Friday, 13 January 2012

रफ़्तार व सफ़र

सड़क पर किसी सज्जन के
कुछ दाने बिखरे थेली से  
कौन जाने कितनी मुद्दतें हुई
कुछ पंछी थे भोले-भाले से 
न कुछ सौचा न समझा  
आ बेठे बेचारे इस सड़क पर 
अब मग्न हुए चुगने में 
बिखरे हुए दानो को 
     
    फिर अचानक.....
  एक रफ़्तार

सड़क पर अब था लहू और
बिखरे हुए पंख
न थी तो वो चंद जिंदगियाँ
अब बिखर गयी जिंदगियाँ

बच्चे रफ़्तार वालो के भी हैं
बच्चे पंछी के भी,
बच्चों को इंतजार हैं की लौट के आयेंगे 
मगर अब इंतजार में हैं फर्क बड़ा
किसी का इंतजार पल भर का
तो किसी का इंतजार उम्र भर का  

ये लालच ही तो था "रोहित"
रफ़्तार को अपने घर पहुँचने का
 और पंछी को अपना पेट भरने का |  

Thursday, 5 January 2012

पल भर का साथ


काश..!  किस्मत की लकीरें हाथों में होती
फिर इतना रिस्क मैं जरुर लेता
की हर रोज बदल डालता चाकू से इन लकीरों को
फिर देखता क्या ये बदकिस्मती भी साथ छोड़ देती हैं ?


सुनो एक कटी पतंग की जुबानी क्या कहे 
मुसीबत में पक्की डोर भी साथ छोड़ देती हैं
अब मुसीबतों से बच के निकलना चाहे तो
झोंका, शन्सनाती हवा भी साथ छोड़ देती हैं

चाहत है ऐ आसमाँ तेरी गहराई नापने की
इस चाहत में अमीरी भी साथ छोड़ देती हैं,
इस दुनियां में करोड़पति की है पहचान बड़ी
गरीबी में तो पहचान भी साथ छोड़ देती हैं,

किस्मत न हो अगर किस्मत में तो
ये दुवा-दारू भी साथ  छोड़  देती हैं
मरे हुए शव पानी पर यूँ तैरा ही करते हैं
डूबने के लिए जिन्दगी भी साथ छोड़ देती हैं,

साथ कौन देता है भला इस दुनिया में  "रोहित"
अंधेरों में तो परछाइयां भी साथ छोड़ देती हैं |