Wednesday, 21 February 2024

तुम हो तो हूँ

तेरे बाद 
ये शांत पते यूँ ही आँधियों में फड़फड़ाते रहेंगे 
तेरे बाद 
ये शांत नदी बरसात के दिनों यूँ ही शोर मचाती रहेगी 
तेरे बाद 
किसी कच्चे रस्ते की धूल सफ़ेद पोशाकों पर पड़ती रहेगी 

तेरे बाद 
गाँव के नुक्क्ड़ों पर ताश की बाजियां 
चार लोगों की हथाइयाँ 
भूख मारने को भिनभिनाते लोग
गिले-शिकवों में यूँ ही बसती रहेगी बेबसी  
कुछ भी तो न ठहरेगा 

मैं शांति के इस उद्धण्ड स्वभाव को कोसता हुआ 
नदी के किनारे से उठ कर 
मिटटी से सनी सफ़ेद पोशाक पहने 
कच्चे रस्ते पर चल दूंगा 
समाज के सारे दायरे तोड़ दूंगा 
तेरे बाद...  
                                     By- Rohit

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15 comments:

  1. बेहतरीन रचना
    आभार..
    सादर

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  2. फूलेंगे हरसिंगार,
    प्रकृति करेगी नित नये शृंगार
    सूरज बनेगा जोगी
    ओढ़ बादल डोलेगा द्वार-द्वार
    झाँकेंगी भोर आसमां की खिड़की से
    किरणें धरा को चूमकर करेगी प्यार
    मैं रहूँ न रहूँ...
    आप की रचना पढ़कर मुझे मेरी लिखी कुछ पंक्तियां याद आ गयी।
    बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने मिली।

    सादर
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. शांति का उद्धण्ड स्वभाव। ! सुंदर विरोधाभास, सराहनीय रचना

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  4. बहुत सुंदर सृजन अभिनव भावाभिव्यक्ति।

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  5. ख़ूबसूरत रचना, शुभकामनाएं मान्यवर ।

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  6. मैं शांति के इस उद्धण्ड स्वभाव को कोसता हुआ
    नदी के किनारे से उठ कर
    मिटटी से सनी सफ़ेद पोशाक पहने
    कच्चे रस्ते पर चल दूंगा
    समाज के सारे दायरे तोड़ दूंगा
    तेरे बाद...
    वाह!!!
    अद्भुत एवं लाजवाब सृजन ।

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  7. मिटटी से सनी सफ़ेद पोशाक पहने
    कच्चे रस्ते पर चल दूंगा
    समाज के सारे दायरे तोड़ दूंगा

    क्या बात है 💐💐

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  8. अंतिम धमकी भरा छंद सबसे बेहतरीन लगा।

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  9. बहुत सुंदर सारगर्भित रचना।

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  10. बहुत सुंदर

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  11. बहुत अच्छी कविता. बधाई और शुभकामनायें

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  12. बहुत सुंदर रचना,

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