Saturday 24 December 2011

दिल मेरा...!


विरान खंडरों की तरह पड़ा हैं दिल मेरा
आज खुबसुरत कहने आई इस खंडर को,
  
वर्षों पहले कभी मंजिल को तरसा दिल मेरा
आज तुं भी चल पड़ी अनजाने से इस सफ़र को


शीशा था कब का टुटा, पत्थर सा बना दिल मेरा
आज प्रेम जताने आई नासमझ इस पत्थर को,

कभी प्रेम फसल अपार हुई, बंजर सा बना दिल मेरा
लौट के बोने आए प्रेम के चन्द बिज इस बंजर को,

दवा थी कभी प्यार तेरा, बेअसर है अब दिल मेरा
अब तो कितने ही कौंदते चले गये इस बेअसर को,

तुं तेरी जिद्द पर अड़ी रही, जिद्दी न था दिल मेरा
जिद्दी बनना पड़ा भटके हुए इस दर-दर को,

नजरों से दूर चली जाओ तो बेहतर हैं
की दिल मिला ना मिला प्यार इस खंजर को,

माना की दरिया भी जिद्दी हैं,पर समन्दर भी कहाँ कम हैं
'रोहित' वरना कब से लगी दरिया मीठा करने समन्दर को,

(एक बेवफा की कहानी जो पहले तो एक प्रेमी को नकार चुकी है और बाद में लौट कर उसी प्रेमी के पास आती और अपना प्यार जताती है पर वो प्रेमी किस तरह से उसे उसका जवाब देता यही सब कुछ.....) 

" आप सभी को नव वर्ष की कोटि कोटि शुभकामनाएँ "

Saturday 3 December 2011

प्यासी नज़र


मेरी नज़रों का क्या कसूर
नज़रों  से नज़र तुने जो मिलाई हैं
नजरो को मिला हैं जेसे कोई प्यार
ये नज़रों की गहराई हैं

हाय रब्बा...! इन कात्तिल नज़रों को
नजर न लगे कीसी नज़र की
अब तो आदत पड़ी हैं तेरी नज़रों की इन नज़रों को
चाहे दिल के पार हो ये धार नज़रों की

माना सब के पास हैं ऐसी नज़र
पता नही क्यों या ये बहम हैं नज़रों का
देखे किसी और को तो ये नज़र
हर किसी में वो कत्तिल नज़र नजर नही आती इन नजरों को

ये नजारा देखे हम रोज, की हर रोज मिले ये नज़र मेरी नज़रों से
'रोहित' ओर चाहिए भी क्या इन प्यार में डूबी प्यासी बेकाबू नज़रों को!


Thursday 17 November 2011

प्रेम तस्कर

मेरे दिल में उतर कर तो देखते
ऐसा मंजर कभी देखा नहीं होगा

कभी मेरी आँखों में झांक कर तो देखते
की सपनों में भी आंसुओं का सागर देखा नहीं होगा

अगर ख्वाबों में भी चले आये होते
की ऐसा हाल-ए-तरबतर कभी देखा नहीं होगा

लोट आओ अगर तो सांसों से बढकर प्यार करूँ
की ऐसा प्रेम अपार कभी देखा नहीं होगा

तुमसे एक काम है की इस प्रेम को अमर कर दो
मिलन ऐसा दुनिया में ज्यादातर कभी देखा नहीं होगा

अगर नहीं होता है ये सुकर तुमसे तो ए दोस्त 
ऐसा प्रेम का प्यासा खंजर कभी देखा नही होगा

प्रेम पुजारी बहुत देखें होंगे आपने 'रोहित'
पर ऐसा प्रेम तस्कर कही देखा नहीं होगा |

Saturday 12 November 2011

प्यार भरा दिखावा

पल भर की हसीं बातों से ये दिल प्यार में जलने लगा
आ जाओ ना पास पल-पल यूँ दिल जलाते हो क्यों

