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मैं तुम्हें देख रहा हूँ
मेरे साथ पढ़ती हुई
और साथ में ही देखता हूं
तेरे माथे पर बिंदी
छिदवाए नाक में नथ
छिदवाए कान में बालियां
गले में फसाई गयी सांकली
हाथों में पहनी चूड़ियां
पैरों में अटकाई गयी पायजेब
तब दुध में खटाई की तरह गिरती है ये सोच
कि क्या ये सब शृंगार ही है??
और तुम पढ़ती जाती हो मेरे साथ
चुप चाप बेमतलब सी।
तुमने मेरी मानसिकता के हिसाब से
अपनी आजादी को गले लगाया है
मैंने भी तेरी गुलामी का तुझे अहसास ना हो
बेहोश करने वाला एक जरिया निकाला है
"तुम सोलह शृंगार में कितनी खूबसूरत लगती हो"
और तेरा कद तेरे मन में मेरे बराबर हो जाता है।
-Rohitas Ghorela