मैंने चाहा
एक साथ
एक घर
ढेरों बातें
और उसकी बाँहों में सिमट जाना
मगर... चलो कोई बात नहीं
मैंने चाही
पहली सी मुहब्बत
महीने में कुछ ही बातें
मुलाकातें ना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं
मैंने चाहा
वार-त्योहार पर कम से कम
हाल चाल से वाकिफ़ होना
दीदार ना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं
आख़िर मैंने चाहना कम किया
वो कहती भी रही कम का
मगर कम भी तो कितना कम होता
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
मगर.... चलो कोई बात नहीं
मुहब्बत जाया ही सही
नजदीकियाँ बदसूरत ही सही
कोंपल का फूटना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं।
-Rohit
from google image |
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत ख़ूब !
ReplyDeleteनाकाम आशिक़ के हिस्से में सिर्फ़ -'संतोष धन' आता है या फिर - 'चलो कोई बात नहीं' वाला जुमला !
आख़िर मैंने चाहना कम किया
ReplyDeleteवो कहती भी रही कम का
मगर कम भी तो कितना कम होता
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
मगर.... चलो कोई बात नहीं
खूबसूरत अभिव्यक्ति...
इंसान को उसकी मनचाही हर चीज नही मिल सकती। ऐसे में संतोष करने के अलावा उसके पास और कोई पर्याय ही नहीं रहता। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, रोहितास भी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह ! चलो कोई बात नहीं । संतोष की पराकाष्ठा । सुंदर कृति ।
ReplyDeleteचलो कोई बात नहीं , कम से कम दिल की बात बयाँ तो हो गयी ।
ReplyDelete"मगर कम भी तो कितना कम होता
ReplyDeleteअब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा "
वाह खूब कहा----
सुंदर सृजन
चलो कोई बात नहीं.
ReplyDeleteअंतर्मन को प्रतिविम्बित करती रचना। बेहतरीन।
वाह!सच्चाई से भरी एक सच्ची रचना🙏
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन, हृदय स्पर्शी भाव।
ReplyDeleteकोई बात तो जरूर फिर कैसे कहे कोई "चलो कोई बात नहीं"।
अप्रतिम।
मुहब्बत जाया ही सही
ReplyDeleteनजदीकियाँ बदसूरत ही सही
कोंपल का फूटना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं।
वाह बहुत खूब
चलो कोई बात नहीं क्योंकि ये मोहब्बत इकतरफा सी लग रही...वरना इतना कम कि विलुप्त तक...कहाँ सहन होता है।यदि तड़प हो दोनो तरफ...मगर...
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी
लाजवाब।
आदरणीया सुधा देवरानी जी, नमस्ते!👏!
ReplyDeleteयात्रा पर रहने और आज नेटवर्क उपलब्ध होने के कारण मैं आज रचनाओं को देख पा रहा हूँ।
बहुत अच्छी रचना है। बातों को सत्य और सहज ढंग से आपने व्यक्त किया है। --ब्रजेंद्रनाथ
प्रिय रोहित , जीवन में अक्सर हम जो सोचते हैं , वही मुमकिन नहीं हो पाता| संभवतः यही नियति है और यही सम्भावः ! खुद का खुद से ये संवाद तुम्हारी सभी रचनाओं से हटकर | बहुत भावपूर्ण है |
ReplyDeleteये पंक्तियाँ बहुत विशेष लगी --
ReplyDeleteआख़िर मैंने चाहना कम किया
वो कहती भी रही कम का
मगर कम भी तो कितना कम होता
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
मगर.... चलो कोई बात नहीं
यूँ ही लिखते रहो | हार्दिक शुभकामनाएं |सस्नेह
चलो कोई बात नहीं
ReplyDeleteसामंजस्य पर उत्तम रचना
Hindi Story
ReplyDeletemeri baate
Bhoot Ki kahani
Akabar
Birbal
hindi story
जब आवे संतोष धन!
ReplyDeleteमैंने चाहा
ReplyDeleteवार-त्योहार पर कम से कम
हाल चाल से वाकिफ़ होना
दीदार ना ही सही
मगर... चलो कोई बात नहीं ,,,, बहुत सुंदर सृजन ,
उम्दा ....बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया ..बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteहृदय के बहुत क़रीब लगी आपकी रचना । भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।
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