Sunday 20 September 2020

आत्मनिर्भता


सरकार; आप समझते हो उतना आसान तो नहीं                    
काम से बे-काम होकर आत्मनिर्भर होना आसाँ तो नहीं  
हम आदमीयों का सिर्फ आत्मनिर्भर होना
पेट में धंस रही आँतड़ियों को ओर अंदर तक धकेलना हो सकता है
आत्मनिर्भरता यानी आलोचनाओं का मर जाना हो सकता है
आलोचनाओं का मरना यानी 
लोकार्पण के समय अवसाद से भर जाना हो सकता है
जब अवसाद एकांत का परिणाम है
तो हमें किस दिशा की ओर बढ़ना है, सरकार?
किसी का साथ छोड़ देने से आत्मनिर्भता नहीं आती
सभी का साथ ही इसकी प्रयोगशाला है
सरकारें अपने मुद्दे 
आत्मनिर्भरता की मुर्दा
खिड़की पर लगे कफ़न जैसे पर्दे से ढंक दे
हम नागरिक जो कुछ काम के थे
बेक़ाम होकर -
हमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
ये आप के लिए खतरा है।
from google image 
 

23 comments:

  1. इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
    अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए


    वाह क्या बात हैं ज़नाब, बहुत गहरी बात कही गयी हैं।बार बार पढ़ा और समझने की कोशिश की।
    आभार

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  2. समसामयिक विशेष चिंतन। संवेदनशील रचना के सृजन हेतु साधुवाद आदरणीय रोहितास जी।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति। लम्बे अन्तराल पर।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 20 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. यदि कोई सरकार का नुमाइंदा इसे पढ़ता है तो निश्चित ही सरकार तक ये आवाज पहुंचनी चाहिए कि आज आम नागरिक का आत्मनिर्भर होना(मजबूरन) भविष्य में आपकी आत्मनिर्भरता की निशानी है


    बहुत खूब भाई 👍💓

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  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 सितंबर 2020) को 'दीन-ईमान के चोंचले मत करो' (चर्चा अंक-3831) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  7. गहरी स्पष्टवादिता ....

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  8. हमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
    इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
    अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
    अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
    ये आप के लिए खतरा है।... बहुत खूब आपने तो साफ साफ कह द‍िया क‍ि अब बस बहुत हो चुका हम सब समझते हैं...

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  9. मौजूदा हालात पर तीक्ष्ण प्रहार करती लेखनी - - नमन सह।

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  10. अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
    ये आप के लिए खतरा है।
    बहुत सटीक...
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  11. प्रासंगिक 👍

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  12. आत्मनिर्भरता की मुर्दा
    खिड़की पर लगे कफन जैसे पर्दे से ढंक दे
    हम नागरिक जो कुछ काम के थे
    बेकाम होकर -

    गहरा तंज़ रोहितास जी!!!
    इस उम्दा कविता के लिए साधुवाद!!!

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  13. बेहद खूबसूरत रचना।

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  14. हमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
    इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे..
    गहन तंज लिए उम्दा भावाभिव्यक्ति रोहित जी ।

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  15. बार बार पढ़ने योग्य गहरी धारदार अभिव्यक्ति ...

    हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐🙏

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  16. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  17. सरकार; आप समझते हो उतना आसान तो नहीं
    काम से बे-काम होकर आत्मनिर्भर होना आसाँ तो नहीं ',,,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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  18. बहुत सटिक और यतार्थ चिंतन, रोहितास भाई।

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  19. सरकार सब समझते हुए भी कुछ नहीं समझ पाती, विशेषकर गरीबों को , यही विडंबना है

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  20. बहुत खूस लिखा है 👍👍👍

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  21. प्रिय रोहित आत्मनिर्भरता पर तुम्हारा ये चिंतन निशब्द कर गया |सही में पाश के शिष्य हो | ये सफर जारी रहे | हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं|

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