जनाबे जॉन एलिया साब की एक गज़ल आज के इस दौर पर कितनी सटीक बैठती है आप ही देख लीजिये इस गजल के चंद शेर-
ऐश-ए-उम्मीद ही से ख़तरा है
दिल को अब दिल-ही से ख़तरा है
जिस के आग़ोश का हूँ दीवाना
उस के आग़ोश ही से ख़तरा है
है अजब कुछ मोआ'मला दरपेश
अक़्ल को आग ही से ख़तरा है
शहर-ए-ग़द्दार जान ले कि तुझे
एक अमरोहवी से ख़तरा है
आसमानों में है ख़ुदा तन्हा
और हर आदमी से ख़तरा है
अब नहीं कोई बात ख़तरे की
अब सभी को सभी से ख़तरा है
कोरोना जैसी महामारी के बारे में अब तक आपने खूब पढ़ लिया होगा और खूब ही जान लिया होगा। इस वक्त तक जब मैं ये लिख रहा हूँ; भारत में 4908 मामले और 137 मौते हो चुकी है। इसमें कोई संदेह नहीं की बहुत सारे लोग ठीक भी हुए हैं; अब तक भारत में 382 लोग रिकवरी कर चुके हैं। लेकिन इसके रोकथाम के सन्दर्भ में जाने-अनजाने में हमसे बहुत बड़ी गलतियां हो रही है। और ये गलतियां मैंने अपने अनुभव से जाना है। ये वो गलतियां है जो हर कहीं लिखी या सुनाई नहीं जा रही है। गलतियाँ जो आमतौर पर हम कर रहे हैं वो ये कि--
1. रुमाल और मास्क में मास्क को ही चुने- बहुत से लोग मास्क की बजाय रुमाल बाँध लेते हैं। ये सही है कि रूमाल मास्क जैसा काम करती है लेकिन हम वही रुमाल हमारे कमरे तक ले जाते हैं, वही रुमाल बिस्तर पर डाल देते हैं, बहार से आते ही हम हाथ तो धो लेते है लेकिन उसी रुमाल से हाथ पूंछ लेते हैं। बहुत से लोग वही रुमाल अपनी माँ या पत्नी से धुलाते हैं जिससे खतरा बढ़ जाता है।
2. हजामत ना करवाएं- वैसे तो सैलून या ब्यूटी पार्लर जैसी दुकाने बंद हैं लेकिन फिर भी नाई (जाती सूचक शब्द ना समझा जावे) का काम करने वाले घरों में जा-जा कर काम कर रहे हैं। ऐसे काम करने वाले व्यक्ति सबसे ज्यादा संक्रमित हो सकते हैं क्यूंकि ये एक ऐसा काम है जिसे दूरी बनाकर नहीं किया जा सकता। इसलिए इनसे काम ना करवाएं ये आप और आपके नाई की सुरक्षा के लिए बेहतर होगा। दाड़ी या केश बढा लो कुछ दिन- हो सकता है ये आपके रूप को ओर बेहतर बना दे।
3. गम्भीरता से लेने की जरूरत- सुरक्षा ही इलाज़ है, लॉकडाउन का सख्ती से पालन करें (हमें आने वाले 2 महीनों तक इसी लॉकडाउन की बहुत सख्त जरूरत है) बहादुरी दिखाने की जरूरत नहीं है। जो भी लॉकडाउन का पालन नहीं करता है वो देशद्रोही ही नहीं वरन सम्पूर्ण वैश्विक सभ्यताद्रोही है। खुद को घर के कामों में, रसोईघर में, गार्डनिंग में या मनोरंजन में व्यस्त रखें। एक डॉक्टर के अंदाजे के मुताबिक भारत में यह आगे आने वाले अप्रेल-मई के दिनों में 1.5- 2 लाख लोगों को प्रभावित कर सकती है।
घबराएँ नहीं ये खुद को खुद तक ले जाने का सही समय है।
आइये अब ले चलता हूँ साहित्यिक रसपान यानि मेरी नई रचना की तरफ़-
गलियाँ जो बनी थी सूनी रहने के लिए
क्योंकर किया आबाद एक दफ़े के लिए
तुम तो क्या, कोई भी तो किसी का सानी नहीं है
खींचा दम तैयार है मगर दूर तक जाने के लिए
ए मेरी ज़िंदगी की आबो-हवा पास तो आ
अब तो एक ही साँस है बाकी मरने के लिए
तू उस कफ़स से छुटा कर आ सकती है
मैं भी बैताब हूँ मेरे कफ़स में लाने के लिए
नज़र ही क्या बुरी होती हम पर उनकी
एक सांस ही काफ़ी है मारने के लिए
बे-रूहों में, है किस बख़्त की बेवफ़ाई?
