Tuesday, 7 February 2012

प्यासी नजर-2

तेरी हर नजर को मैं इस कदर 
क्यूँ नजर अंदाज करता गया,

फिर तुने पेश किया हंसी का नजराना
नजराना-ऐ-हसीना मैं समझता गया

जब मैंने थोड़ी हिम्मत से नजर को साधा तुझ पर 
पाया,पहले से ही तेरी नजरों के सागर में डूबता गया

हाय रब्बा... ना समझ थी मेरी नजर
जो नजर- ऐ- हसीना को छलावा मानता गया

वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे 
जो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया 

तेरी नजरो की चंचलता देख कर 
चेतना दिल की यूँ खोता गया

अब यादे हैं उन नजरों की इन नज़रों में 
यादों की नजरों को नजर याद आता गया

वो नजरें जब भी याद आई 'रोहित'
पछताती नजरें मेरी छलकाता गया ।
 

16 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर पोस्ट,.....

    NEW POST.... ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...

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  2. //वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
    जो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया

    waah.. badhiyaa.. :)

    palchhin-aditya.blogspot.in

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  3. चित्र ओर रचना दोनों बेजोड़...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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    1. aapki comment milna mere liye badi garv ki baat h Niraj ji... Thank You so Much...

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  4. बहुत सुंदर रचना..

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  5. नजर तो कातिल होती है चोट तो लगेगी ही
    बेहतरीन रचना...

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  6. बेहतरीन रचना.....लाजवाब

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  7. बहुत सुंदर .........बेहतरीन रचना...

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  8. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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  9. वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
    जो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया
    behtreen prastuti

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  10. वो जमात वो तीर नजरों के उम्र भर चलने कहाँ थे
    जो तू बैठे सामने मैं किताबों में नजरें गडाता गया
    behtreen post

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  11. बहुत सुन्दर.......
    प्यारी रूमानी रचना...
    :-)
    बधाई.

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  12. बहुत सुंदर !
    यही होता है! सही वक़्त पर सही बात नहीं समझते जब हम...
    ~God Bless!!!

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  13. अब यादे हैं उन नजरों की इन नज़रों में
    यादों की नजरों को नजर याद आता गया

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