Friday, 5 July 2013

निशब्द

न जाने लोग,
कैसे लिख पाते हैं अपने भावों को
जब रहता हूँ नितान्त अकेला
कभी सिरहन सी,कभी मुस्कान सी
बस बहता हूँ भावों में
कलम को तो जैसे
किसी ने बांध दिया हो
एक बाढ़ सब कुछ बहाकर ले जाती है
वो शब्द, वो गहराइयाँ
बाद में रहता है
कोरा काग़ज, ताकती सी कलम
कुछ निशानों को
फिर लगता है कि
तुम में ये कला है ही नहीं
हकीकत सी, वास्तव सी।

Monday, 15 April 2013

परिचय : अनिल दायमा 'एकला'

माफ़ करना आप लोगों से एक सवाल हैं, क्या आप ज़ज्बात की गहराइयों में आँखे बंद कर बिना किसी हलचल के उतरें हैं? मैं जानता हूँ कि गहराइयाँ हमेशा डराती हैं पर जब आप 'गुरूजी' की गहराइयों में उतरेंगे तो जो आपको मिलेगा वो स्वाति नक्षत्र का मोती नहीं वो रत्न मिलेगा जिसे पाकर आप उन गहराइयों में ही डुबे रहना पसंद करेंगे।

अकेले रहते हैं पर सबके साथ रहते हैं क्योंकि इनका स्वभाव अन्तर्मुखी है। इसलिए इन्हें ब्लॉग जगत तक लाने में बहुत जतन करने पड़े।



उनके ब्लॉग व प्रथम पोस्ट का लिंक Anil Dayama 'Ekla' ,      : माँ

विनती:
मैं 'चर्चा मंच'  'नई-पुरानी हलचल''ब्लॉग बुलेटिन' से प्राथना करता हूँ कि कृपया करके इनके ब्लॉग का लिंक अपने ब्लॉग पर डालें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इनकी रचनाएँ पहुँच पाए।
                                                                          
                                                                             "आभार"

Thursday, 4 April 2013

आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (३ नवम्बर १९०० -४ अप्रैल १९४६)


                (१)
महारावल री लुट रो ज्ञात हुयो
जद "जैसलमेर में गुंडा राज"
गोपा ने लोगां म' लिख बाँटी
प्रजा रे मन म' क्रोध जाग्यो
सोयो जैसल अब जाग्यो
जगां-जगां लोगां नै महारावल रो
बहिष्कार करयो।

महारावल नै जद पतो चल्यो
आ सारी करतुतां, ओ काम करयो है गोपा नै
आदेश दे दियो सैनिकां नै
पकड़ लायाओ उस गोपा नै।

जैसल सुं बाहर हा थे आपणों संघर्ष जारी राखण खातिर 
पर आणों पडयो आप'न पिता रो पिंड दान करण खातिर।

या एक धोखे री मूरत ही
जद थे धोखे सूं पकड़या गया।

जुलम थे सहयो घणों
जुलम बो ढाहायो घणों

थाणेदार हो जुलमी गुमान बड़ो
गोपा नै हो आजादी रो मान बड़ो।

गोपा पे' यातना री खबरां
हर रोज़ छपती ही अखबारां म'
बसग्या गोपा जैसल री जबानां म'

जद भेज्यो गयो गोपा पर जुल्मां री
सच्ची बातां रो पतो लगावण नै
तो पेलां ही आतुर होग्यो गुमान बैरी
गोपा पर तेल छिड़क आग लगावण नै

गोपा न' जिन्दा जला दियो हो जेल म'
एक अमर शहीद ओर होयो आजादी रे खेल म'

पर आ कुंणसी खबर आई जेल सुं
गोपा खुद न जला लियो तेल सुं  ??

