Friday, 18 May 2018

हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)




 मददगार है तो हिसाब ना रख
लेन-देन की  किताब  ना  रख।

सामने समन्दर है तो! लेकिन पानी-पानी
प्यासे के काम न आये ऐसा आब ना रख।

ये सज़ा जो तूने पाई है, खैरात में बाँट
तेजाब से जले चहरे पर नकाब ना रख

होगी किसी मजबूरी के तहत बेवाफईयाँ 
तू उसे सोचते वक्त नियत खराब ना रख 

हर शाम वो अंदर से निकल कर सामने बैठती है 
हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख 

अभी थी वो यहाँ,यहाँ नहीं है अब; वहां है क्या वहाँ है?
अब तो गुजर चूका हूँ मै ए सहरा अब तो सराब ना रख 
     



       By
       "रोहित"

बाब =संबंध,  सराब = मरीचिका





23 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-05-2017) को " बेवकूफ होशियारों में शामिल" (चर्चा अंक-2965) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह्ह्ह...रोहित जी...शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने।
    हर शेर अपने में नायाब़ है।

    मददगार है तो हिसाब ना रख
    लेन-देन की किताब ना रख।

    बहुत खूब👌👌






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  3. बहुत सुंदर लिखा

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  4. ये सज़ा जो तूने पाई है, खैरात में बाँट
    तेजाब से जले चहरे पर नकाब ना रख
    जबरदस्त शेर !
    पूरी गज़ल ही खूबसूरत है पर ये विशेष पसंद आया। सादर।

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  5. वाह ! बेहद उम्दा गजल..

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  6. सामने समन्दर है तो! लेकिन पानी-पानी
    प्यासे के काम न आये ऐसा आब ना रख।
    .....बेहद उम्दा रोहित जी

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  7. नसीहत देती सुंदर गजल हर शेर बेमिसाल।
    नेकी कर दरिया मे डाल वाले भावों को अलग से ख्याल दिये।

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  8. हर शेर उम्दा, सुंदर गजल।

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  9. लाजवाब गजल...
    एक से बढकर एक शेर
    वाह!!!

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  10. निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  11. वाह ... लाजवाब शेर हैं ग़ज़ल के ... दूर की बात कह गए हैं ...

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  12. मददगार है तो हिसाब ना रख
    लेन-देन की किताब ना रख।
    बेहतरीन......, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।

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  13. रोहिताश जी आपको पढ़कर अच्छा लगा
    सुंदर रचनायें

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  14. वाह बेहतरीन गज़ल

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  15. बहुत सुन्दर गजल प्रस्तुत की है आपने

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  16. बहुत खूब रोहिताश! बशीर बद्र का एक शेर याद आ गया -
    कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
    यूँ कोई बेवफ़ा, नहीं होता.

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  17. बहुत खूब रोहिताश! बशीर बद्र का एक शेर याद आ गया -
    कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
    यूँ कोई बेवफ़ा, नहीं होता.

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  18. सामने समन्दर है तो! लेकिन पानी-पानी
    प्यासे के काम न आये ऐसा आब ना रख।
    अच्छा शेर, बधाई.

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  19. मददगार है तो हिसाब ना रख
    लेन-देन की किताब ना रख।
    वाह
    सभी शेर लाजवाब हैं. 👌👌

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  20. मददगार है तो हिसाब ना रख
    लेन-देन की किताब ना रख।
    बेहतरीन......खूबसूरत ग़ज़ल

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