हम कितनी तेज़ी से गुजरे
उस गुजरे वक़्त में से
बगैर मुलाकात किये इज़हार तक पहुंच गए
नतीजन विफलता तक पहुंच गए
कितनी चीजें हाथ में से निकल गयी
तेरा साया तक छूने से जो खुशियां थी; फिसल गई,
बालों की चांदी तक निकल गयी
हमारे ख़र्च होते हर एक लम्हा ख़्वाब बने
एक सिगरेट उंगलियों में फंसी रह गयी।
जिसे उंगलियों में रखनी चाही वो क़लम
और कश्मकश बयाँ न कर सकने वाले अल्फ़ाज़ से भरा मैं
बस निब है जो टूटती रहती है
क़लम है जो झगड़ती रहती है।
आसमाँ की जगह सागर देखा
सागर की जगह आसमाँ देखा
मैंने तैर कर चांद पर पहुंचना चाहा
और तड़फ ये कि तारों पर ही ठहर गए
तमाम उम्र हक़ीक़त ने परेशान न किया
ख़्वाबों ने लूट लिया
ख़्वाब जो तेरा था ज़िंदगी बन गया
ज़िंदगी जो मेरी थी ख़्वाब बन गया।
हम बस उसी तरह से गुजर जाएंगे
एक ही तो रस्ता है वहीं से निकल जाएंगे।
-ROHIT
मन को बेधती हुई भावपूर्ण कविता ..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें..सादर..
ReplyDeleteइसी कश्म काश में सारी जिंदगी कश बन कर रह जाती है ।
ReplyDeleteमर्मान्तक पीड़ा को कहती भावपूर्ण अभिव्यक्ति
कलम ,सोच और जिन्दगी की ऊहापोह...लम्हा लम्हा खर्च होते समय को मर्मस्पर्शी शब्दों में बयान करती खूबसूरत कृति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteवाकई जीवन एक ख्वाब है और ख्वाब देखना और उन्हें साकार करना ही जीवन है..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण , मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteख़्वाब जो तेरा था ज़िंदगी बन गया
ReplyDeleteज़िंदगी जो मेरी थी ख़्वाब बन गया।
बेहतरीन पंक्तियां....
साधुवाद 🙏
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज मंगलवार 9 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
अजीब कशमकश
ReplyDeleteआसमाँ की जगह सागर देखा
सागर की जगह आसमाँ देखा
सादर..
प्रिय रोहित , जब इंसान वो नहीं कर पाता जो वह करना चाहता है तो शायद इसी तरह की कशमकश में जीता होगा | वीतरागी मन की तड़पन और व्याकुलता का सांगोपांग वर्णन है ये रचना | हम किसी ख़्वाब की ऊँगली पकड़ कर यूँ ही उम्र गुजार देते हैं ना जाने किसपछतावे और किस भुलावे में भी शायद ! स्मृतियों के गलियों से गुजरते मन की अनकही व्यथा के रूप में रचना का मुक्त शिल्प बहुत भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी बन पडा है | यूँ ही लिखते रहो | अपने लेखनी को विराम ना दो | ये सफ़र जारी रहना चाहिए | कोई पढ़े ना पढ़े - साहित्य की अनमोल थाती तो तैयार होगी ही | हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं|
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण , सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबगैर मुलाकात किये इज़हार तक पहुंच गए
ReplyDeleteनतीजन विफलता तक पहुंच गए
क्या बात है।
जुठ की दुनिया मे जैसे आप आईना दिखा रहे हो।
हमेशा नए तरह का प्रयोग करते हो आप और अदभुत बन पड़ता है।सलाम है आपको।
लिखते रहे
बढ़ते रहे
मंजिल दूर नही...