Thursday, 6 October 2011

अपनी शिक्षा पद्धति




बड़ी मुश्किलों से एक बच्चा पढ़ना होता था
सब बड़े छोटों को खेतो में काम करना होता था,

पढ़ने वालों में मेरा नाम शामिल था
सब भाई बहिनों में मैं पढ़ने वाला होता था,

न पोशाक थी न पैसा था
वही था जो कुछ खेतो में होता था,

न किताब थी न पेन था हाथ से बनाई कलम थी
फिर तख्ती पर सुलेख लिखना होता था,

दवात क्या थी, चारआन्ने पुड़िया थी
हाथों से घोल बनाना होता था,

पढने वाले की यही निशानी थी
कहीं दवात हाथ पर लगी कहीं कुर्ता कला होता था,

तख्ती साफ करने को न सफेदा था न रबड़ था
बस मुल्तानी मिट्टी संग पानी होता था,

हर परीक्षा में मैं बस उतीर्ण हुआ
न अंकों का कोई खेल था न प्रतिशत मालूम  होता था,

आज दूसरी कक्षा का भी बच्चा कुली बना है  
जेसे बरसों पहले बंदुवा श्रमिक होता था,

बच्चों पर शारीरिक व मानसिक बोझ बडा है
किताबों का व अंकों का; ऐसा तो न होता था,

महंगाई की जंजीरों में शिक्षा बनी व्यवसाय है 
पहले शिक्षा पर इतना खर्चा न होता था,

दुर्लब शिक्षा से कामयाबी कोसों दूर हुई 
सरल व सहज शिक्षा से हर एक कामयाब होता था

आज कहाँ है वो तख्ती दवात और कलम 'रोहित'
कभी पढ़ना व पढ़ाना इन्ही से तो होता था |

(धोलपालिया गाँव की १९७२ से पहले की शिक्षा पद्धति 
जेसा की मेरे पिताजी ने मुझे बताया )

1 comment:

  1. chehra to wahi hai bas,
    dekhne ke aayney badal gaye hai...

    shiksha to wahi hai aye dost bas,
    uske maayne badal gaye hai.........


    good one!!!!

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