Monday, 26 September 2011

तमन्ना व शपथ



तुम ज्वाला हो तो मै बर्फ हूँ
तुम्हारे पास से गुजरूँ तो पिंघल जाऊँ,

तुम फूल हो तो मै पत्थर दिल हूँ
अगर तुम चाहो तो खुसबू भी बन जाऊँ,

तुम बारिश हो तो मै सूखी दरिया हूँ
बारिश कभी ऐसी हो की किनारों से उफ़न जाऊँ,


तुम इसी तरह विपरीत मेरे बने रहो
जीतने की आदत है मेरी तुझे जीतता चला जाऊँ, 

तुम हवा हो तो मै बादल बनने की तमन्ना हूँ
की बिन तेरे एक कदम भी न चल पाऊँ,

तुम दुरी हो तो मै रफ़्तार हूँ
की तमन्ना नही तुझसे दूर चला जाऊँ,

तुम अक्ष हो तो मै आंसू हूँ
गम या ख़ुशी साथ न छोड़ू दोनों में चला आऊँ,

क्यूँ  तुं अपने चहरे पर गुमान करती है 'रोहित'
मै तेरे दिल को पहचानता हूँ और इसी पर मरता चला जाऊँ |

Wednesday, 21 September 2011

अनोखी ऋतूवें


बसंत के पीले कपड़ों को
जांबाज़ पहन के निकले थे 
मर मिटने के उस रंग को
इक शाम पहन के निकले थे,
भर जोश कदम से बढ चले
अपने वतन के वास्ते 
पर बस राहों में मरने की, चुनोती अभी बाकि है,

सावन के आने तक
जयपुर  निशाना बन गया ,
फिर दिल की दिल्ली दहल गयी 
अब चलती मुंबई भी ठहर गयी और खूब रोई
आँखों में आँसूं अभी बाकि है,

अब बसंत ऋतू की मौज है
और कलियों में रंग भरे हुवे
बस देश की आँखों के फूलों में
वो जोश भरना बाकि है

जब फाल्गुन आया देश में
था बस कुर्बानी के लिए,
और बसंत के बसंती चोलों पर
वो लहू की बुँदे अभी आकी है,

अब माताएं आकर पुछ रही
बेटों का मेरे क्या हुवा,
बारूद के छलनी कपड़ों में
वो खुसबू अभी बाकि है,

की बर्बादी बता सकती नही कवियों की कल्पनाये भी ,
पर बस लिखने की एक छोटी सी कोशिश अभी बाकि है |

(ये कविता मुझे अमित भोजक ने दी थी और इसको रचने वाले उनके छोटे भाई हैं )

Sunday, 18 September 2011

आदर्णीय अजमल कसाब-तेरी ओकात


सौचता हैं आंतकी जब वह थक जाऐ
की भारतीय जेलों में आराम फ़रमाया जाऐ,

जेलों में सेवा होती है इनकी मेहमानों की तरह
की खातेदारी में कोई उनकी कमी रह  न जाऐ,

अरे कसाब तूँ सही जगह पर आया है 
कोन सोचता है तुझे फाँसी पर लटकाया जाऐ,

वरना तेरी ओकात तो इतनी सी ही है
बिन बताये म़ोत का तोहफा दे दिया जाऐ,

सोचो जिसने आपनो पर गोलीया चलाई है
उस कमीने को वकील क्यूँ उपलब्ध करवाया जाऐ ,

शहीदों की कुर्बानियों को भुला दिया है आपने
कोई एक कारण तो हो की क्यों न उनकी इच्छाओं का मान किया जाऐ,

अरे नालायकों प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या 'रोहित'
चलो इसी बात पर अमेरिका से कुछ सीख लिया जाऐ |
 

Saturday, 17 September 2011

अनजान नेताजी

ताज के हमले से नही संभले 
क्यों नही सम्भले ये नही जानना,नेताजी
दिल की दिल्ली के हमले से सम्भलना होगा आपको,

राजनीति से कोसों दूर है खेल 
खेलों में भी राजनीति खेल गये नेताजी
कितने घोटाले किये है बताना होगा आपको,

किसानो और जनता की दयनीय दशा देखो
दाम बड़ते चले गये क्यूँ ,नेताजी
पूछने वाला तो कोई होगा आपको

किसान जब अपनी पर उतर आये
अपनी मन मानी भूल जाओगे नेताजी
फिर मांग कर खाना होगा आपको,

जनता को आजमाना छोडिये 'रोहित'
की जनता की शक्ति का अंदाजा नहीं होगा आपको |

Wednesday, 14 September 2011

dosti

उजाड़ सी होती है बगेर दोस्त के जिंदगी 
जिससे अपनी पहचान हो, वही होती है दोस्ती,

जिन्दगी एक समुंदर की तरह है
डुबते हुऐ  को तिनके का सहारा होती है दोस्ती,

गम अगर हो तो आधा समझो
खुशियाँ दुगुनी करने वाली होती है दोस्ती,


दुसरे देख कर जलते हों 
ऐसी हो अपनी सच्ची दोस्ती,


हर बात कहने की जरूरत क्या 
इसारा भी समझने वाली होती है दोस्ती,


मेरे मन की भड़ास किस पर निकालूँ
लो फिर से याद आई अपनी दोस्ती,

लाख छुपाये दुनिया से 'रोहित'
दोस्त के रहस्यों का खजाना होती है दोस्ती |

Tuesday, 13 September 2011

Desh Ke Naam

कौन भुला है वह खुनी मंजर 
जो याद दिलाने फिर चले आये,

मुंबई के जख्म अभी भरे नही
की दिल्ली का दिल दहलाने फिर  चले आये,

ओर कहीं तो चली नही 
की लौट के भारत फिर चले आये,

नेता जी को भनक लगी की ब्लास्ट हुआ है दिल्ली में
की झूटी हमदर्दी दिखाने फिर चले आये,

सौचा था की  देश के कुछ नाम लिखूं 
आँखों में अस्क फिर चले आये,

 इस देश से कहाँ चले गये वो 'रोहित' 
भगत आजाद, की जरूरत है उनकी, फिर चले आये |