Saturday, 11 August 2018

सकूँ की तलाश में

इस पिजरे में कितना सकूँ है
बाहर तो मुरझाए फूल बिक रहे है
कोई ले रहा गंध बनावटी
भागमभाग है व्यर्थ ही
एक जाल है;मायाजाल है
घर से बंधन तक
बंधन से घर तक
स्वतंत्रता का अहसास मात्र लिए
कभी कह ना हुआ गुलाम हैं
गुलामी की यही पहचान है।
मर रहे रोज कुछ कहने में जी रहे
सब फंसे हैं
सब चक्र में पड़े हैं

अंदर आने का रास्ता बड़ा आसां है
मैं तो आया था एक किरण के ताकुब में
तम्मना हुई कि पकड़ लूं
कि जान लूं स्पंदन उसका
न सका छू तो क्या
जिस जगह वो छुपी है वहां
अहसास मगर वास्तविक है
रोना भी,प्यार भी,मजा भी
हंसी भी किसी बच्ची सी है
ईर्ष्या भी बड़ी सच्ची है
और कोई जुआ नहीं
एक दिन मिल पाऊंगा उससे
ये भी निश्चित है
फिर देखना है
अंदर ही अंदर कौन किसको खींचेगा
एक निराकार और एक कफ़स
बड़े आराम से हैं।

-रोहित

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन ।

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  2. बहुत खूब ... गहरी बात है ...

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डॉ॰ विक्रम साराभाई को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. पल बेशकीमती सकूँ की तलाश में खोता है
    कफ़स में उलझा मन यूँ कम नहीं रोता है

    रोहित जी , मंथन को प्रेरित करती, गहन विचारों को अभिव्यक्त करती आपकी रचना उलझा गयी।

    सादर
    आभार।

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  5. बहुत गहरी बात..जहाँ सच है सुकून वहीं है..प्रेम भी सच्चा हो और ईर्ष्या भी सच्ची तो बात एक दिन बन जाती है

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  6. बहुत ही सुंदर sir आगाज़ ही दिल को छू गया।

    बाहर तो मुरझाए फूल बिक रहे है
    कोई ले रहा गंध बनावटी

    बहुत कम लोग ही समझ और कह पाते हैं।
    बहुत बहुत बधाई आपको

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  7. काश की हमें भी पद्य की समझ होती |

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  8. वाह क्या बात

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  9. वाह बहुत खूब

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  10. इस पिजरे में कितना सकूँ है
    बाहर तो मुरझाए फूल बिक रहे है
    कोई ले रहा गंध बनावटी--
    बहुत खूब आदरणीय रोहित जी --
    बहुत ही हृदयस्पर्शी शुरुआत है | सचमुच बाहर की दुनिया बनावटी हो तो पिजरें में बसर करना ही बेहतर | आखिर खुशियों को आना होता है तो वो पिजरें के रास्ते भी नहीं रुकती |

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  11. रोहित जी पहले भी कई बार आपके ब्लॉग पर आई और लिखा भी पर सभी पोस्ट देख लिए मेरे टिप्पणी नजर नहीं आती | कृपया इस विल्कप को आसान बनाएं |

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    1. आपकी कॉमेंट दिखने में थोड़ा वक्त इसलिए लगता है क्योंकि पहले कॉमेंट अप्रूवल करनी पड़ती है।
      तो आप चिंता ना करें।
      इसको जल्द ही सुधार लिया जाएगा।

      😊

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  12. वाह बेहतरीन रचना

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  14. वाह बेहतरीन रचना

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  15. गहरे भाव व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, रोहितास जी।

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  16. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

    एक दिन मिल पाऊंगा उससे
    ये भी निश्चित है
    फिर देखना है
    अंदर ही अंदर कौन किसको खींचेगा
    एक निराकार और एक कफ़स
    बड़े आराम से हैं।

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  17. निमंत्रण विशेष :

    हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

    यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !

    'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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