सरकार; आप समझते हो उतना आसान तो नहीं
काम से बे-काम होकर आत्मनिर्भर होना आसाँ तो नहीं
हम आदमीयों का सिर्फ आत्मनिर्भर होना
पेट में धंस रही आँतड़ियों को ओर अंदर तक धकेलना हो सकता है
आत्मनिर्भरता यानी आलोचनाओं का मर जाना हो सकता है
आलोचनाओं का मरना यानी
पेट में धंस रही आँतड़ियों को ओर अंदर तक धकेलना हो सकता है
आत्मनिर्भरता यानी आलोचनाओं का मर जाना हो सकता है
आलोचनाओं का मरना यानी
लोकार्पण के समय अवसाद से भर जाना हो सकता है
जब अवसाद एकांत का परिणाम है
तो हमें किस दिशा की ओर बढ़ना है, सरकार?
किसी का साथ छोड़ देने से आत्मनिर्भता नहीं आती
सभी का साथ ही इसकी प्रयोगशाला है
सरकारें अपने मुद्दे
आत्मनिर्भरता की मुर्दा
खिड़की पर लगे कफ़न जैसे पर्दे से ढंक दे
हम नागरिक जो कुछ काम के थे
बेक़ाम होकर -
हमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
ये आप के लिए खतरा है।
जब अवसाद एकांत का परिणाम है
तो हमें किस दिशा की ओर बढ़ना है, सरकार?
किसी का साथ छोड़ देने से आत्मनिर्भता नहीं आती
सभी का साथ ही इसकी प्रयोगशाला है
सरकारें अपने मुद्दे
आत्मनिर्भरता की मुर्दा
खिड़की पर लगे कफ़न जैसे पर्दे से ढंक दे
हम नागरिक जो कुछ काम के थे
बेक़ाम होकर -
हमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
ये आप के लिए खतरा है।
from google image |
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इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
ReplyDeleteअभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
वाह क्या बात हैं ज़नाब, बहुत गहरी बात कही गयी हैं।बार बार पढ़ा और समझने की कोशिश की।
आभार
समसामयिक विशेष चिंतन। संवेदनशील रचना के सृजन हेतु साधुवाद आदरणीय रोहितास जी।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति। लम्बे अन्तराल पर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 20 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और उपयोगी सृजन।
ReplyDeleteयदि कोई सरकार का नुमाइंदा इसे पढ़ता है तो निश्चित ही सरकार तक ये आवाज पहुंचनी चाहिए कि आज आम नागरिक का आत्मनिर्भर होना(मजबूरन) भविष्य में आपकी आत्मनिर्भरता की निशानी है
ReplyDeleteबहुत खूब भाई 👍💓
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 सितंबर 2020) को 'दीन-ईमान के चोंचले मत करो' (चर्चा अंक-3831) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
गहरी स्पष्टवादिता ....
ReplyDeleteहमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
ReplyDeleteइसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
ये आप के लिए खतरा है।... बहुत खूब आपने तो साफ साफ कह दिया कि अब बस बहुत हो चुका हम सब समझते हैं...
मौजूदा हालात पर तीक्ष्ण प्रहार करती लेखनी - - नमन सह।
ReplyDeleteअभी हम चहरे से और मन से एक हैं
ReplyDeleteये आप के लिए खतरा है।
बहुत सटीक...
लाजवाब सृजन
वाह!!!
प्रासंगिक 👍
ReplyDeleteआत्मनिर्भरता की मुर्दा
ReplyDeleteखिड़की पर लगे कफन जैसे पर्दे से ढंक दे
हम नागरिक जो कुछ काम के थे
बेकाम होकर -
गहरा तंज़ रोहितास जी!!!
इस उम्दा कविता के लिए साधुवाद!!!
बेहद खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteहमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
ReplyDeleteइसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे..
गहन तंज लिए उम्दा भावाभिव्यक्ति रोहित जी ।
बार बार पढ़ने योग्य गहरी धारदार अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐🙏
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसरकार; आप समझते हो उतना आसान तो नहीं
ReplyDeleteकाम से बे-काम होकर आत्मनिर्भर होना आसाँ तो नहीं ',,,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत सटिक और यतार्थ चिंतन, रोहितास भाई।
ReplyDeleteसरकार सब समझते हुए भी कुछ नहीं समझ पाती, विशेषकर गरीबों को , यही विडंबना है
ReplyDeleteबहुत खूस लिखा है 👍👍👍
ReplyDeleteGeat work RAJASTHAN GK
ReplyDeleteप्रिय रोहित आत्मनिर्भरता पर तुम्हारा ये चिंतन निशब्द कर गया |सही में पाश के शिष्य हो | ये सफर जारी रहे | हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं|
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