Saturday, 3 December 2011

प्यासी नज़र


मेरी नज़रों का क्या कसूर
नज़रों  से नज़र तुने जो मिलाई हैं
नजरो को मिला हैं जेसे कोई प्यार
ये नज़रों की गहराई हैं

हाय रब्बा...! इन कात्तिल नज़रों को
नजर न लगे कीसी नज़र की
अब तो आदत पड़ी हैं तेरी नज़रों की इन नज़रों को
चाहे दिल के पार हो ये धार नज़रों की

माना सब के पास हैं ऐसी नज़र
पता नही क्यों या ये बहम हैं नज़रों का
देखे किसी और को तो ये नज़र
हर किसी में वो कत्तिल नज़र नजर नही आती इन नजरों को

ये नजारा देखे हम रोज, की हर रोज मिले ये नज़र मेरी नज़रों से
'रोहित' ओर चाहिए भी क्या इन प्यार में डूबी प्यासी बेकाबू नज़रों को!


13 comments:

  1. najar n lage kisi ki bhai aapki najm padhkar likha tha

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  2. मेरी नज़रों का क्या कसूर
    नज़रों से नज़र तुने जो मिलाई हैं
    नजरो को मिला हैं जेसे कोई प्यार
    ये नज़रों की गहराई हैं
    bahut hi sundar panktiya hai
    sundar rachana hai..

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  3. भावप्रवण करती रचना .

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  4. Ankhe bhi hoti hai dil ki juba,
    Great post and great content as always, thanks for this post
    From Great talent

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  5. बहुत सुंदर भावमयी प्रस्तुति...

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  6. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  7. भावपूर्ण अभिव्यक्ति| धन्यवाद ।

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  8. Thank You All....
    for your nice comment

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  9. बहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली।
    आपकी इस कविता से ... मन प्रसन्न हो गया

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