मैंने चाहा
एक साथ
एक घर
ढेरों बातें
और उसकी बाँहों में सिमट जाना
मगर... चलो कोई बात नहीं
मैंने चाही
पहली सी मुहब्बत
महीने में कुछ ही बातें
मुलाकातें ना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं
मैंने चाहा
वार-त्योहार पर कम से कम
हाल चाल से वाकिफ़ होना
दीदार ना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं
आख़िर मैंने चाहना कम किया
वो कहती भी रही कम का
मगर कम भी तो कितना कम होता
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
मगर.... चलो कोई बात नहीं
मुहब्बत जाया ही सही
नजदीकियाँ बदसूरत ही सही
कोंपल का फूटना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं।
-Rohit
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