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कब तलक हक़ जमाओगे, है कोई और
दम निकलेगा तभी मानोगे था कोई और
जबरन ब्याही गयी संग कोई और
पखेरूओं की फिक्र करे कोई और
सुलगती थी वो अब आराम से है
जल पड़ी जो अब बुझेगी कोई और
मज़हबी तीर पार बोला जंगे-इश्क में
खुदा एक है ये याँ समझे है कोई और
थी बात कि तेरा मेरा किसने बांटा है
फिर कैसे कहें रक़ीब को कोई और
बावजूद ताल्लुकात जिंदा हैं हैरत है मुझे
होती मोहल्ले में जीता दम भर कोई और
निकलते आफ़ताब को देखा होगा ढलते दिन ने
हम थकन में हैं उस क्षितिज की बात करे कोई और
अव्वल तो हम बेहूदा जान पड़ते हैं, नामुमकिन है
पर समझने की क्षमता से परे पाओगे हमें कोई और
हम अपनी टीस की ख़ातिर उनसे पूछे जाएं
वो बेकरारी में हमसे कहे जाए - है कोई और
हमने शेरो-शायरी की और जी भर के की
क्या बताना अब भी है भूख थी कोई और
कहते हैं था ग़ालिब का अंदाजे-बयां और
फ़रमाते हम भी हैं अंदाजे बयाँ कोई और.
-रोहित
वाह ! बेहद उम्दा अश्यार
ReplyDeleteआभार
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
Deleteनिकलते आफ़ताब को देखा होगा ढलते दिन ने
ReplyDeleteहम थकन में हैं उस क्षितिज की बात करे कोई और
बहुत खूब.. जब भी लिखते हैं लाजवाब होता है । बहुत ही उम्दा सृजन ।
लिखने को तो यही एक शेर लिखा गया है इस ग़ज़ल में।
Deleteबाकी तो आपका बड़प्पन है जी।
आभार
गालिब से कम नहीं है अंदाजे- बयां ।
ReplyDeleteअंदाजे-बयाँ है भी तो
Deleteकिसी से क्योंकर कम हो।
आभार
गहरे अर्थ समेटे सामायिक पृष्ठ भूमि पर शानदार अश्आर ।
ReplyDeleteहर शेर बेमिसाल।
हर समय को इंगित करे वही रचना शानदार बनती है।
Deleteआभार।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-09-2019) को " इक मुठ्ठी उजाला "(चर्चा अंक- 3465) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जबरन ब्याही गयी संग कोई और
ReplyDeleteपखेरूओं की फिक्र करे कोई और
सुलगती थी वो अब आराम से है
जल पड़ी जो अब बुझेगी कोई और !!!!!!!!
बहुत बढ़िया रोहितास जी | आपके अपने खूबसूरत अंदाज में एक उम्दा गज़ल कही आपने | ग़ालिब का अंदाजे बयाँ और था , पर उनकी राह का अनुशरण करते हुए हर मौलिक रचनाकार अपनी शायरी का ग़ालिब ही है | आपका अंदाज भी अपनी जगह जुदा रहता है | हार्दिक शुभकामनायें आपको अनवरत लेखन के लिए | सस्नेह --
शुक्रिया
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से मेरी रचना खरी बनती है।
सादर
वाह,आपकी रचनात्मकता के सन्दूक से निकली एक और बेहतरीन रचना।सच बोलू तो कई बार पढ़ा और बार बार पढ़ा तब इसके मर्म तक पहुँचने की कोशिश कर पाया,खासकर पहली पक्ति ।बहुत नए अंदाज मे लिखी गयी रचना हैं।और कैसे हर शेर में अपने अलहदा मसला उठाया गड़ा हैं वो सीखने लायक हैं।ठीक कहते हो आप अंदाजे बया और हैं।दुनिया तो ग़ालिब को भी बहुत देर में वो जगह दे पायी थी जबके उन्होंने मुफ़लिसी में ज़िन्दगी गुज़ार दी,वक़्त के तकाज़े पे इन लब्जो के मुख़्तसर मायने निकलेगे।
ReplyDeleteनिकलते आफ़ताब को देखा होगा ढलते दिन ने
हम थकन में हैं उस क्षितिज की बात करे कोई और
हमने शेरो-शायरी की और जी भर के की
क्या बताना अब भी है भूख थी कोई और
सादर
आप जैसे दोस्तों की कमी रहती है हमें
Deleteकरीब रहा करो।
आभार।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ! हर शेर शानदार हर ख़याल दमदार ! आपका अंदाज़े बयाँ भी बहुत बढ़िया ! हार्दिक शुभकामनाएं रोहितास जी !
ReplyDeleteप्रणाम
Deleteआपसे सीखे है ये तेवर भी हमने
एकलव्य की तरह।
आभार।
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर शेर
बधाई
सुलगती थी वो अब आराम से है
ReplyDeleteजल पड़ी जो अब बुझेगी कोई और
कमाल का अंदाजे-बयाँ...
निकलते आफ़ताब को देखा होगा ढलते दिन ने
हम थकन में हैं उस क्षितिज की बात करे कोई और
वाह!!!
लाजवाब गजल
एक से बढ़कर एक शेर....।
प्यार बरसाते रहिएगा
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तूति, रोहितास भाई।
ReplyDeleteवाह क्या कहने बेहद शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने रोहित जी।
ReplyDeleteहर शेर लाज़़वाब है अपने आप में मुकम्मल।
पर क्षमा चाहेंगे रचना में शब्दों की बुनावट बेहतरीन है पर एहसास में वो बात महसूस नहीं हुई।
ये कमी तो मुझे भी खलती है आजकल।
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteकहते हैं था ग़ालिब का अंदाजे-बयां और
फ़रमाते हम भी हैं अंदाजे बयाँ कोई और.
बिल्कुल सही, वाह
बहुत खूब ...
ReplyDeleteइस अन्दाजें बयान का क्या कहना ... बात को बहुत अलग अंदाज़ से रखा है हर शेर में ... दूसरी पंक्ति ने पहली के भाव बाखूबी खिला दिए हैं ...
धन्यवाद नासवा जी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया मिलने का मुझे गुमाँ रहता है।
बहुत उम्दा अशआर हैं आपके रोहितास घोरेला जी. पूरी ग़ज़ल अच्छी है लेकिन अभी ग़ालिब का सा अंदाज़े बयाँ लाने के लिए या उनके अंदाज़ की बराबरी का अंदाज़ लाने में आपको थोड़ा वक़्त लगेगा.
ReplyDeleteबराबरी की चाहत है भी नहीं साहब।
Deleteआभार
अन्दाज़े वयाँ क्या ख़ूब है.
ReplyDeleteRohitas ji
ReplyDeleteबावजूद ताल्लुकात जिंदा हैं हैरत है मुझे
hmmm..ye ik line ne baandh liya mujhe....bahut gehri baat keh dii aapne....
aabhaar aapka...apne kalam se milaane ke liye....ab aana hota rahega...
.mere blog tak aane aur lekhni ko sraahne ke liye tah e dil se shukriyaa
yuhin likhte rahiye..bdhaayi
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteरोहितास भाई उम्दा गज़ल आपके खूबसूरत अंदाज में हर ख़याल दमदार !
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteबधाई