चलो ले चलता हूँ
घिसे-पिटे हवाई पट्टी से
एक घाटी की जानिब.
होंगी तुझे आसमां की चाह
मगर ये भी चाह निज मन की नहीं
हवाबाज़ी है सो बहकावे हैं भ्रम है
या भागना है निज पीड़ा से.
व्यर्थ की कोशिश है
उड़ने को पंख तुझे मिले ही नहीं.
उड़ान तो निजत्व से झगड़ा है
होना है आत्मसात तो गहराई में उतर.
संदली हवा मदहोश करे है
एक प्रेरणा उतरते जाने की.
यहाँ मिलो दर्द से गले तुम
बैचेनियों की दरिया में गोते लगाओ
जहाँ अथाह शांति है
और गहरे में उतरते राह पर
थकान को भी आराम करते पाओ
अब गुलों में अजब सुगंध है
पतों की सरसराहट भी धुन है.
जब कल का महसूस होना
आज दिखाई देने लगे-
शरीर कुछ त्याग रहा
ग़म ,परेशानी,पीड़ा,विचार
सब बीती बातें हुईं
गहराई के घोर अंधकार में
जो खो गयीं.
बोझ छंटने लगा
बोझ छंटने लगा
बाद इसके शरीर भी छूट गया
पार तुमने पा लिया
प्रकाश पुंज सामने है
अब जो तुम हो
बहिष्कृत इंसा
पारदर्शी बुद्धत्व प्राप्त
ज्ञान रहित.
by
-रोहित
सुंदर भाव दर्शाती बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteबहरीन आध्यात्मिक भाव लिए ... गज़ब ...
गहराई लिये हुऐ एक सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुंवर नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबेहतरीन भावों से सजी प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबेहतरीन भावों का निदर्शन कराती उत्तम रचना
ReplyDeleteबेहतरीन भावों का निदर्शन कराती उत्तम रचना
ReplyDeleteवाह रोहितास भाई क्या लिख दिया हैं एक अनंत एक ख्वाब एक उम्मीद को पाने की कहानी हैं ये नज़म।
ReplyDeleteजब कल का महसूस होना
आज दिखाई देने लगे-
शरीर कुछ त्याग रहा
ग़म ,परेशानी,पीड़ा,विचार
सब बीती बातें हुईं
ग़ालिब का एक शेर याद आता हैं
"मुश्किलें इतनी पड़ी मुझपेके आसा हो गयी'
पा लिया सबकुछ तो कुछ पाना कैसा।ऐसे ही कुछ अनकहे प्रश्न हैं।बहुत बढ़िया लिखा हैं जनाब।बधाई।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुंदर भावों से सजी बेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteउड़ान तो निजत्व से झगड़ा है
ReplyDeleteहोना है आत्मसात तो गहराई में उतर.
वाह!!!
लाजवाब रचना आध्यात्मिक भाव लिए....
वाह!!!
उड़ान तो निजत्व से झगड़ा है
ReplyDeleteअहा! दर्शन से भरी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
वाह..भावपूर्ण रचना, एक पल ऐसा भी होता है जब उड़ान और गहराई एक हो जाते हैं..
ReplyDeleteउड़ान तो निजत्व से झगड़ा है
ReplyDeleteहोना है आत्मसात तो गहराई में उतर.
संदली हवा मदहोश करे है
एक प्रेरणा उतरते जाने की.
यहाँ मिलो दर्द से गले तुम
बैचेनियों की दरिया में गोते लगाओ
जहाँ अथाह शांति है !!!!!
बहुत ही नया जीवन दर्शन जाना आज आपके शब्दों के माध्यम से - प्रिय रोहित जी | बहुत ही अनुपम भाव है सचमुच उड़ान एक जिद ही तो है असलियत तो गहराइयों में छिपी होती है | कुछ नया ले जाते हुए आपको मेरी ढेरों शुभकामनायें !!!!!!!!
ReplyDeleteउड़ान तो निजत्व से झगड़ा है
होना है आत्मसात तो गहराई में उतर.
बेहतरीन रचना 👌
भावपूर्ण सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteज्ञान रहित या फिर केवल्य ज्ञान, अज्ञान से रहित शुद्धतम।
ReplyDeleteअप्रतिम।
ज्ञान रहित ही सही है
Deleteआभार
उड़ान तो निजत्व से झगड़ा है
ReplyDeleteहोना है आत्मसात तो गहराई में उतर.
....बहुत ही गहरे उतरते भाव