Rohitas Ghorela

wanna be a writer and Poet. "I'm gonna fall in love with you. You don't have to love me back, just let me love you."

Wednesday, 21 February 2024

तुम हो तो हूँ

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तेरे बाद  ये शांत पते यूँ ही आँधियों में फड़फड़ाते रहेंगे  तेरे बाद  ये शांत नदी बरसात के दिनों यूँ ही शोर मचाती रहेगी  तेरे बाद  किसी कच्चे र...
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Sunday, 3 September 2023

संस्कृति - विकृति

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मौन के बाद भी जो मौन रहे  परिवर्तन, मद, अभिमान और  गुमान की  उथल-पुथल के बाद भी  शेष रह जाए वो मौन; है संस्कृति  गर जाग उठा है संस्कृति-रक्ष...
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Thursday, 13 July 2023

अभी तक

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मैं उजले दिन में चलने का अभ्यस्त   उस शिखर दोपहर को ऐसा पहली बार देखा न अँधेरा हुआ न ही धुप रही   जिस दोपहर उस तपते चौराहे पर  हमने आधा एक घ...
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Saturday, 25 December 2021

मगर...

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मैंने चाहा   एक साथ  एक घर  ढेरों बातें  और उसकी बाँहों में सिमट जाना  मगर... चलो कोई बात नहीं  मैंने चाही  पहली सी मुहब्बत  महीने में कुछ ह...
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Tuesday, 9 March 2021

अर्थों के अनर्थों में

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हमें भुलवा दिया जाता है अर्थों के अनर्थों में क्या छुपा है एक दिन की महिमा के अर्थ से  364 दिनों के अनर्थों का क्या हुआ? या सुना दिया जाता ह...
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Thursday, 4 March 2021

गुजरे वक़्त में से...

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हम कितनी तेज़ी से गुजरे  उस गुजरे वक़्त में से बगैर मुलाकात किये इज़हार तक पहुंच गए नतीजन विफलता तक पहुंच गए कितनी चीजें हाथ में से निकल गयी ते...
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Friday, 1 January 2021

समानता २

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taken from Google image  -------------------------------------------- मुझे रिवाजों का हवाला ना दें  मुझे अंधेरों वाली मशालें ना दें  एक जुर्...
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Sunday, 13 December 2020

समानता

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taken from Google Image  -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------...
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Sunday, 20 September 2020

आत्मनिर्भता

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सरकार; आप समझते हो उतना आसान तो नहीं                     काम से बे-काम होकर आत्मनिर्भर होना आसाँ तो नहीं   हम आदमीयों का सिर्फ आत्मनिर्भर हो...
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Tuesday, 7 April 2020

एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए

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जनाबे जॉन एलिया साब की एक गज़ल आज के इस दौर पर कितनी सटीक बैठती है आप ही देख लीजिये इस गजल के चंद शेर- ऐश-ए-उम्मीद   ही     से     ख...
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Rohitas Ghorela
रोहिताश घोड़ेला: बदलाव के लिए लिखना पसंद करता हूँ. पुराने जज्बात को जो बारम्बार लिखे जा चुके हैं उनको नये अल्फाज में लिखने से परहेज है. महफ़िल में अक्सर तन्हाई गजल सूना जाती है और तन्हाई में कोई कविता जन्म ले लेती है. कभी जानबूझ कर लिखने की कोशिश तक नहीं करने की आदत है............... "सरहाना नहीं चाहता किसी से, बस मोहब्बत कर लो मुझी से"
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