अभी तो मैं ख़ुदा तक हूँ
आँखों में नूर ज्योत्स्ना सा,
मन कोमल,निर्मल,दिलनवाज़ी,
मंद मंद मुस्कुराहट व लावण्य
जब भी सुनूं आहट जानी-पहचानी
बजता है इकतारा दिल में और
दिल-मोहल्ले में नाचती हो तुम।
बीते मिलन से अब तक
आवरण भी महक रहे हैं तेरी खुशबु से-
जबकि हर पल अनजानी हवा में रहते हैं
फिर ये सांसे क्यों न बहके
जो सिर्फ तुमसे संबंध रखती है.
पहले मिलन से पहले न था ऐसा, था बंजर
मेरी नग्न भंगिमा को तूने आवरण दिया
तेरे सिलसिलेवार जलाभिषेक से,
बीज अंकुरित अब होने लगे
प्रत्यक्ष, जीवित, प्रामाणिक
रचियता बना देगा तू मुझे।
बेशर्ते तुम हो करीब
आलिंगन की तरह
वरना ओर कोई बात नहीं-
वही बंजर, वीराँ, बे-जाँ मैं
हाँ, तुम ही तो हो गोया
मेरे पैर पर अपने पैर रख कर
कदमों को दृढ़ बनाने वाली
मुझ में ख़ुदाई लाने वाली।
बाक़ायदा तुम भी वही हो जो मैं हूँ
तुम भी अभी ख़ुदा तलक हो
जरुरी है दोनों लिंगों का अस्तित्व-
जरूरत है ये अस्तित्व के लिए
प्रेम-परिणाम अभिपोषित करने के लिए
विरासत एक छोड़ने के लिए।
यूँ तो न बना होगा मिसाल
सूरज ने भी कभी फेंका होगा अँधेरा
तब जाकर रोशन हुआ होगा,
इस रौशनी के बाद भी कुछ होगा
तब तक रहेंगे हम 'हम'
बाद अँधेरा फैलना है
जहां आदमी होगा न औरत
इस भेदभाव से परे
इस भेदभाव से परे
होना है एकमेक
एक स्वरूप निराकार।
- रोहित
from google image |
आभार 🙏
ReplyDeleteउत्सुकता के साथ पढ़ने वाले पाठक अब कहाँ अनिता जी ....
यूँ तो न बना होगा मिशाल
ReplyDeleteसूरज ने भी कभी फेंका होगा अँधेरा
तब जाकर रोशन हुआ होगा,
इस रौशनी के बाद भी कुछ होगा
तब तक रहेंगे हम 'हम'
बाद अँधेरा फैलना है ।
लाजवाब सृजन है आपका अलहदा सा ।
अप्रतिम।
बेहद खूबसुरत रचना, रोहित जी!
ReplyDeleteआपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
धन्यवाद, इस रचना को मेरे साथ साझा करने के लिए।
ReplyDeleteबीते मिलन से अब तक
आवरण भी महक रहे हैं तेरी खुशबु से-
जबकि हर पल अनजानी हवा में रहते हैं
फिर ये सांसे क्यों न बहके
जो सिर्फ तुमसे संबंध रखती है.
वाह बहुत सुन्दर रचना 🙏
बढ़िया
ReplyDeleteतेरे सिलसिलेवार जलाभिषेक से,
ReplyDeleteबीज अंकुरित अब होने लगे
प्रत्यक्ष, जीवित, प्रामाणिक
रचियता बना देगा तू मुझे।...
आपकी रचना मोहक और उससे भी ज्यादा दृष्टिपरक लगी। शुभकामनाएं स्वीकार करें और निरंतर लिखते रहें। धन्यवाद।
बढ़िया। मिशाल की जगह शायद मशाल होना चाहिए ना ?
ReplyDeleteदरअसल हम दोनों ही गलत हो गए
Deleteये मिसाल (उपमा) होना चाहिए था।
बहुत बहुत दिलों' शुक्रिया जी। 🙏
रोहितास जी,
ReplyDeleteगूढ़-काव्य की कठिन जलेबी मेरे गले के नीचे मुश्किल से उतरती है.
