल्य ही ममतामयी और सम्मानीय है | उसके अस्तित्व को मिटाने के कुत्सित प्रयास सदा असफल होते रहे है और होते रहेंगे |हिन्दी के अंतस की व्यथा और सम्मान का सुंदर उद्घोष है आपकी रचना प्रिय रोहिताश जी | सस्नेह शुभकामना |
ReplyDeleteहिन्दी के प्रति भावुकता से भरती सुन्दर रचना. बधाई रोहितास जी
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की शुभकामनायें.