Friday, 30 November 2012

प्यासी नज़र 3

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दरिया की मोहब्बत तो देखो
इस मौसमी बरसात से
बरस के बरखा चली गयी
 दरिया किनारों से उफन आई।

कुछ दिन बरखा आने की आश में
मंद मंद बहती रही
एक ऋतु का अंत हुआ
अब तली उसकी पत्थरा सी गयी
और दरारों का फटना शरु हुआ ..
              ("इंतजार")


           By:-  
       ~ रोहित ~

 

प्यासी नजर

प्यासी नज़र-2

Tuesday, 6 November 2012

रोशनी तेरे नाम की

तेरी चमकती रोशनियों  के नीचे 
दबता सा गया
यूँ तो न जाने क्यूँ
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मेरी परछाइयों को
एक तलब सी थी
तेरी चमक में खो जाने की
कोई जहाने-नौ बसाने  की

तुझसे नजदीकियां  बढती  गयी  अज़ीज़
तो मेरी परछाई रफ़्ता-रफ़्ता सिमटती गयी

आज मेरी अक्स-नक्स का
वजूद तुम्ही से हैं
मैं, तुम हूँ और
तुम से ही मैं हूँ।

By-
"रोहित"

जहाने -नौ= नया संसार.  अज़ीज़=प्रिय.   रफ़्ता-रफ़्ता=धीरे-धीरे.  अक्स=छवि.   नक्स=निशान.                                              

Thursday, 1 November 2012

घर कहीं गुम हो गया

देखो घर कहीं गुम होने जा रहा हैं
बेटा, बाप से न्यारा होने जा रहा हैं

क्या मंज़रे-पुरहौल है इस पिता के लिए
फिर भी पंडित शुभ और मंगलकामना के  मंत्र
पढ़ रहा है एक नये घर में,उसके बेटे के लिए।

ख़लिशे-तर्के-ताल्लुक कितना रुला रही थी पिता को
गमजदा दिल लिए हुए पड़ा है
 किसी वीरान कोने में
याद कर रहा हैं वो पल
वो दशहरा ,वो दीपावली
वो रंगा-रंग होली
वो बेटे की बच्चपन वाली ठिठोली,
सब चला गया, सब आँखों के सामने तैर रहा हैं।

एक  हरा - भरा पेड़  बेशाख-शजर  हो गया
  जिस प'खिलने थे फूल बेबर्ग-शजर हो गया।  

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अँधेरे कोने में बैठा दिले-तन्हा, 
दम-ब-खुद सा ,पिता अब 
इस दर्द को अपने अन्दर समा रहा है
दी हुई क़ूल्फ़तें अब कबूल कर रहा है

दर्दे-ख्वाब ये नजर आ रहा है, जिन्दगी
जो बची है बिना सहारे के काट रहा हैं
देखो घर कहीं गुम होने जा रहा हैं
बेटा, बाप से न्यारा होने जा रहा हैं।


By
~रोहित~



(इस कविता का शीर्षक  मख्मूर सईदी जी की एक किताब  "घर कहीं गुम हो गया" से लिया गया हैं।)


 मंज़रे-पुरहौल=डरावना दृश्य.   ख़लिशे-तर्के-ताल्लुक=सम्बन्ध विच्छेद होने की कसक.    गमजदा =दुःख से भरा.  बेशाख-शजर=बिना टहनी का पेड़.   बेबर्ग-शजर=बिना पत्तों का पेड़.   दम-ब-खुद सा=मौन.   क़ूल्फ़तें=कष्ट.