लेन-देन की किताब ना रख।
सामने समन्दर है तो! लेकिन पानी-पानी
प्यासे के काम न आये ऐसा आब ना रख।
ये सज़ा जो तूने पाई है, खैरात में बाँट
तेजाब से जले चहरे पर नकाब ना रख
होगी किसी मजबूरी के तहत बेवाफईयाँ
तेजाब से जले चहरे पर नकाब ना रख
होगी किसी मजबूरी के तहत बेवाफईयाँ
तू उसे सोचते वक्त नियत खराब ना रख
हर शाम वो अंदर से निकल कर सामने बैठती है
हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख
अभी थी वो यहाँ,यहाँ नहीं है अब; वहां है क्या वहाँ है?
अब तो गुजर चूका हूँ मै ए सहरा अब तो सराब ना रख
By
"रोहित"
बाब =संबंध, सराब = मरीचिका
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-05-2017) को " बेवकूफ होशियारों में शामिल" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह्ह्ह...रोहित जी...शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने।
ReplyDeleteहर शेर अपने में नायाब़ है।
मददगार है तो हिसाब ना रख
लेन-देन की किताब ना रख।
बहुत खूब👌👌
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा
ReplyDeleteये सज़ा जो तूने पाई है, खैरात में बाँट
ReplyDeleteतेजाब से जले चहरे पर नकाब ना रख
जबरदस्त शेर !
पूरी गज़ल ही खूबसूरत है पर ये विशेष पसंद आया। सादर।
वाह ! बेहद उम्दा गजल..
ReplyDeleteसामने समन्दर है तो! लेकिन पानी-पानी
ReplyDeleteप्यासे के काम न आये ऐसा आब ना रख।
.....बेहद उम्दा रोहित जी
नसीहत देती सुंदर गजल हर शेर बेमिसाल।
ReplyDeleteनेकी कर दरिया मे डाल वाले भावों को अलग से ख्याल दिये।
हर शेर उम्दा, सुंदर गजल।
ReplyDeleteनयाब गजल..
ReplyDeleteलाजवाब गजल...
ReplyDeleteएक से बढकर एक शेर
वाह!!!
निमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
वाह ... लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ... दूर की बात कह गए हैं ...
ReplyDeleteमददगार है तो हिसाब ना रख
ReplyDeleteलेन-देन की किताब ना रख।
बेहतरीन......, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
रोहिताश जी आपको पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteसुंदर रचनायें
वाह बेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल प्रस्तुत की है आपने
ReplyDeleteबहुत खूब रोहिताश! बशीर बद्र का एक शेर याद आ गया -
ReplyDeleteकुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूँ कोई बेवफ़ा, नहीं होता.
बहुत खूब रोहिताश! बशीर बद्र का एक शेर याद आ गया -
ReplyDeleteकुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूँ कोई बेवफ़ा, नहीं होता.
सामने समन्दर है तो! लेकिन पानी-पानी
ReplyDeleteप्यासे के काम न आये ऐसा आब ना रख।
अच्छा शेर, बधाई.
मददगार है तो हिसाब ना रख
ReplyDeleteलेन-देन की किताब ना रख।
वाह
सभी शेर लाजवाब हैं. 👌👌
मददगार है तो हिसाब ना रख
ReplyDeleteलेन-देन की किताब ना रख।
बेहतरीन......खूबसूरत ग़ज़ल