![]() | |
from Google image |
प्यार की नियत, सोच, नज़र सब हराम हुई
इसी सबब से कोई अबला कितनी बद्नाम हुई.
इंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई
नहीं,तेरा पलट के देखना, तेरा पुकारना बरमल्ला
अपनी मोहब्बत तो तेरे चले जाने से आम हुई
बढ़ी हुई दूरियां मोहब्बतों में तब्दील हो गयी
बच्चपन तो बच्चपन था जवानियाँ नीलाम हुई
सब थे उसकी मौत पर आये हुए जो दिन में मरी
न था तो कोई उस मौत पर जो उसे हर शाम हुई.
"रोहित"
zjbat zjbat zjbat
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.10.2014) को "उपासना में वासना" (चर्चा अंक-1762)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार वीर जी
Deleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteअति सुंदर ।
ReplyDeleteइंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब, वफ़ा, नशा
ReplyDeleteउसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई------ वाह !!! प्रेम की सुंदर और कोमल गजलनुमा रचना --
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
सुंदर !
ReplyDeleteसुंदर गजल....
ReplyDeleteवाह.... बहुत उम्दा ग़ज़ल ....
ReplyDeleteItna sab paane ki koshish wo bhi sareaam .. Maare jaayenge :) bahut hi lajawaab bhivyakti aanand aaa gya pdhke beshk !!
ReplyDeleteमारे जायेंगे नहीं मारे गये कहो :) :)
Delete
ReplyDeleteबढ़ी हुई दूरियां मोहब्बतों में तब्दील हो गयी
बच्चपन तो बच्चपन था जवानियाँ नीलाम हुई
बचपन तो बचपन था सुन्दर प्रयोग
बहुत सुंदर गजल.रोहित जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।मेरे पोस्ट पर आप आमंश्रित हैं।!
ReplyDeletebahut khoob ....
ReplyDelete'न था तो कोई उस मौत पर जो उसे हर शाम हुई.''.......जो शायद इस मौत से भी कई गुना तकलीफ़देह थी !!!!!
ReplyDeleteदर्पण सरीखी रचना !
आपने बहुत खुब लिख हैँ। आज मैँ भी अपने मन की आवाज शब्दो मेँ बाँधने का प्रयास किया प्लिज यहाँ आकर अपनी राय देकर मेरा होसला बढाये
ReplyDeletewah umda .....
ReplyDeleteवाह ! बहुत उम्दा ग़ज़ल !
ReplyDeleteसाजन नखलिस्तान
शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह गजल रची है आपने।
ReplyDeleteआभार आपका भाई जी-
ReplyDeleteबढ़िया रचना-सुन्दर भाव-
बधाइयां-
मैं कुछ ना कह सकी
ReplyDeleteशब्द उचित मिल न सके
बहुत खूब ... उम्दा शेर हैं सभी इस ग़ज़ल के ...
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबेहतरीन
सब थे उसकी मौत पर आये हुए जो दिन में मरी
ReplyDeleteन था तो कोई उस मौत पर जो उसे हर शाम हुई.
....वाह...लाज़वाब अहसास...
नहीं,तेरा पलट के देखना, तेरा पुकारना बरमल्ला
ReplyDeleteअपनी मोहब्बत तो तेरे चले जाने से आम हुई
..बहुत खूब .
बहुत ही शानदार और भावपूर्णं रचना। दिल में गहरी उतर गई यह रचना। अच्छे लेखन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!लाजवाब ग़ज़ल !!
ReplyDeleteउम्दा लेखन रोहितास जी...
ReplyDeleteमृम को छूती गजल ।
ReplyDeleteबेहतरीन ।
मृम को छूती उम्दा गजल।
ReplyDeleteबेहतरीन।
एक उम्दा ग़ज़ल बहुत दिनों बाद पढ़ी। दिल तक सीधे रास्ता बना लेने वाली पंक्तियां।
ReplyDeleteसादर
लाजवाब गजल...
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक शेर....
वाह!!!!
नहीं,तेरा पलट के देखना, तेरा पुकारना बरमल्ला
अपनी मोहब्बत तो तेरे चले जाने से आम हुई
वाहवाह...
नहीं,तेरा पलट के देखना, तेरा पुकारना बरमल्ला
ReplyDeleteअपनी मोहब्बत तो तेरे चले जाने से आम हुई
सब थे उसकी मौत पर आये हुए जो दिन में मरी
न था तो कोई उस मौत पर जो उसे हर शाम हुई.- बहुत ही लाजवाब अशार| सभी अपनी कहानी आप कह रहे हैं | उम्दा लेखन प्रिय रोहिताश जी | इस मंच के उम्दा गजलकारों में एक और से परिचय मेरा सौभाग्य !!आपको मेरे हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |
बेहतरीन रचना....बहुत बहुत बधाई
ReplyDelete