दोस्तों इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ की काफी दिनों से मैंने कोई ब्लॉग नही लिखा,और आपके ब्लॉग पढ़ नहीं पाया; ये सब मेरे exams की वजह से हुआ.
इतने दिनों के दौरान बहुत सारे विचार आये कुछ तो जहन में है पर कुछ exams की जदोजहद में सिमट कर रह गए।
इन दिनों के बिच एक महत्वपूर्ण दिन आया और वो था "शहीद दिवस" २३ मार्च. तो भला मैं इस पर लिखे बिना मैं कब रहने वाला था, चाहे फिर exams ही क्यूँ न हो....
साहसी, रंगरेलियां मानाने की उम्र में ही
जिम्मेदारी आजाद ए हिंद चक चलिए,
मारने दुष्कर्मी सांडर्स को
देसी कट्टा चक चलिए,
क्या जोश था, क्या जनून था
नारा 'इंकलाब जिंदाबाद' दे चलिए,
वो तो केवल उनका धुंवे वाला बम था
जो विदेशी सत्ता को डगमगा चलिए,
मन्त्र दिया आजादी का शेर ऐ 'आजाद' ने
'भगत'-ऐ-आजादी ऐसा देखा नही
शुष्क पड़ी सोला को चिंगारी दे चलिए,
शायद ही देखा हो ऐसा सुख 'सुखदेव' ने
बलिदान अपना दे, सुख दे चलिए,
देखो गुरु तो गुरु ही होता है 'राजगुरु'
राज अपना भी फिरंगी को दिखा चलिए,
लेकिन छलिए छल से छलावा कर चलिए
त्रिदेव के खोफ से दिनों दिन पहले फाँसी तोड़ चलिए |
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वो एक मिशाल थे जोशीले युवाओं के लिए
एक जनून था उनमे अपने हक के लिए
क्या जोश था अपनी आजादी के लिए
क्यों लफ़्ज भी कम है उन वीरों के लिए
उन्हें सत सत नमन करता हूँ मैं "रोहित"
उनके बलिदान और उपहार-ऐ-आजादी के लिए,
भगवान, क्या एक बार फिर भेजेंगे उन्हें
मेरे देश के लिए, मेरे भारत के लिए ।
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वो एक मिशाल थे जोशीले युवाओं के लिए
एक जनून था उनमे अपने हक के लिए
क्या जोश था अपनी आजादी के लिए
क्यों लफ़्ज भी कम है उन वीरों के लिए
उन्हें सत सत नमन करता हूँ मैं "रोहित"
उनके बलिदान और उपहार-ऐ-आजादी के लिए,
भगवान, क्या एक बार फिर भेजेंगे उन्हें
मेरे देश के लिए, मेरे भारत के लिए ।