तेरे बाद
ये शांत पते यूँ ही आँधियों में फड़फड़ाते रहेंगे
तेरे बाद
ये शांत नदी बरसात के दिनों यूँ ही शोर मचाती रहेगी
तेरे बाद
किसी कच्चे रस्ते की धूल सफ़ेद पोशाकों पर पड़ती रहेगी
ये शांत पते यूँ ही आँधियों में फड़फड़ाते रहेंगे
तेरे बाद
ये शांत नदी बरसात के दिनों यूँ ही शोर मचाती रहेगी
तेरे बाद
किसी कच्चे रस्ते की धूल सफ़ेद पोशाकों पर पड़ती रहेगी
तेरे बाद
गाँव के नुक्क्ड़ों पर ताश की बाजियां
चार लोगों की हथाइयाँ
भूख मारने को भिनभिनाते लोग
गाँव के नुक्क्ड़ों पर ताश की बाजियां
चार लोगों की हथाइयाँ
भूख मारने को भिनभिनाते लोग
गिले-शिकवों में यूँ ही बसती रहेगी बेबसी
कुछ भी तो न ठहरेगा
कुछ भी तो न ठहरेगा
मैं शांति के इस उद्धण्ड स्वभाव को कोसता हुआ
नदी के किनारे से उठ कर
मिटटी से सनी सफ़ेद पोशाक पहने
कच्चे रस्ते पर चल दूंगा
समाज के सारे दायरे तोड़ दूंगा
तेरे बाद...
तेरे बाद...
By- Rohit
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शानदार 🎊
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteआभार..
सादर
फूलेंगे हरसिंगार,
ReplyDeleteप्रकृति करेगी नित नये शृंगार
सूरज बनेगा जोगी
ओढ़ बादल डोलेगा द्वार-द्वार
झाँकेंगी भोर आसमां की खिड़की से
किरणें धरा को चूमकर करेगी प्यार
मैं रहूँ न रहूँ...
आप की रचना पढ़कर मुझे मेरी लिखी कुछ पंक्तियां याद आ गयी।
बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने मिली।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बेहतरीन रचना 🙏
ReplyDeleteशांति का उद्धण्ड स्वभाव। ! सुंदर विरोधाभास, सराहनीय रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन अभिनव भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteख़ूबसूरत रचना, शुभकामनाएं मान्यवर ।
ReplyDeleteमैं शांति के इस उद्धण्ड स्वभाव को कोसता हुआ
ReplyDeleteनदी के किनारे से उठ कर
मिटटी से सनी सफ़ेद पोशाक पहने
कच्चे रस्ते पर चल दूंगा
समाज के सारे दायरे तोड़ दूंगा
तेरे बाद...
वाह!!!
अद्भुत एवं लाजवाब सृजन ।
मिटटी से सनी सफ़ेद पोशाक पहने
ReplyDeleteकच्चे रस्ते पर चल दूंगा
समाज के सारे दायरे तोड़ दूंगा
क्या बात है 💐💐
अंतिम धमकी भरा छंद सबसे बेहतरीन लगा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता. बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,
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