सारो जैसल उमड़ पड्यो  वीर बहादुर देखण नै
पर लोगां न' विश्वाश ना होयो ...
गोपा आत्म-हत्या कोनी कर सके है
इसमें गुमान री कोई चाल हो सके है,
कठ सुं आयो तेल जेळ म'?
कठ सुं आई माचिस जेळ म'?
सगळा ने जवाब चाईजै  ...
इस कांड र' जाँचण री माँग हुई
तो पाठक ने सौंप्यो काम जाँचण रो
गुलाम हो पाठक,पाठक सुं आत्म-हत्या करार हुई।

उस रो बलिदान व्यर्थ ना गयो
बो सोई जनता री आँखयाँ खोल गयो
महारावल रे गुंडा राज रो अंत हुयो।

बो साच्चो हो
बो आजादी रो दीवानो हो।

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                ( २ )

किसकी गिरफ्त में हो तुम
एक अनबसी-सी है
लाखों आँखों का सपना हो
फिर भी ऐसी मुठ्ठी में कैद हो
जिसे कोई दूसरा नियंत्रित करता है
हम अभी संघर्ष में हैं
इंतजार तो करो
तुम्हें जल्द वहां से
आज़ाद करवायेंगे 'ऐ आज़ादी'
तुम्हारी ही बदौलत ये 'जवाहर'
कर्ज बाँटता हैं
कर वसूलता हैं
जुल्म करता हैं
हम तुम्हें इन हाथों से निकाल कर
सम्पूर्ण 'जैसल' में फैला देंगे
तुम किसी एक की जागीर तो नहीं ...
ऐ आज़ादी हम तेरे दीवाने हैं
तुम्हें कैद कैसे रख सकते हैं।

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(दोस्तों,
आज ही के दिन (4 अप्रैल 1946) श्री सागरमल गोपा जी अमर शहीद हो गये। बात उस समय की है जब जैसलमेर पर महारावल जवाहर सिंह का शासन हुआ करता था इसका शासन बड़ा ही निरंकुश और दमनात्मक था यहाँ तक की पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने और छापने पर रोक लगा रखी थी। तभी सागरमल गोपा जी ने "जैसलमेर में गुंडा राज" नामक पुस्तक प्रकाशित करा कर जनसाधारण में बाँट दी इस पुस्तक में महारावल के दमनात्मक शासन का वर्णन था। इससे जवाहर सिंह बहुत क्रोधित हुआ। सैनिकों द्वारा पिछा करने पर गोपा जी नागपुर चले गये। 1941 में जब सागरमल गोपा जी अपने पिता का पिण्ड दान करने के लिए वापस जैसलमेर आये तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा 6 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी जेल में गुमान सिंह नामक थानेदार ने इन्हें अमानुषिक घोर यातनायें दी। जयनारायण व्यास ने पोलिटिकल एजेंट के माध्यम से सही जानकारी लेनी चाही। रेजीडेन्ट ने 6 अप्रैल 1946 को जैसलमेर जाने का कार्यक्रम बनाया। जब गुमान सिंह थानेदार को इसका पता चला तो उसने रेजीडेन्ट के जैसलमेर पहुँचने से पहले ही 3 अप्रैल के दिन गोपा जी पर तेल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया और शहर में ये खबर फैला दी की गोपा जी ने आत्महत्या कर ली। गोपा जी से किसी को मिलने नहीं दिया और 4 अप्रैल को उनकी दर्दनाक मृत्यु हो गयी।

इस शहीद का रक्त व्यर्थ नहीं गया सारे शहर में "खून के बदले खून" के नारे लिख दिए गये।   
इस मृत्यु की जाँच करने के लिए गोपलास्वरूप पाठक कमेटी का गठन किया गया लेकिन इस कमेटी ने सागरमल गोपा जी की हत्या को आत्म-हत्या साबित कर दिया। लेकिन राष्ट्रिय प्रेम की चिंगारी अब अग्नि का रूप ले चुकी थी।जैसलमेर में मीठालाल व्यास ने  1945 में ही प्रजामंडल की स्थापना की  और 30 मार्च, 1949 को जैसलमेर वृहत राजस्थान में विलीन हो गया और महारावल जवाहर सिंह का दमनात्मक शासन का अंत हो गया।
सागरमल गोपा जी के सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने 1986 में एक डाक टिकट जारी की )

