क्यूँ नजर अंदाज करता गया,
फिर तुने पेश किया हंसी का नजराना
नजराना-ऐ-हसीना मैं समझता गया
जब मैंने थोड़ी हिम्मत से नजर को साधा तुझ पर
पाया,पहले से ही तेरी नजरों के सागर में डूबता गया
हाय रब्बा... ना समझ थी मेरी नजर
जो नजर- ऐ- हसीना को छलावा मानता गया
वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
जो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया
तेरी नजरो की चंचलता देख कर
चेतना दिल की यूँ खोता गया
अब यादे हैं उन नजरों की इन नज़रों में
यादों की नजरों को नजर याद आता गया
वो नजरें जब भी याद आई 'रोहित'
पछताती नजरें मेरी छलकाता गया ।
बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर पोस्ट,.....
ReplyDeleteNEW POST.... ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
Thank You Dheerendra ji
Delete//वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
ReplyDeleteजो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया
waah.. badhiyaa.. :)
palchhin-aditya.blogspot.in
Thank You Aditya
Deleteचित्र ओर रचना दोनों बेजोड़...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
aapki comment milna mere liye badi garv ki baat h Niraj ji... Thank You so Much...
Deleteबहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteनजर तो कातिल होती है चोट तो लगेगी ही
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
बेहतरीन रचना.....लाजवाब
ReplyDeleteबहुत सुंदर .........बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
नीरज
वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
ReplyDeleteजो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया
behtreen prastuti
वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
ReplyDeleteजो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया
behtreen post
बहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteप्यारी रूमानी रचना...
:-)
बधाई.
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteयही होता है! सही वक़्त पर सही बात नहीं समझते जब हम...
~God Bless!!!
अब यादे हैं उन नजरों की इन नज़रों में
ReplyDeleteयादों की नजरों को नजर याद आता गया