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प्यार की नियत, सोच, नज़र सब हराम हुई
इसी सबब से कोई अबला कितनी बद्नाम हुई.
इंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई
नहीं,तेरा पलट के देखना, तेरा पुकारना बरमल्ला
अपनी मोहब्बत तो तेरे चले जाने से आम हुई
बढ़ी हुई दूरियां मोहब्बतों में तब्दील हो गयी
बच्चपन तो बच्चपन था जवानियाँ नीलाम हुई
सब थे उसकी मौत पर आये हुए जो दिन में मरी
न था तो कोई उस मौत पर जो उसे हर शाम हुई.
"रोहित"