                                                                                                           -By
                                                                                                            रोहित 

Monday, 1 April 2013

किसान और सियासत

वो खेतों में
अपनी फसल को
दिन-रात की लगन से
अपने पसीने से सिंचता हुआ 
बड़ी मेहनत कर
पालता हैं ..
इस बार और हर बार
बस यही सब दोहराना
जैसे उसकी आदत सी बन गयी हो
पर इस मेहनत के बावजूद भी
वो कभी अपने हालात सुधार नहीं पाता
बाज़ार ये काम बख़ूबी करता है
उसकी मेहनत मन्दी की
भेंट चढ़ जाती है, और
मेहनताना महंगाई की
इस तरह ये बाज़ार
भूख को भूख बेच देता है।
 ये सियासी जाल हैं ,

इसी सबब से
कोई केवल पांच सालों में
ये मंत्री अपनी खुद की तक़दीर बदल लेता हैं
रहने को घर,चलने को कार खरीद लेता हैं।

तो इस तरह ये देश
कृषि प्रधान बनता हैं।

   By  
-रोहित 

Friday, 15 February 2013

गज़ल 1

अच्छा है  की  मेरे  देश  में  दो  तारीखें  आती  है
दिखाने को ही सही जो संस्कृति की यादें आती है।

ये जो पश्चिम की हवा है बे-अंत, सब भुला दिया 
अपनी पुरानी ऋतुओं की जो केवल यादें आती हैं।

मुद्दतों से कुछ कर गुजरने वाले सिरफिरे नहीं देखे
सियासत के  लोगों  को  तो   केवल  बातें  आती  है।

खाली  ज़ेब  और  थकन  लिए  लेटा  हूँ  घर  में
बेटी पाँव दबाती है और मूफ़लिसी मुझे जगाने आती है।

किसकी कमी  खलती  होगी  यहाँ  शहर-ए-घर में, सोचा  है
बच्चों को दूध पिलाने आया और बाई रोटियाँ पकाने आती है।

मिलती   होगी  तालीम  कहीं  रश्क-इश्क  की  उन्हें  'रोहित'
जो हर रोज नई अदाएँ इन ख़ूबरूओं की, हमें सताने आती है।


(रश्क= इर्ष्या, ख़ूबरूओं=सुन्दरियों)

from Googl image 
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(मेरे प्यारे साथियों,
मैं अभी 2nd ग्रेड शिक्षक भर्ती परीक्षा (RPSC) की तैयारी कर रहा हूँ इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत को अलविदा कह रहा हूँ। तो जाहिर है की मैं आपके ब्लोग्स पर भी नहीं पहुँच पाउँगा ..... उसके लिए मैं दिल से माफ़ी चाहता हूँ। लेकिन जब भी लोटुंगा सबसे पहले आप सभी के ब्लोग्स पढना चाहूँगा। और हाँ ...ये मेरी पहली गज़ल है ..कैसी लगी कृपा जरुर बताना और सुझाव भी सादर आमंत्रित है।
आशा करता हूँ की आपकी दुआ, प्यार और Good  वाला  Luck  हमेशा मेरे साथ रहेगा।) 

Saturday, 5 January 2013

मायने बदल गऐ

वो परिंदा उड़ नहीं पा रहा था
दौड़े जा रहा था दौड़े जा रहा था।
अचानक पंख फैले और ठहर गया
थक गया वो, अब मरा वो अब मरा।
कभी चोंच राह की गर्द में दब जाती
कभी थके पाँव लड़खड़ाते
कंकड़ पत्थर की राहों से चोट खाकर
खून से लथपथ परिंदा अब ठहर गया।
इतने में शिकारियों ने उसे घेर लिया

"मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
 देखूं  तो  इंसानियत  के  मायने  बदल  गऐ।"

तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
परिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।

By : "रोहित"