Saturday, 25 December 2021

मगर...



मैंने चाहा  
एक साथ 
एक घर 
ढेरों बातें 
और उसकी बाँहों में सिमट जाना 
मगर... चलो कोई बात नहीं 

मैंने चाही 
पहली सी मुहब्बत 
महीने में कुछ ही बातें 
मुलाकातें ना ही सही 
मगर... चलो कोई बात नहीं 

मैंने चाहा 
वार-त्योहार पर कम से कम 
हाल चाल से वाकिफ़ होना 
दीदार ना ही सही 
मगर... चलो कोई बात नहीं 

आख़िर मैंने चाहना कम किया 
वो कहती भी रही कम का 
मगर कम भी तो कितना कम होता 
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा 
मगर.... चलो कोई बात नहीं 

मुहब्बत जाया ही सही 
नजदीकियाँ बदसूरत ही सही
कोंपल का फूटना ही सही 
मगर... चलो कोई बात नहीं।  

-Rohit
from google image
 

23 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. बहुत ख़ूब !
    नाकाम आशिक़ के हिस्से में सिर्फ़ -'संतोष धन' आता है या फिर - 'चलो कोई बात नहीं' वाला जुमला !

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  3. आख़िर मैंने चाहना कम किया
    वो कहती भी रही कम का
    मगर कम भी तो कितना कम होता
    अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
    मगर.... चलो कोई बात नहीं
    खूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  4. इंसान को उसकी मनचाही हर चीज नही मिल सकती। ऐसे में संतोष करने के अलावा उसके पास और कोई पर्याय ही नहीं रहता। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, रोहितास भी

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  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. वाह ! चलो कोई बात नहीं । संतोष की पराकाष्ठा । सुंदर कृति ।

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  7. चलो कोई बात नहीं , कम से कम दिल की बात बयाँ तो हो गयी ।

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  8. "मगर कम भी तो कितना कम होता
    अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा "

    वाह खूब कहा----

    सुंदर सृजन

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  9. चलो कोई बात नहीं.
    अंतर्मन को प्रतिविम्बित करती रचना। बेहतरीन।

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  10. वाह!सच्चाई से भरी एक सच्ची रचना🙏

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  11. सुन्दर सृजन

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  12. बेहतरीन सृजन, हृदय स्पर्शी भाव।
    कोई बात तो जरूर फिर कैसे कहे कोई "चलो कोई बात नहीं"।
    अप्रतिम।

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  13. मुहब्बत जाया ही सही
    नजदीकियाँ बदसूरत ही सही
    कोंपल का फूटना ही सही
    मगर... चलो कोई बात नहीं।
    वाह बहुत खूब

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  14. चलो कोई बात नहीं क्योंकि ये मोहब्बत इकतरफा सी लग रही...वरना इतना कम कि विलुप्त तक...कहाँ सहन होता है।यदि तड़प हो दोनो तरफ...मगर...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी
    लाजवाब।

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  15. आदरणीया सुधा देवरानी जी, नमस्ते!👏!
    यात्रा पर रहने और आज नेटवर्क उपलब्ध होने के कारण मैं आज रचनाओं को देख पा रहा हूँ।
    बहुत अच्छी रचना है। बातों को सत्य और सहज ढंग से आपने व्यक्त किया है। --ब्रजेंद्रनाथ

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  16. प्रिय रोहित , जीवन में अक्सर हम जो सोचते हैं , वही मुमकिन नहीं हो पाता| संभवतः यही नियति है और यही सम्भावः ! खुद का खुद से ये संवाद तुम्हारी सभी रचनाओं से हटकर | बहुत भावपूर्ण है |

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  17. ये पंक्तियाँ बहुत विशेष लगी --

    आख़िर मैंने चाहना कम किया
    वो कहती भी रही कम का
    मगर कम भी तो कितना कम होता
    अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
    मगर.... चलो कोई बात नहीं

    यूँ ही लिखते रहो | हार्दिक शुभकामनाएं |सस्नेह

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  18. चलो कोई बात नहीं
    सामंजस्य पर उत्तम रचना

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  19. जब आवे संतोष धन!

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  20. मैंने चाहा
    वार-त्योहार पर कम से कम
    हाल चाल से वाकिफ़ होना
    दीदार ना ही सही
    मगर... चलो कोई बात नहीं ,,,, बहुत सुंदर सृजन ,

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  21. उम्दा ....बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया ..बहुत अच्छा लगा

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  22. हृदय के बहुत क़रीब लगी आपकी रचना । भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।

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