Tuesday 7 February 2012

प्यासी नजर-2

तेरी हर नजर को मैं इस कदर 
क्यूँ नजर अंदाज करता गया,

फिर तुने पेश किया हंसी का नजराना
नजराना-ऐ-हसीना मैं समझता गया

जब मैंने थोड़ी हिम्मत से नजर को साधा तुझ पर 
पाया,पहले से ही तेरी नजरों के सागर में डूबता गया

हाय रब्बा... ना समझ थी मेरी नजर
जो नजर- ऐ- हसीना को छलावा मानता गया

वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे 
जो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया 

तेरी नजरो की चंचलता देख कर 
चेतना दिल की यूँ खोता गया

अब यादे हैं उन नजरों की इन नज़रों में 
यादों की नजरों को नजर याद आता गया

वो नजरें जब भी याद आई 'रोहित'
पछताती नजरें मेरी छलकाता गया ।