आप कुछ सरल लिखें, कुछ सहज लिखें, तो मैं अपनी इमानदाराना राय दूं.
इस रौशनी के बाद भी कुछ होगा
ReplyDeleteतब तक रहेंगे हम 'हम'
बाद अँधेरा फैलना है
जहां आदमी होगा न औरत
इस भेदभाव से परे
होना है एकमेक
एक स्वरूप निराकार।
गूढ़ भावों का सुन्दर निरुपण .. अत्यन्त सुन्दर सृजन रोहित
जी ।
बेजोड़ रचना।
ReplyDelete"सूरज ने भी कभी फेंका होगा अँधेरा
ReplyDeleteतब जाकर रोशन हुआ होगा"
बहुत बड़ी बात कही है रोहितास जी!
जहां आदमी होगा न औरत
ReplyDeleteइस भेदभाव से परे
होना है एकमेक
एक स्वरूप निराकार। बहुत ही गूढ़ अर्थ लिए सुंदर रचना।
वाह!! प्रेम पुंज से अलंकृत बहुत ही शानदार रचना कविता में अवधूत हर पंक्तियां प्रेम की कोमल भावों को व्यक्त कर रही हैं प्रथम बार आपको पढ़ने का मौका मिला धन्यवाद मुझे आमंत्रित करने के लिए... यहां आकर एक सुंदर प्रेमी में रचना से साक्षात्कार हो पाया बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई आपको
ReplyDeleteइस रौशनी के बाद भी कुछ होगा
ReplyDeleteतब तक रहेंगे हम 'हम'
बाद अँधेरा फैलना है
जहां आदमी होगा न औरत
इस भेदभाव से परे
होना है एकमेक
एक स्वरूप निराकार। बेहतरीन रचना आदरणीय 👌👌
रोहिताश जी क्षमा कीजिएगा मैंने अपनी प्रतिक्रिया में प्रेममय लिखना चाहती थी परंतु गलती से प्रेमी शब्द लिख दिया मैंने.... पर एडिटिंग करना मुझे नहीं आता है इस बात के लिए मुझे क्षमा कीजिएगा
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteप्रिय रोहितास , एक प्रेमी से एक पति तक . और उससे भी बढ़कर एक सृष्टा तक का सफर कोई भी इंसान अकेले तय नहीं कर सकता | उसे पूर्ण करने के लिए एक संगी का होना बहुत जरूरी है | जो किसी के अस्तित्व को पूर्णता के साथ सृष्टि में नवजीवन का योगदान देकर उसे आगे बढ़ा सके |मन की बंजर जमींन पर किसी का आकर प्रेम की फसल उगाना कोई साधारण बात नहीं |लौकिक और आलौकिक दोनों तरह के प्रेम के लिए एक प्रेमी की स्वीकृति को शब्द देती रचना आपकी दुसरी रचनाओं की तरह बहुत ख़ास है | आपको हार्दिक शुभकामनायें | और हाँ अपने ब्लॉग को एक उचित नाम तो दीजिये !
ReplyDeleteप्रिय अनिता ने बहुत सुंदर लिखा | ये अद्भुत प्रेममय रचना है |
ReplyDeleteगूढ़ बातें रूमानी अंदाज़ में ...
ReplyDeleteगहरी रचना ... एक ऐसा एहसास जहाँ प्रेम हर बात से परे हो ... खुदा बनजाने के बावजूद भी इंसानी जिस्मों की कैद से, उन इच्छाओं से जकड़ा हुआ हो और छटपटा रहा हो अनंत मुक्ति के लिए ... बहुत ही सुन्दर भाव ...
ReplyDeleteक्षमा चाहता हूँ देर से आने की ... कार्यवश दूर था अपने मूल स्थान से ...
Awesome write up, loved the coining of words.
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