वो परिंदा उड़ नहीं पा रहा था
दौड़े जा रहा था दौड़े जा रहा था।
अचानक पंख फैले और ठहर गया
थक गया वो, अब मरा वो अब मरा।
कभी चोंच राह की गर्द में दब जाती
कभी थके पाँव लड़खड़ाते
कंकड़ पत्थर की राहों से चोट खाकर
खून से लथपथ परिंदा अब ठहर गया।
इतने में शिकारियों ने उसे घेर लिया
"मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"
तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
परिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।
By : "रोहित"
दौड़े जा रहा था दौड़े जा रहा था।
अचानक पंख फैले और ठहर गया
थक गया वो, अब मरा वो अब मरा।
कभी चोंच राह की गर्द में दब जाती
कभी थके पाँव लड़खड़ाते
खून से लथपथ परिंदा अब ठहर गया।
इतने में शिकारियों ने उसे घेर लिया
"मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"
तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
परिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।
By : "रोहित"
वाह गुढ चिँतन
ReplyDeleteवाह रोहित भाई वाह ये पंक्ति बेहद खूबसूरत, असरदार और गजब की है बधाई मित्रवर बधाई
ReplyDelete"मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"
तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
ReplyDeleteपरिंदे ने पहली उठान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,बधाई,,,
recent post: वह सुनयना थी,
गहन भाव.....
ReplyDeleteअच्छी रचना.
परिंदे ने पहली "उठान" भरी...यहाँ "उड़ान" कर लीजिए.और दोडे को दौड़े करें..
अच्छी रचना में टंकण त्रुटियाँ अखरती हैं.
अनु
Thank You Anu ji ...
Deleteyun hi har galtiyon par tokte rahiyega ... apne pan ka bhav ghalkta hai..
: )
शुभकामनायें-
ReplyDeleteप्रभावी प्रस्तुति|
बहुत प्रभावशाली रचना..इसे पढ़ते ही उसी घटना की तरफ ध्यान चला गया...पंछी उड़ ही चुका है..
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति...सुंदर रचना !!
ReplyDeleteतभी सर्द फिजां में गजब हो गया
ReplyDeleteपरिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।
फिर भी उन्हें शर्म न आई !
अच्छी कृति !
बेहद सशक्त रूपकात्मक अभिव्यक्ति अपने वक्त को ललकारती फुंफकारती सी .
ReplyDeleteSundar Rachna...Badhai sweekarey..
ReplyDeleteवाह ................कमाल का चिंतन
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने .सार्थक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .
ReplyDeleteगहन भाव लिए रचना...
ReplyDeletejo paristitiyan hame mar n saken ...par pane me gazab ka hausla deti hain...badhiya..
ReplyDeleteहौसला बुलंद होना चाहिए...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना Rohitas !!!:)
तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
ReplyDeleteपरिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।
...वाह! गहन भाव लिए सुन्दर रचना...
lajawab rachanaa ji
ReplyDeleteआस और जीवट कीसकारात्मक सोच की जोश की रचना .
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteखून के छींटे तो लगना ही था.- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteतभी सर्द फिजां में गजब हो गया
ReplyDeleteपरिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।
...सम्वेदनहीन होती मानवता को जगाने का यह एक प्रयास हो सकता है ..
मार्मिक प्रस्तुति ..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
ReplyDeleteदेखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"
क्या कहूं ? निशब्द हूँ !