मेरी नज़रों का क्या कसूर
नज़रों से नज़र तुने जो मिलाई हैं
नजरो को मिला हैं जेसे कोई प्यार
ये नज़रों की गहराई हैं
हाय रब्बा...! इन कात्तिल नज़रों को
नजर न लगे कीसी नज़र की
अब तो आदत पड़ी हैं तेरी नज़रों की इन नज़रों को
चाहे दिल के पार हो ये धार नज़रों की
माना सब के पास हैं ऐसी नज़र
पता नही क्यों या ये बहम हैं नज़रों का
देखे किसी और को तो ये नज़र
हर किसी में वो कत्तिल नज़र नजर नही आती इन नजरों को
ये नजारा देखे हम रोज, की हर रोज मिले ये नज़र मेरी नज़रों से
'रोहित' ओर चाहिए भी क्या इन प्यार में डूबी प्यासी बेकाबू नज़रों को!
be careful
ReplyDeletenyc..
ReplyDeletenajar n lage kisi ki bhai aapki najm padhkar likha tha
ReplyDeleteKhoob Kaha...Sunder Panktiyan
ReplyDeleteमेरी नज़रों का क्या कसूर
ReplyDeleteनज़रों से नज़र तुने जो मिलाई हैं
नजरो को मिला हैं जेसे कोई प्यार
ये नज़रों की गहराई हैं
bahut hi sundar panktiya hai
sundar rachana hai..
भावप्रवण करती रचना .
ReplyDeleteAnkhe bhi hoti hai dil ki juba,
ReplyDeleteGreat post and great content as always, thanks for this post
From Great talent
बहुत सुंदर भावमयी प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति| धन्यवाद ।
ReplyDeleteThank You All....
ReplyDeletefor your nice comment
nicw
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली।
ReplyDeleteआपकी इस कविता से ... मन प्रसन्न हो गया