Thursday, 4 October 2018

नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)

घाव से रिस्ते खून से एक धब्बा रहा
हुआ नासूर तो ना कोई  धब्बा  रहा।

निकला   हर  रोम  से  खून  अपने
उसका ऐसा निकाला कसीदा रहा।

उसी कूचे में जाते  रहे हैं  हम  मगर
इंतजारे यार में रहना ना रहना रहा।

अब नहीं आते  वो  आहटें  सुनकर
दिल काबू में आते आते रहना रहा।

काम ठहर गये हैं जो बिगड़ते रहे
इश्क का उतावलापन जाता रहा। 

नाफ़  प्याला  याद  आता  है   क्यों?
तौहीन भरे प्याले की को बतलाता रहा। 

गर चाहे  है  वो  सजदे  में  कुछ देना
रही न खुद्दारी,न होना तेरा ख़ुदा रहा। 

रखियो ताल्लुक तुम तू कहता  हैं 
वहशत में भी याद रहोगे वादा रहा। 

मांगे है एक सैर कूचा ए बदस्लूक  की 
दिल मगर  जाँ  होता  ना  गवारा  रहा। 


-BY 
ROHIT
कसीदा =कपड़े पर बेल-बूटे  व जरी के कढ़ाई का काम, नाफ़= नाभि, तौहीन= बेइज्जती, वहशत= पागलपन, कूचा ए बदस्लूक=दुर्व्यवहार करने वाले यार की संकरी गली। 
taken from google image 


हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)

18 comments:

  1. उसी कूचे में जाते रहे हैं हम मगर
    इंतजारे यार में रहना ना रहना रहा।
    बहुत ही सुंदर भाव

    ReplyDelete
  2. वाह रोहित जी ,दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल ,

    हरेक शेर लाजवाब हैं यू तो ,खास तौर से ये शेर मनभावन हैं

    अब नहीं आते वो आहटें सुनकर
    दिल काबू में आते आते रहना रहा।

    blog pe apka intezar rhega .

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-10-2018) को "सुनाे-सुनो! पेट्रोल सस्‍ता हो गया" (चर्चा अंक-3116) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर रोहित जी.

    ReplyDelete
  5. भावपूर्ण प्रस्तुति जिसमें समाहित हैं जीवन की अनेक स्थितियाँ-परिस्थितियाँ.
    बधाई एवम् शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन.....,हर शेर एक से बढ़कर एक हैं रोहिताश्व जी लाजवाब ग़ज़ल 👌

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल

    ReplyDelete
  8. वाहहह और बस वाह्ह्ह उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने रोहित जी। हर शेर मुकम्मल अर्थ लिए हुये है...हम जैसे जिज्ञासु पाठक के लिए शब्दार्थ लिख दिया उसके लिए बेहद आभार।

    कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी आपकी ग़ज़ल पढ़कर
    मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना,
    मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !

    रंज-ओ-गम के इस माहौल से गमगीन था बहुत ,
    बदलेगा ये भी वक्त, इसे बस समझाया भर है !

    ReplyDelete
  9. वाह हर शेर उम्दा

    ReplyDelete
  10. बहुत खूब वाह हर शेर मुकम्मल सा गहरा मतलब लिए।
    कुछ पंक्तियाँ
    क्यों भर चले जख्मों को
    सहलाने बार बार आते हो
    छू के उन्हें फिर नासूर बनाते हो
    इंतकाल तो उसी वक्त हो गया
    जब सरेराह हाथ छोङा था
    फिर क्यों जनाजे को कांधा देने
    बार बार आते हो ।

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर ग़ज़ल. मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है.
    http://iwillrocknow.blogspot.com/

    ReplyDelete
  12. लाजवाब गजल....
    एक से बढकर एक शेर...
    वाह!!!

    ReplyDelete
  13. इश्क का असर भी क्या खूब है ...
    बहुत खूब ...

    ReplyDelete
  14. बहुत खूब, उम्दा शायरी..

    ReplyDelete
  15. बहुत ही सुंदर शेर ओ शायरी प्रस्तुत कर रहे हैं आप।

    ReplyDelete
  16. रखियो ताल्लुक तुम तू कहता हैं
    वहशत में भी याद रहोगे वादा रहा।
    ..........उम्दा ग़ज़ल लिखी है

    ReplyDelete