अपनी नजरों से बांध कर मुझे
मेरी ही नज़रों में अकेला छोड़ते हो क्यों

उसे ख्यालों,खवाबों व यादों में ही बसना था
अब मरना अच्छा है की इस तरह तड़फाते हो क्यों

दिल को पत्थर बना रखा था
फिर बातो में फूलों से झरते हो क्यों


प्यार करके अपना ही नुकसान करवाया मैने
पूछे कोई उनसे दिल के टुकड़ों को मजाक समझते हो क्यों

मेरी जिन्दगी की परवाह नही मुझे
पर मुझ जेसो को आवारा बनाते हो क्यों

दिल और आईने की फिदरत टूटते बिखरना है 'रोहित'
दोस्तों आईने से दिल को समझने में गलती करते हो क्यों |
 

Saturday 8 October 2011

मुसाफ़िर



कभी तु मंजिल थी मेरी
अब मंजिल कोई नई ढूंढने चले हैं,

तेरी हर अदा ने किया था कायल
अब इसी अदा से नाकारा चले हैं,

गम के मारे जो मुस्कुराये थे
आज उन्ही आँखों में आंसू चले हैं

तेरे प्यार में नशा था मुझे होश न था
की ठोकर खाकर होश पाने चले हैं

नशे की लत कोई छोड़ पाया है क्या
शराबी न था की अब शराबी बनने चले हैं,

प्यार किया था क्यूँ
अब अपने आप को कोसने चले हैं

सोचता हूँ तुझे भूलना अच्छा हैं
अब तो कोई नई शुरुवात करने चले हैं,

एक तरफ़ा प्यार से नफ़रत हो गयी
अब प्यार से प्यार करने चले हैं,

जिन्दगी के खेल भी अजीबों गरीब है
हम कभी सफ़र तो कभी हमसफ़र ढुंढने चले हैं,

राही बनकर रह जाती हैं दुनियां 'रोहित'
मुसाफिर वही जो सच्ची मंजिल ढुंढने चले हैं |

Thursday 6 October 2011

अपनी शिक्षा पद्धति




बड़ी मुश्किलों से एक बच्चा पढ़ना होता था
सब बड़े छोटों को खेतो में काम करना होता था,

पढ़ने वालों में मेरा नाम शामिल था
सब भाई बहिनों में मैं पढ़ने वाला होता था,

न पोशाक थी न पैसा था
वही था जो कुछ खेतो में होता था,

न किताब थी न पेन था हाथ से बनाई कलम थी
फिर तख्ती पर सुलेख लिखना होता था,

दवात क्या थी, चारआन्ने पुड़िया थी
हाथों से घोल बनाना होता था,

पढने वाले की यही निशानी थी
कहीं दवात हाथ पर लगी कहीं कुर्ता कला होता था,

तख्ती साफ करने को न सफेदा था न रबड़ था
बस मुल्तानी मिट्टी संग पानी होता था,

हर परीक्षा में मैं बस उतीर्ण हुआ
न अंकों का कोई खेल था न प्रतिशत मालूम  होता था,

आज दूसरी कक्षा का भी बच्चा कुली बना है  
जेसे बरसों पहले बंदुवा श्रमिक होता था,

बच्चों पर शारीरिक व मानसिक बोझ बडा है
किताबों का व अंकों का; ऐसा तो न होता था,

महंगाई की जंजीरों में शिक्षा बनी व्यवसाय है 
पहले शिक्षा पर इतना खर्चा न होता था,

दुर्लब शिक्षा से कामयाबी कोसों दूर हुई 
सरल व सहज शिक्षा से हर एक कामयाब होता था

आज कहाँ है वो तख्ती दवात और कलम 'रोहित'
कभी पढ़ना व पढ़ाना इन्ही से तो होता था |

(धोलपालिया गाँव की १९७२ से पहले की शिक्षा पद्धति 
जेसा की मेरे पिताजी ने मुझे बताया )

