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कब तलक हक़ जमाओगे, है कोई और
दम निकलेगा तभी मानोगे था कोई और
जबरन ब्याही गयी संग कोई और
पखेरूओं की फिक्र करे कोई और
सुलगती थी वो अब आराम से है
जल पड़ी जो अब बुझेगी कोई और
मज़हबी तीर पार बोला जंगे-इश्क में
खुदा एक है ये याँ समझे है कोई और
थी बात कि तेरा मेरा किसने बांटा है
फिर कैसे कहें रक़ीब को कोई और
बावजूद ताल्लुकात जिंदा हैं हैरत है मुझे
होती मोहल्ले में जीता दम भर कोई और
निकलते आफ़ताब को देखा होगा ढलते दिन ने
हम थकन में हैं उस क्षितिज की बात करे कोई और
अव्वल तो हम बेहूदा जान पड़ते हैं, नामुमकिन है
पर समझने की क्षमता से परे पाओगे हमें कोई और
हम अपनी टीस की ख़ातिर उनसे पूछे जाएं
वो बेकरारी में हमसे कहे जाए - है कोई और
हमने शेरो-शायरी की और जी भर के की
क्या बताना अब भी है भूख थी कोई और
कहते हैं था ग़ालिब का अंदाजे-बयां और
फ़रमाते हम भी हैं अंदाजे बयाँ कोई और.
-रोहित