Monday 26 February 2018

पागलपन

सालों पहल
तेरी याद की वो याद है मुझे
जिसमें, बैठकर मैकदे में 
चुने की दिवार पे
गूगल से ली गयी
ग्लास के कांच से 
तेरा नाम कुरेद आया था
अगली शब को
उसी नाम के साथ
हज़ार बातें मनाने की की
फिर ग्लास छलका
फिर मनाने की की
आज फिर नहीं मानी
आज फिर छलकते जाम से नशा ना हुआ
तेरे खुदे हुए उस नाम के 
हर अक्षर के
हर घुमाव को छूकर
महसूस करता हूँ कि
छू रहा हूँ तुम्हें
तेरे थोड़ेसे खुले लबों को
खेल रहा हूँ खुले बालों से
चुम रहा हूँ गर्दन को
पकड़ रखी है कमर
खिंच रहा हूँ आलिंगन को
और मन की आँखों से 
दिखता है तेरा लावण्य
और कहता हूँ कल फिर आऊंगा
देखो कल मान ही जाना
यहां आने में बदनाम हो रहे हैं
और आज फिर आया हूँ
यही हुआ तो फिर कल भी आऊंगा।

रोहित