मौन के बाद भी जो मौन रहे
परिवर्तन, मद, अभिमान और गुमान की
उथल-पुथल के बाद भी
शेष रह जाए वो मौन; है संस्कृति
गर जाग उठा है संस्कृति-रक्षा का भाव
देख किसी का मात्र ढब - मज़हब अलग
हो गए हों एक मनुज के खिलाफ़
उसके धर्म, रंगो-रूप के ख़िलाफ़
या हों बंदगी, तौर-तरीकों के खिलाफ़
या आई हो आपकी बातों में नफ़रत अलग
तो ये देश की संस्कृति नहीं,
जानो, है आपकी अपनी विकृति-
जो युगों से है ठोस बहुत
नफ़रत-अपराध के अलवा कुछ सकी समेट नहीं.
और आप हैं एक तुच्छ
आपका अंश तक रहेगा शेष नहीं
आप के लिए संस्कृति का अथाह मौन रहेगा अछूत.
देश की संस्कृति ने तो स्वीकार किए हैं
प्रत्येक नागरिक के कर्मों, धर्मों
रंगों, बंदगी और तौर-तरीकों को
यहाँ तक कि कुछ स्वार्थों को.
लेकिन जब आपकी बातों से-
बलात चुपी के बाद जहनों में जहर रहे भरे
देश का कोई हिस्सा हिंसक बना रहे
नागरिकों का हिंसा के बाद हिंसक बना रहना
अक्ल का अँधा बना रहना
क्रांति के बाद क्रांति को आतुर रहना,
विकृति है, संस्कृति नहीं.
संस्कृति - विकृति में
अंतर मिटा देना अपराध है
मौन के बाद भी मौन शेष रहे
वही शांत, तरल, व्याप्त व्यापक
देश की संस्कृति है.
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अच्छी कविता. बधाई आपको
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन किया आपने भाई। बधाई 👌
ReplyDeleteअति सुंदर सृजन, ताली एक हाथ से नहीं बजती
ReplyDeleteप्रिय रोहित, बहुत बड़ी टीस है इस अभिव्यक्ति में! मौन शायद किसी समस्या विशेष का हल नहीं है! और किसी एक को निशाना बनाकर पीड़ा पहुंचाने का प्रयास
ReplyDeleteसुसंस्कार नहीं ,एक विकार है! भारत की संस्कृति में सबको आत्मसात करने की सुदीर्घ परंपरा रही है। उसकी उदात्त अविरल धारा में हर कोई समाहित हो उसीका अभिन्न अंग बन गया।पर संस्कृति को विकृति में बदलने के कुत्सित प्रयास मानवतावादी मूल्यों के समानान्तर चलते रहते हैं, भले वे अपनी कोशिशों में सफल हों या न हो। पर एक जागरुक बुद्धिजीवी इन सही और गलत में अन्तर बता कर जड और आत्ममुग्ध
लोगों को चेताने का प्रयास अवश्य करता है। और हर एक को खुद में समान रूप से जो अंगीकार करती है उसी विराट भावना का नाम भारतीय संस्कृति है ये उसका मौन नहीं अपितु उसका विराट स्वरूप है उसी के चलते सदियों से उसका अस्तित्व कायम है। एक बहुत ही गंभीर विषय की गहनता से पड़ताल करती रचना के लिए हार्दिक आभार।
मौन के बाद भी जो मौन रहे
ReplyDeleteपरिवर्तन, मद, अभिमान और गुमान की
उथल-पुथल के बाद भी
शेष रह जाए वो मौन; है संस्कृति
गहन भावों को परिभाषित करना आपकी लेखनी की विशेषता है ।चिन्तनपरक सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई ।
बेहतरीन रचना भाई जी 🎊
ReplyDeleteबहुत ही गहन विचारों का चिंतन और फिर उसे लेखनी में उतारना,कमाल है लेखनी का,बहुत सुंदर ।आदरणीय शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसुंदर, सार्थक, मर्मस्पर्शी, समसामयिक यथार्थ परक रचना
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