Sunday 2 October 2011

शिक्षा- शिक्षक के बारे में

आज की तरह नही थे शिक्षक,
शिक्षक नही गुरुदेवों का ज़माना था,

दीपावली के बाद शर्दियों के दिन थे
शाम को गुरु जी का स्कूल में बुलाना था,

शाम का भोजन करने के बाद
लौट के स्कूल को आना था

वह पहली शाम थी स्कूल की
खटिया बिस्तर साथ लाना था,

तब बिजली नही थी गाँव में
एक बड़ा सा लंप जलना था

रोज़ गाँव की बालू रेत से
लंप का शीसा साफ करना था,

तिन ओर हम बैठे थे और एक ओर थे गुरु जी
बिच में एक बड़ा सा लंप जलाना था,

हम पढ़ते थे बड़ी राग से
वो गुरु जी का नोवेल पढना था

देर रात तक पढ़ते थे
फिर वही पर सोना था,

सुबह गुरु जी ने आवाज लगाई
सबको एक साथ जगना था,

घर भोजन करने के बाद
फिर लौट के स्कूल आना था,

स्कूल में किताबी ज्ञान ही नहीं
व्यावहारिक ज्ञान भी मिलता था,

तिन बजे से गोधूली तक
समय खेल-कूद का होता था,

आज न रही वो पढ़ाई न रहे वो गुरु जी
कभी स्कूल भी गुरुकुल होता था,

आज ट्युशन व पैसे पर मरता शिक्षक हैं 'रोहित'
कभी सच्चा ज्ञान देना उनका मक्सद होता था |

(१९७२ हमारे गाँव धोलपालिया की शिक्षा पद्धति 
और एक चोथी कक्षा का विवरण )

Monday 26 September 2011

तमन्ना व शपथ



तुम ज्वाला हो तो मै बर्फ हूँ
तुम्हारे पास से गुजरूँ तो पिंघल जाऊँ,

तुम फूल हो तो मै पत्थर दिल हूँ
अगर तुम चाहो तो खुसबू भी बन जाऊँ,

तुम बारिश हो तो मै सूखी दरिया हूँ
बारिश कभी ऐसी हो की किनारों से उफ़न जाऊँ,


तुम इसी तरह विपरीत मेरे बने रहो
जीतने की आदत है मेरी तुझे जीतता चला जाऊँ, 

तुम हवा हो तो मै बादल बनने की तमन्ना हूँ
की बिन तेरे एक कदम भी न चल पाऊँ,

तुम दुरी हो तो मै रफ़्तार हूँ
की तमन्ना नही तुझसे दूर चला जाऊँ,

तुम अक्ष हो तो मै आंसू हूँ
गम या ख़ुशी साथ न छोड़ू दोनों में चला आऊँ,

क्यूँ  तुं अपने चहरे पर गुमान करती है 'रोहित'
मै तेरे दिल को पहचानता हूँ और इसी पर मरता चला जाऊँ |

Wednesday 21 September 2011

अनोखी ऋतूवें


बसंत के पीले कपड़ों को
जांबाज़ पहन के निकले थे 
मर मिटने के उस रंग को
इक शाम पहन के निकले थे,
भर जोश कदम से बढ चले
अपने वतन के वास्ते 
पर बस राहों में मरने की, चुनोती अभी बाकि है,

सावन के आने तक
जयपुर  निशाना बन गया ,
फिर दिल की दिल्ली दहल गयी 
अब चलती मुंबई भी ठहर गयी और खूब रोई
आँखों में आँसूं अभी बाकि है,

अब बसंत ऋतू की मौज है
और कलियों में रंग भरे हुवे
बस देश की आँखों के फूलों में
वो जोश भरना बाकि है

जब फाल्गुन आया देश में
था बस कुर्बानी के लिए,
और बसंत के बसंती चोलों पर
वो लहू की बुँदे अभी आकी है,

