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google से ली गयी |
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
फिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?
तुम पुछ रहे हो तो बतला रहा हूँ मैं
जूं तक मगर रेंगने वाली नहीं
मेरे आखिरी वक्त पर
मेरे मृत शरीर पर तुम
थोंप ही दोगे तथाकथित धर्म अपना.
सुनो! मानवता रही है मुझ में
सच को सच कहा है, खैर
भैंस के आगे बीन क्यों बजाऊं-
तुम एक दायरे में हो
आभासीय स्वतन्त्रता लिए हुए.
मेरा मुझ में निजत्व है शामिल
घृणा है इस गुलामी से
अब ना कहूँ कि किस धर्म से हूँ
थोडा कद बड़ा है मेरा
इंसान हूँ मगर
तुम तो शैतान कहो मुझे
ये तो मन की मन में रहेगी तेरे
कि भविष्य में ना कोई मेरी पदचाप ही बचे
ना तुम्हारा धर्म बाँझ हो.
By-
रोहित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-05-2018) को "ये क्या कर दिया" (चर्चा अंक-2960) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 04 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!!!
ReplyDeleteहर बार रूप बदल-बदलकर पैदा होता रहता है इंसान।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteभविष्य में ना कोई मेरी पदचाप ही बचे
ReplyDeleteना तुम्हारा धर्म बाँझ हो....
एकदम गंभीरता से, हर पंक्ति को ध्यान से समझकर पढ़ने पर इस कविता में छिपे गंभीर भाव से साक्षात्कार होता है जो कि असाधारण है....
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
फिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?
लिखते रहें रोहितास जी। हार्दिक शुभकामनाएँ।
बस आप जैसे पाठक ही चाहिए मुझे।
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आते रहिएगा
जरूर !
DeleteNice Lines,Convert your lines in book form with
ReplyDeleteBest Book Publisher India
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बेहतरीन सृजन...,बहुत कुछ सोचने को प्रेरित करता हुआ.
ReplyDeleteजला दिया,दफना दिया,बहा दिया
ReplyDeleteफिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो
बेहद तीखे तेवर से शुरु की गयी रचना का स्वाद थोड़ा कड़वा सही पर सारयुक्त भाव के मिठास ने कितना सार्थक संदेश दिया है...बहुत सराहनीय...वाह्ह्ह👌
आपकी कविता के सम्मान में-
किसी भी जाति धर्म का होने से पहले
तुम एक सच्चा इंसान बनो
दया,प्रेम का पावन दीप जलाओ
मनुष्यता का अभिमान बनो
वर्तमान संदर्भ की गम्भीरता को अभिव्यक्त करती सारगर्भित, विचारणीय प्रस्तुति।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर रचना है रोहित जी
ReplyDeleteसच कहा कि शैतान का कोई मजहब नहीं होता.बहुत सुन्दर सृजन रोहितास जी. बधाई
ReplyDeleteमेरा मुझ में निजत्व है शामिल
ReplyDeleteघृणा है इस गुलामी से
अब ना कहूँ कि किस धर्म से हूँ
थोडा कद बड़ा है मेरा
इंसान हूँ मगर
तुम तो शैतान कहो मुझे
ये तो मन की मन में रहेगी तेरे
गूढ़ अर्थ लिए गंभीर भावो से सजी शानदार अभिव्यक्ति..... किसी धर्म, जाति से विलग मानवता का संदेश देतीभावपरक रचना....
वाह!!!
अनुपम सृजन ....
ReplyDeleteजिसका निजत्व सचेत है वह धर्म का अंधानुगामी नहीं होता मानवीयता उसके लिये सर्वाधिक महत्व रखती है.
ReplyDeleteऐ मुलहिद ज़रा सी हम्दो-सना रखते,
ReplyDeleteक़ब्र तक जाने की फिर तमन्ना रखते..,
वसीयत न मुसद्दिक़ न कोई मुरब्बी,
ढोने वाले तिरी मैय्यत को कहाँ रखते..,
आज के दौर में इंसान शैतान ही साबित किये जाते हैं ... और शैतान मजहब के अनुसार पहचाने जाते हैं ....
ReplyDeleteचिंतनपरक सुन्दर , सार्थक रचना , बधाई !
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ReplyDeleteसुनो! मानवता रही है मुझ में
सच को सच कहा है, खैर
भैंस के आगे बीन क्यों बजाऊं-
तुम एक दायरे में हो
आभासीय स्वतन्त्रता लिए हुए.-------!!!!
समाज का सच कितना भी कडवा क्यों ना हो , कवि अपना धर्म कभी नहीं छोड़ते | अदृश्य समाजघाती ताकतें जो अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए समाज को मिटाने में गुरेज नहीं करती उन्हें निर्भीकता से आइना दिखा ती रचना के लिए आप बधाई के पात्र हैं आदरणीय रोहित जी |बहुत ही विचारणीय रचना के लिए साधुवाद |
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२१ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
ReplyDeleteफिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?...बहुत सुंदर सृजन
सादर
जला दिया,दफना दिया,बहा दिया
ReplyDeleteफिर भी पैदा होते रहते हो; हे शैतान
तुम किस धर्म से हो ?...बहुत सुन्दर सृजन
सादर
वाह गहरे भावों का उद्घाटन,हर मानसिक बेड़ी तोड़ने का खुला आह्वान करती तीखी पर खरी अभिव्यक्ति मानवता से दूर करे वो कैसा धर्म वाह अप्रतिम अद्भुत।
ReplyDeleteRohit jigar... apke channel pe hazri lagane aya tha...very impressed with your work. Keep up the good work. Long live the love of people for spreading love!
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