जो अच्छी लगती, बुरा नहीं लगता
रूह से जा लगती, बुरा नहीं लगता
क्यों न हो तुझ में कोई खामी
मुझी से हो पुरी बुरा नहीं लगता
वहशत ना होती बाल नोचने तक
हिज़्र नहीं होती बुरा नहीं लगता
कांरवा गुजर गया अपनी हद्द से
होता नज़र तो भी बुरा नहीं लगता
हनोज़ छाई चुपी है, दुरी है बहुत
होती दो टुक ही बुरा नहीं लगता
लोग बोले है बुरा लगता है, तुझे लगता
हाय! तू भी बोलती, बुरा नहीं लगता
मैंने पूर्व के बाद पश्चिम ही को जिया है
पापा ने जवानी भी दी होती बुरा नहीं लगता
एक वक्त हुआ मैं जुदा नहीं हुआ मुझ से
तू होती और बेल कराती बुरा नहीं लगता
दम घुट रहा है ऐसी मोहब्बत में
तोड़ जाती दम ही बुरा नहीं लगता.
-रोहित
from google image |
वहशत ना होती बाल नोचने तक
ReplyDeleteहिज़्र नहीं होती बुरा नहीं लगता
बेइंतहा मोहब्बत का हिज्र के बाद भी याद आना बहुत दर्द देता है
बहुत सुन्दर, हृदयस्पर्शी रचना
Hshaha
Deleteसीख ही ली ब्लॉगिया भाषा आखिर।
🙏
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी पोस्ट किसी भी मंच पर लगने लायक नहीं होती।
Deleteमान सम्मान का आभारी हूँ
वाह क्या बात
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
कांरवा गुजर गया अपनी हद्द से
ReplyDeleteहोता नज़र तो भी बुरा नहीं लगता
बहुत सुन्दर
क्यों न हो तुझ में कोई खामी
ReplyDeleteमुझी से हो पुरी बुरा नहीं लगता ...,
बहुत खूब...,
बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति रोहित जी
सुंदर लेखन, मन के गमगीन प्रवाह....
ReplyDelete"लोग बोले है बुरा लगता है, तुझे लगता
ReplyDeleteहाय! तू भी बोलती, बुरा नहीं लगता"
हृदय के भाव उकेरती रचना, बहुत बढ़िया !
कांरवा गुजर गया अपनी हद्द से
ReplyDeleteहोता नज़र तो भी बुरा नहीं लगता
हृदय के भावों को बड़े खूबसूरती से व्यक्त किया है
अच्छा है.......
ReplyDeleteवाह अनुपम भाव और शानदार सृजन के लिये बधाई आपको
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteगजब की भावाभिव्यक्ति,
ReplyDeleteसच बेखुदी में इंसान फिर वहीं पहूंचता है,
जहां से कारवां उठता है उसका
फिर भी जुबां से लफ्ज़ निकलते हैं,
हां अब किसी बात का बुरा नहीं लगता।
अच्छा है
ReplyDelete.. सुप्रभात रोहिताश जी अच्छी रचना भाव प्रवाह भी बहुत अच्छा है परंतु कहीं कहीं आपने उलझा दिया
ReplyDeleteअनु जी,
Deleteआप ही जब उलझ जाएंगे तो हमारा क्या होगा?
बड़प्पन सर आंखों पर। आभार।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,रोहितास भाई।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमेरे विचार में मेरी रचना सही मायने में तब अच्छी होती हैं जब पढ़ने वाला। .. उसे पढ़ कर कुछ सोचे ... आपके कमेंट से साफ़दिखता हे आप अपनी सोच लिए बैठें कुछ देर मेरी रचना के साथ
Deleteबहुत ही स्नेहिल शब्दों के लिए आभार साथ बनाये रखे
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हिज़्र नहीं होती बुरा नहीं लगता
bahut bdhiya
एक वक्त हुआ मैं जुदा नहीं हुआ मुझ से
तू होती और बेल कराती बुरा नहीं लगता
आहा। .. बड़ी रोचक रचना घुमावदार मगर इक आहंग लिए। .. बहुत बढ़िया सच में
भाव प्रबल अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteएक वक्त हुआ मैं जुदा नहीं हुआ मुझ से
ReplyDeleteतू होती और बेल कराती बुरा नहीं लगता
दम घुट रहा है ऐसी मोहब्बत में
तोड़ जाती दम ही बुरा नहीं लगता.
नए मिजाज़ के शेर और तेवर !!!!!!!!सराहनीय रचना के लिए शुभकामनायें |
लोग बोले है बुरा लगता है, तुझे लगता
ReplyDeleteहाय! तू भी बोलती, बुरा नहीं लगता
वाह!
क्या बात !!!