तुम ना मिलते सिर्फ़ मिलने के लिए
अंदर शोर मचाया गले मिलने को किसी ने
गला हद्द तक उतर आया बन्द होने के लिए
हर दुकाँ बन्द है आँखों की तरह नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े से कर्ज़े के लिए
- Rohit
कोरोना जैसी महामारी के बारे में अब तक आपने खूब पढ़ लिया होगा और खूब ही जान लिया होगा। इस वक्त तक जब मैं ये लिख रहा हूँ; भारत में 4908 मामले और 137 मौते हो चुकी है। इसमें कोई संदेह नहीं की बहुत सारे लोग ठीक भी हुए हैं; अब तक भारत में 382 लोग रिकवरी कर चुके हैं। लेकिन इसके रोकथाम के सन्दर्भ में जाने-अनजाने में हमसे बहुत बड़ी गलतियां हो रही है। और ये गलतियां मैंने अपने अनुभव से जाना है। ये वो गलतियां है जो हर कहीं लिखी या सुनाई नहीं जा रही है। गलतियाँ जो आमतौर पर हम कर रहे हैं वो ये कि--
1. रुमाल और मास्क में मास्क को ही चुने- बहुत से लोग मास्क की बजाय रुमाल बाँध लेते हैं। ये सही है कि रूमाल मास्क जैसा काम करती है लेकिन हम वही रुमाल हमारे कमरे तक ले जाते हैं, वही रुमाल बिस्तर पर डाल देते हैं, बहार से आते ही हम हाथ तो धो लेते है लेकिन उसी रुमाल से हाथ पूंछ लेते हैं। बहुत से लोग वही रुमाल अपनी माँ या पत्नी से धुलाते हैं जिससे खतरा बढ़ जाता है।
2. हजामत ना करवाएं- वैसे तो सैलून या ब्यूटी पार्लर जैसी दुकाने बंद हैं लेकिन फिर भी नाई (जाती सूचक शब्द ना समझा जावे) का काम करने वाले घरों में जा-जा कर काम कर रहे हैं। ऐसे काम करने वाले व्यक्ति सबसे ज्यादा संक्रमित हो सकते हैं क्यूंकि ये एक ऐसा काम है जिसे दूरी बनाकर नहीं किया जा सकता। इसलिए इनसे काम ना करवाएं ये आप और आपके नाई की सुरक्षा के लिए बेहतर होगा। दाड़ी या केश बढा लो कुछ दिन- हो सकता है ये आपके रूप को ओर बेहतर बना दे।
3. गम्भीरता से लेने की जरूरत- सुरक्षा ही इलाज़ है, लॉकडाउन का सख्ती से पालन करें (हमें आने वाले 2 महीनों तक इसी लॉकडाउन की बहुत सख्त जरूरत है) बहादुरी दिखाने की जरूरत नहीं है। जो भी लॉकडाउन का पालन नहीं करता है वो देशद्रोही ही नहीं वरन सम्पूर्ण वैश्विक सभ्यताद्रोही है। खुद को घर के कामों में, रसोईघर में, गार्डनिंग में या मनोरंजन में व्यस्त रखें। एक डॉक्टर के अंदाजे के मुताबिक भारत में यह आगे आने वाले अप्रेल-मई के दिनों में 1.5- 2 लाख लोगों को प्रभावित कर सकती है।
घबराएँ नहीं ये खुद को खुद तक ले जाने का सही समय है।
आइये अब ले चलता हूँ साहित्यिक रसपान यानि मेरी नई रचना की तरफ़-
एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
गलियाँ जो बनी थी सूनी रहने के लिए
क्योंकर किया आबाद एक दफ़े के लिए
तुम तो क्या, कोई भी तो किसी का सानी नहीं है
खींचा दम तैयार है मगर दूर तक जाने के लिए
ए मेरी ज़िंदगी की आबो-हवा पास तो आ
अब तो एक ही साँस है बाकी मरने के लिए
तू उस कफ़स से छुटा कर आ सकती है
मैं भी बैताब हूँ मेरे कफ़स में लाने के लिए
नज़र ही क्या बुरी होती हम पर उनकी
एक सांस ही काफ़ी है मारने के लिए
बे-रूहों में, है किस बख़्त की बेवफ़ाई?
तुम ना मिलते सिर्फ़ मिलने के लिए
अंदर शोर मचाया गले मिलने को किसी ने
गला हद्द तक उतर आया बन्द होने के लिए
हर दुकाँ बन्द है आँखों की तरह नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े से कर्ज़े के लिए
- Rohit
हर दुकाँ बन्द है आंखों की तरह नशेबाज की
ReplyDeleteक्या एक भी दुकाँ नही थोड़े से कर्जे के लिए
बेहतरीन अश़आर
सादर
समसामयिक बहुत बढ़िया गज़ल है जॉन एलिया साहेब की।
ReplyDeleteशानदार।
महामारी के संदर्भ में आपकी चेतावनी और सुझाव उपयोगी हैं।
अब आपकी लिखी गज़ल पर आते हैं..बहुत अच्छी गज़ल है। सारे बंध अच्छे हैं।
ए मेरी ज़िंदगी की आबोहवा पास तो आ।
ReplyDeleteक्या बात क्या बात क्या बात
गलियां जो बनी थी सुनी रहने के लिए
ReplyDeleteक्योंकर किया आबाद एक दफ़े के लिए
वाह, बहुत ख़ूब
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' ०८ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_8.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
ReplyDelete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा गुरुवार(०९-०४-२०२०) को 'क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?'( चर्चा अंक-३६६६) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सामयिक ... आज के समय पर फिट बैठते हैं सभी शेर ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
बहुत खूब।
ReplyDeleteअंदर शोर मचाया गले मिलने को किसी ने
ReplyDeleteगला हद्द तक उतर आया बन्द होने के लिए
वाह!!!
