हमें भुलवा दिया जाता है
अर्थों के अनर्थों में क्या छुपा है
एक दिन की महिमा के अर्थ से
364 दिनों के अनर्थों का क्या हुआ?
या सुना दिया जाता है अनर्थों के अर्थ को निथार के
अनर्थों के लाभ को कोई जान न ले
इसलिए अर्थों की सीमा के बाहर की दुनियां नष्ट कर दी गई
ये घाव न नासूर बनता है न भरता है।
विडंबना के घाव को कुरेदते वक्त
खून नहीं पानी निकलता है
क्योंकि इस चूल्हे में जलने वाली आग,
राख तक के निशाँ गहरे दबा दिए गए।
अर्थों के अनर्थों में क्या छुपा है
एक दिन की महिमा के अर्थ से
364 दिनों के अनर्थों का क्या हुआ?
या सुना दिया जाता है अनर्थों के अर्थ को निथार के
अनर्थों के लाभ को कोई जान न ले
इसलिए अर्थों की सीमा के बाहर की दुनियां नष्ट कर दी गई
ये घाव न नासूर बनता है न भरता है।
विडंबना के घाव को कुरेदते वक्त
खून नहीं पानी निकलता है
क्योंकि इस चूल्हे में जलने वाली आग,
राख तक के निशाँ गहरे दबा दिए गए।
प्रकृति में समाज निर्माता आदमी ने
समाज में प्रकृति की कोई व्यस्था न की
इसने खुद के सिवाय सभी को मृत चमड़ी माना
वो भूल गया ईडन गार्डन से साथ में निकली औरत को।
वहां से आज तक के सफ़र में
कौनसी मानसिकता का संकीर्ण मोड़ आया
जो आपको इतना आगे पीछे होना पड़ा,
किस बात का भय था और किसको था
जो बराबर की हस्ती तेरी मुठ्ठी में आ गयी।
वो सब कुछ बन गयी तेरे लिए-
तेरे लिए क्यों बनी वो?
सागर भी, झील भी
बहती नदी भी, मोरनी भी
फूल भी, सावन की सुहावनी बूंद भी
मगर औरत औरत न बन पाई
वो पर्दे में क्यों आ गयी
क्यों जिस्म छुपाना केवल इसे ही जरूरी हो गया
हमें भुलवा दिया जाता है
अर्थों के अनर्थों में क्या छुपा है।
By- ROHIT