विरान खंडरों की तरह पड़ा हैं दिल मेरा
आज खुबसुरत कहने आई इस खंडर को,
वर्षों पहले कभी मंजिल को तरसा दिल मेरा
आज तुं भी चल पड़ी अनजाने से इस सफ़र को
शीशा था कब का टुटा, पत्थर सा बना दिल मेरा
आज प्रेम जताने आई नासमझ इस पत्थर को,
कभी प्रेम फसल अपार हुई, बंजर सा बना दिल मेरा
लौट के बोने आए प्रेम के चन्द बिज इस बंजर को,
दवा थी कभी प्यार तेरा, बेअसर है अब दिल मेरा
अब तो कितने ही कौंदते चले गये इस बेअसर को,
तुं तेरी जिद्द पर अड़ी रही, जिद्दी न था दिल मेरा
जिद्दी बनना पड़ा भटके हुए इस दर-दर को,
नजरों से दूर चली जाओ तो बेहतर हैं
की दिल मिला ना मिला प्यार इस खंजर को,
माना की दरिया भी जिद्दी हैं,पर समन्दर भी कहाँ कम हैं
'रोहित' वरना कब से लगी दरिया मीठा करने समन्दर को,
(एक बेवफा की कहानी जो पहले तो एक प्रेमी को नकार चुकी है और बाद में लौट कर उसी प्रेमी के पास आती और अपना प्यार जताती है पर वो प्रेमी किस तरह से उसे उसका जवाब देता यही सब कुछ.....)
" आप सभी को नव वर्ष की कोटि कोटि शुभकामनाएँ "
sundar abhivykti....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावों का प्रस्फुटन देखने को मिला है । मेरे नए पोस्ट उपेंद्र नाथ अश्क पर आपकी सादर उपस्थिति की जरूरत है । धन्यवाद ।
ReplyDeletebahut khoob....
ReplyDeleteमाना की दरिया भी जिद्दी हैं,पर समन्दर भी कहाँ कम हैं
ReplyDelete'रोहित' वरना कब से लगी दरिया मीठा करने समन्दर को,
दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई तो लेनी ही होगी
प्रेमी मन की कशमकश को खूबसूरती से पेश किया है यहाँ पर आपने ...आभर
ReplyDeleteबहुत खूब प्रेम कविता भी कमाल है रोहित |
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