Wednesday, 17 October 2012

मेरे साथियों...

भाग्य लेकर ही जन्मा था मैं
 इस भाग्य विधाता देश में
आज 21 वर्ष हो गए
मेरे भाग्य को आजमाते -आजमाते
ऐ  मेरे भाग्य विधाता देश के लोगों  
न जाने कितनी जिंदगियां
यूँ ही बित गयी
भाग्य आजमाते आजमाते
इस  देश के लोगों का भाग्य
न जाने कब से
चंद सत्ताधारी लोग
निर्धारित करने लगे हैं। 

सोये हुवे ईंसा का भाग्य
कभी चमका नही किसी देश में।
उठो और एकजुट हो जाओ
की कोई ओर चारा नहीं मेरे देश में

बदलना होगा इन नीतियों को
जड़ से उखाड़ना होगा इन  लालची भेड़ियों को
उन भेड़ीयों को जिन्होंने
अपनी सात पुस्तों को असोआरम की जिन्दगी दे दी
और जनता को छोड़ दिया अपने हाल और भाग्य पर




घोटाले दर घोटाले करते जा रहे है
करोड़ों -अरबों रूपये देश के खाते जा रहे हैं।

2G, कोयला, कोमनवेल्थ,,,
राजा, कलमाड़ी खुर्शीद
वाड्रा करोड़ों डकार के खड़ा हैं  
इन जेसे न जाने कितनो की पोल खुली है
फिर भी सरकार न जाने क्यूँ चुप खड़ी है 

शरद पवार बड़ा खुश हैं 
गेहूँ और चावल  निर्यात की बात कर रहा है 
कितना मुर्ख है वो
अरे खुद के देश में झाँक कर तो देख 
कितने ही देशवाशी भूखे सोने को मजबूर 
फूटपाथ पर नंगे ही पड़े है 

इन सांसदों को अब 
भुलाने-फुसलाने की आदत सी पड़ गयी 
की जब भी मक्खियाँ भिन्न भिनाने लगे 
प्रकाश की एक किरन के साथ अँधेरा कर दीजिये 
उस अँधेरे में हवाहवाई कर दीजिये।
जब भी इनकी पोल खुलती है 
कुछ दिनों बाद दूसरी पोल खुलती है 
जनता न पिछला याद  रख पाती  हैं 
न आगे का कुछ ध्यान रखती हैं,

 
जनता कब अपना बावलापन छोड़ेगी 
कब  बन्दरों की जगह इंसानों को चुनेगी
अगर हम लोग सही सांसद चुनेगें 
तो न ही अन्ना के अनसन की जरूरत 
और न ही केजरीवाल को राजनीति में  
आने की जरुरत होगी।