अब माताएं आकर पुछ रही
बेटों का मेरे क्या हुवा,
बारूद के छलनी कपड़ों में
वो खुसबू अभी बाकि है,

की बर्बादी बता सकती नही कवियों की कल्पनाये भी ,
पर बस लिखने की एक छोटी सी कोशिश अभी बाकि है |

(ये कविता मुझे अमित भोजक ने दी थी और इसको रचने वाले उनके छोटे भाई हैं )

Sunday 18 September 2011

आदर्णीय अजमल कसाब-तेरी ओकात


सौचता हैं आंतकी जब वह थक जाऐ
की भारतीय जेलों में आराम फ़रमाया जाऐ,

जेलों में सेवा होती है इनकी मेहमानों की तरह
की खातेदारी में कोई उनकी कमी रह  न जाऐ,

अरे कसाब तूँ सही जगह पर आया है 
कोन सोचता है तुझे फाँसी पर लटकाया जाऐ,

वरना तेरी ओकात तो इतनी सी ही है
बिन बताये म़ोत का तोहफा दे दिया जाऐ,

सोचो जिसने आपनो पर गोलीया चलाई है
उस कमीने को वकील क्यूँ उपलब्ध करवाया जाऐ ,

शहीदों की कुर्बानियों को भुला दिया है आपने
कोई एक कारण तो हो की क्यों न उनकी इच्छाओं का मान किया जाऐ,

अरे नालायकों प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या 'रोहित'
चलो इसी बात पर अमेरिका से कुछ सीख लिया जाऐ |
 

Saturday 17 September 2011

अनजान नेताजी

ताज के हमले से नही संभले 
क्यों नही सम्भले ये नही जानना,नेताजी
दिल की दिल्ली के हमले से सम्भलना होगा आपको,

राजनीति से कोसों दूर है खेल 
खेलों में भी राजनीति खेल गये नेताजी
कितने घोटाले किये है बताना होगा आपको,

किसानो और जनता की दयनीय दशा देखो
दाम बड़ते चले गये क्यूँ ,नेताजी
पूछने वाला तो कोई होगा आपको

किसान जब अपनी पर उतर आये
अपनी मन मानी भूल जाओगे नेताजी
फिर मांग कर खाना होगा आपको,

जनता को आजमाना छोडिये 'रोहित'
की जनता की शक्ति का अंदाजा नहीं होगा आपको |

Wednesday 14 September 2011

dosti

उजाड़ सी होती है बगेर दोस्त के जिंदगी 
जिससे अपनी पहचान हो, वही होती है दोस्ती,

जिन्दगी एक समुंदर की तरह है
डुबते हुऐ  को तिनके का सहारा होती है दोस्ती,

गम अगर हो तो आधा समझो
खुशियाँ दुगुनी करने वाली होती है दोस्ती,


दुसरे देख कर जलते हों 
ऐसी हो अपनी सच्ची दोस्ती,


हर बात कहने की जरूरत क्या 
इसारा भी समझने वाली होती है दोस्ती,


मेरे मन की भड़ास किस पर निकालूँ
लो फिर से याद आई अपनी दोस्ती,

लाख छुपाये दुनिया से 'रोहित'
दोस्त के रहस्यों का खजाना होती है दोस्ती |

Tuesday 13 September 2011

Desh Ke Naam

कौन भुला है वह खुनी मंजर 
जो याद दिलाने फिर चले आये,

मुंबई के जख्म अभी भरे नही
की दिल्ली का दिल दहलाने फिर  चले आये,

ओर कहीं तो चली नही 
की लौट के भारत फिर चले आये,

नेता जी को भनक लगी की ब्लास्ट हुआ है दिल्ली में
की झूटी हमदर्दी दिखाने फिर चले आये,

सौचा था की  देश के कुछ नाम लिखूं 
आँखों में अस्क फिर चले आये,

 इस देश से कहाँ चले गये वो 'रोहित' 
भगत आजाद, की जरूरत है उनकी, फिर चले आये |