लाजवाब गजल के साथ जो महामारी के विषय में सावधानी और चेतावनी बहुत खूब...।
सटीक और सामयिक
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत खूब ... ,लाजबाब सृजन ,सादर नमन सर
मास्क या रूमाल ! दोनों से अच्छा है गमछा । रूमाल से पूरा चेहरा नहीं ढकता, मास्क का डिस्पोज़ल बायो-वेस्ट की तरह होना चाहिए अन्यथा वह ख़ुद इंफ़ेक्शन का एक एजेण्ट बन जाता है । गमछे को प्रतिदिन धो सकते हैं और घर में घुसने से पहले बाहर ही निकालकर रख सकते हैं । अभी एक नया कॉन्सेप्ट आया है कि आम लोगों को मास्क का स्तेमाल नहीं करना चाहिये । वह बात अलग है कि बाद में इस कॉन्सेप्ट को न जाने क्यों रिप्लेस कर दिया गया । कोरोना के प्रवेश करने के मार्ग नाक और मुँह के अतिरिक्त आँखें भी हैं जिन्हें चश्मे और गमछे की मदद से अच्छी तरह ढका जा सकता है । सबसे अच्छा उपाय है ख़ुद की किलेबंदी यानी इम्यूनिटी इम्प्रूवमेंट वरना पी.पी.ई. के बाद भी मेडिकल स्टाफ़ के लोग भी संक्रमित होने लगे हैं ।
ReplyDeleteगज़ल की उतनी समझ नहीं है मुझे ...यूँ अच्छी लगी ।
इस नाजुक दौर में बड़े काम की बातें और खूबसूरत गजल
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल, बधाई. जॉन एलिया साहब की ग़ज़ल साझा करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteसटीक और सामयिक रचना |
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसमय उपयोगी संदेश के साथ सामायिक विषय पर सार्थक सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
कवि, शायर की कल्पना वक़्त से आगे चलती है। नामचीन शायर जॉन एलिया साहब का व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व बेमिसाल है,उनकी शानदार ग़ज़ल पढ़वाने के लिए सादर आभार रोहितास जी। करोना महामारी से जूझने के लिए उपयोगी सलाह।
ReplyDeleteसमकालीन परिस्थितियों पर आपका सृजन प्रशंसनीय है। लिखते रहिए। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सामयिक सृजन। बधाई।
ReplyDeleteवाह ! प्रिय रोहिताश , आपकी ये एक और उत्कृष्ट शेरों से सजी रचना , जो सार्थक भी हैं और समसामयिक भी | यूँ तो हर शेर लाजवाब है पर इस शेर से मुझे वेदना की टीस सुनाई पड़ी --
बे-रूहों में, है किस बख़्त की बेवफ़ाई?
तुम ना मिलते सिर्फ़ मिलने के लिए
और शेर पे सवासेर है ये बंध -
हर दुकाँ बन्द है आँखों की तरह नशेबाज की
क्या एक भी दुकाँ नही थोड़े से कर्ज़े के लिए!
कोरोना पर आपके सभी सुझाव अच्छे हैं जो आपकी सौहार्द की भावना को दिखाते हैं | जनाबे जॉन एलिया को मैंने कभी नहीं पढ़ा , जिसका मुझे बहुत अफ़सोस होता है | उनके बारे में ब्लॉग से जुड़कर ही जाना | किसी दिन फुर्सत में गूगल से उनकी रचनाएँ पढ़ती हूँ | बहुत बहुत शुक्रिया उनकी नायाब रचना को शेयर करने के लिए | अपनी विशेष शैली में खूब सृजनरत रहो | मेरी सस्नेह शुभकामनाएं|
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' २२ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_22.html
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteजॉन एलिया के नाम से शुरआत की तो रंग तो बिखरने ही थे
ReplyDeleteकोरोना के संदर्भ में आपकी चेतावनी और सुझाव उपयोगी हैं।
अच्छी ग़ज़ल हुयी हैं
इस महामारी से बचाव रखें
Behtarin rachana
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteलाजवाब ।वाह बहुत खूब ।
ReplyDeleteअंदर शोर मचाया गले मिलने को किसी ने
ReplyDeleteगला हद्द तक उतर आया बन्द होने के लिए,,,, बहुत सुंदर भावपूर्ण ।साथ में आज के समय पर बहुत अच्छी जानकारी ।आदरणीय शुभकामनाएँ ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसारगर्भित रचना बहुत सुन्दर
ReplyDelete