Friday 12 October 2018

हद पार इश्क

आओ ना
बातें करें
कुछ इसकी 
कुछ तेरे दिल की 
खुल कर-
जैसे गहराई से
सच्चाई आती है,
कुछ इशारों में हो-
छुपम छुपाई सी बाते
जैसे मोहब्बत होती है।
हाँ
वही तो हो गयी है तुमसे
बेइंतहां
मुश्किल है जरा 
बातों में बांधना-
दया के पात्र बने हैं 
शब्दकोश यहां। 

दुनियां के मेलों से दूर
मिलो कोई शाम और 
जिसका साक्षी हो- 
डूबता सूरज भी,
 किरण पहली भी। 
देखते रहें हम हमें 
खोकर
कि दुनियां के शोरशराबे
हो जाये तब्दील सन्नाटों में
जो इस कदर असर करे
हमारे इश्क  पर
तुम चुप रहो,मैं चुप रहूं।

by- 
ROHIT
taken from Google image 


Thursday 4 October 2018

नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)

घाव से रिस्ते खून से एक धब्बा रहा
हुआ नासूर तो ना कोई  धब्बा  रहा।

निकला   हर  रोम  से  खून  अपने
उसका ऐसा निकाला कसीदा रहा।

उसी कूचे में जाते  रहे हैं  हम  मगर
इंतजारे यार में रहना ना रहना रहा।

अब नहीं आते  वो  आहटें  सुनकर
दिल काबू में आते आते रहना रहा।

काम ठहर गये हैं जो बिगड़ते रहे
इश्क का उतावलापन जाता रहा। 

नाफ़  प्याला  याद  आता  है   क्यों?
तौहीन भरे प्याले की को बतलाता रहा। 

गर चाहे  है  वो  सजदे  में  कुछ देना
रही न खुद्दारी,न होना तेरा ख़ुदा रहा। 

रखियो ताल्लुक तुम तू कहता  हैं 
वहशत में भी याद रहोगे वादा रहा। 

मांगे है एक सैर कूचा ए बदस्लूक  की 
दिल मगर  जाँ  होता  ना  गवारा  रहा। 


-BY 
ROHIT
कसीदा =कपड़े पर बेल-बूटे  व जरी के कढ़ाई का काम, नाफ़= नाभि, तौहीन= बेइज्जती, वहशत= पागलपन, कूचा ए बदस्लूक=दुर्व्यवहार करने वाले यार की संकरी गली। 
taken from google image 


हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)