घाव से रिस्ते खून से एक धब्बा रहा
हुआ नासूर तो ना कोई धब्बा रहा।
निकला हर रोम से खून अपने
उसका ऐसा निकाला कसीदा रहा।
उसी कूचे में जाते रहे हैं हम मगर
इंतजारे यार में रहना ना रहना रहा।
अब नहीं आते वो आहटें सुनकर
दिल काबू में आते आते रहना रहा।
काम ठहर गये हैं जो बिगड़ते रहे
इश्क का उतावलापन जाता रहा।
नाफ़ प्याला याद आता है क्यों?
तौहीन भरे प्याले की को बतलाता रहा।
गर चाहे है वो सजदे में कुछ देना
रही न खुद्दारी,न होना तेरा ख़ुदा रहा।
रखियो ताल्लुक तुम तू कहता हैं
वहशत में भी याद रहोगे वादा रहा।
मांगे है एक सैर कूचा ए बदस्लूक की
दिल मगर जाँ होता ना गवारा रहा।
-BY
ROHIT
कसीदा =कपड़े पर बेल-बूटे व जरी के कढ़ाई का काम, नाफ़= नाभि, तौहीन= बेइज्जती, वहशत= पागलपन, कूचा ए बदस्लूक=दुर्व्यवहार करने वाले यार की संकरी गली।
हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)
कसीदा =कपड़े पर बेल-बूटे व जरी के कढ़ाई का काम, नाफ़= नाभि, तौहीन= बेइज्जती, वहशत= पागलपन, कूचा ए बदस्लूक=दुर्व्यवहार करने वाले यार की संकरी गली।
taken from google image |
हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)
उसी कूचे में जाते रहे हैं हम मगर
ReplyDeleteइंतजारे यार में रहना ना रहना रहा।
बहुत ही सुंदर भाव
वाह रोहित जी ,दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल ,
ReplyDeleteहरेक शेर लाजवाब हैं यू तो ,खास तौर से ये शेर मनभावन हैं
अब नहीं आते वो आहटें सुनकर
दिल काबू में आते आते रहना रहा।
blog pe apka intezar rhega .
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-10-2018) को "सुनाे-सुनो! पेट्रोल सस्ता हो गया" (चर्चा अंक-3116) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन गजल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रोहित जी.
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति जिसमें समाहित हैं जीवन की अनेक स्थितियाँ-परिस्थितियाँ.
ReplyDeleteबधाई एवम् शुभकामनाएं.
बेहतरीन.....,हर शेर एक से बढ़कर एक हैं रोहिताश्व जी लाजवाब ग़ज़ल 👌
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteवाहहह और बस वाह्ह्ह उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने रोहित जी। हर शेर मुकम्मल अर्थ लिए हुये है...हम जैसे जिज्ञासु पाठक के लिए शब्दार्थ लिख दिया उसके लिए बेहद आभार।
ReplyDeleteकुछ पंक्तियाँ याद आ गयी आपकी ग़ज़ल पढ़कर
मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना,
मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !
रंज-ओ-गम के इस माहौल से गमगीन था बहुत ,
बदलेगा ये भी वक्त, इसे बस समझाया भर है !
अच्छी रचना.
ReplyDeleteवाह हर शेर उम्दा
ReplyDeleteबहुत खूब वाह हर शेर मुकम्मल सा गहरा मतलब लिए।
ReplyDeleteकुछ पंक्तियाँ
क्यों भर चले जख्मों को
सहलाने बार बार आते हो
छू के उन्हें फिर नासूर बनाते हो
इंतकाल तो उसी वक्त हो गया
जब सरेराह हाथ छोङा था
फिर क्यों जनाजे को कांधा देने
बार बार आते हो ।
बहुत सुंदर ग़ज़ल. मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है.
ReplyDeletehttp://iwillrocknow.blogspot.com/
लाजवाब गजल....
ReplyDeleteएक से बढकर एक शेर...
वाह!!!
इश्क का असर भी क्या खूब है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
बहुत खूब, उम्दा शायरी..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शेर ओ शायरी प्रस्तुत कर रहे हैं आप।
ReplyDeleteरखियो ताल्लुक तुम तू कहता हैं
ReplyDeleteवहशत में भी याद रहोगे वादा रहा।
..........उम्दा ग़ज़ल लिखी है