Thursday, 5 January 2012

पल भर का साथ


काश..!  किस्मत की लकीरें हाथों में होती
फिर इतना रिस्क मैं जरुर लेता
की हर रोज बदल डालता चाकू से इन लकीरों को
फिर देखता क्या ये बदकिस्मती भी साथ छोड़ देती हैं ?


सुनो एक कटी पतंग की जुबानी क्या कहे 
मुसीबत में पक्की डोर भी साथ छोड़ देती हैं
अब मुसीबतों से बच के निकलना चाहे तो
झोंका, शन्सनाती हवा भी साथ छोड़ देती हैं

चाहत है ऐ आसमाँ तेरी गहराई नापने की
इस चाहत में अमीरी भी साथ छोड़ देती हैं,
इस दुनियां में करोड़पति की है पहचान बड़ी
गरीबी में तो पहचान भी साथ छोड़ देती हैं,

किस्मत न हो अगर किस्मत में तो
ये दुवा-दारू भी साथ  छोड़  देती हैं
मरे हुए शव पानी पर यूँ तैरा ही करते हैं
डूबने के लिए जिन्दगी भी साथ छोड़ देती हैं,

साथ कौन देता है भला इस दुनिया में  "रोहित"
अंधेरों में तो परछाइयां भी साथ छोड़ देती हैं |

9 comments:

  1. साथ कौन देता है भला इस दुनिया में "रोहित"
    अंधेरों में तो परछाइयां भी साथ छोड़ देती हैं !!

    kaduva.....
    lekin sahi hai...

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    1. God kare.............
      Pal bhar ka saath,
      Lammbe time tak banaa rahe

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  2. बहुत सुन्दर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति है

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  3. किस्मत न हो अगर किस्मत में तो
    ये दुवा-दारू भी साथ छोड़ देती हैं
    मरे हुए शव पानी पर यूँ तैरा ही करते हैं
    डूबने के लिए जिन्दगी भी साथ छोड़ देती हैं,

    ....sach jab kismat saath dena chhod deti hain to phir koi saath dene wala saath nahi hota..
    ..bahut hi marmsparshi rachna ...
    bahut achha likhte hain hai.. bahut achha laga aapke blog par aakar aur rachnayen padhkar..
    haardik shubhkamnayen!

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  4. वाह|||
    बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है...
    बेहतरीन:-)

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  5. नाकाम मुहब्बत की दारुण दास्तान |

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