Sunday 18 September 2011

आदर्णीय अजमल कसाब-तेरी ओकात


सौचता हैं आंतकी जब वह थक जाऐ
की भारतीय जेलों में आराम फ़रमाया जाऐ,

जेलों में सेवा होती है इनकी मेहमानों की तरह
की खातेदारी में कोई उनकी कमी रह  न जाऐ,

अरे कसाब तूँ सही जगह पर आया है 
कोन सोचता है तुझे फाँसी पर लटकाया जाऐ,

वरना तेरी ओकात तो इतनी सी ही है
बिन बताये म़ोत का तोहफा दे दिया जाऐ,

सोचो जिसने आपनो पर गोलीया चलाई है
उस कमीने को वकील क्यूँ उपलब्ध करवाया जाऐ ,

शहीदों की कुर्बानियों को भुला दिया है आपने
कोई एक कारण तो हो की क्यों न उनकी इच्छाओं का मान किया जाऐ,

अरे नालायकों प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या 'रोहित'
चलो इसी बात पर अमेरिका से कुछ सीख लिया जाऐ |
 

No comments:

Post a Comment