वो खेतों में
अपनी फसल को
दिन-रात की लगन से
अपने पसीने से सिंचता हुआ
बड़ी मेहनत कर
पालता हैं ..
इस बार और हर बार
बस यही सब दोहराना
जैसे उसकी आदत सी बन गयी हो
पर इस मेहनत के बावजूद भी
वो कभी अपने हालात सुधार नहीं पाता
बाज़ार ये काम बख़ूबी करता है
उसकी मेहनत मन्दी की
भेंट चढ़ जाती है, और
मेहनताना महंगाई की
इस तरह ये बाज़ार
भूख को भूख बेच देता है।
ये सियासी जाल हैं ,
इसी सबब से
कोई केवल पांच सालों में
ये मंत्री अपनी खुद की तक़दीर बदल लेता हैं
रहने को घर,चलने को कार खरीद लेता हैं।
तो इस तरह ये देश
कृषि प्रधान बनता हैं।
By
-रोहित
अपनी फसल को
दिन-रात की लगन से
अपने पसीने से सिंचता हुआ
बड़ी मेहनत कर
पालता हैं ..
इस बार और हर बार
बस यही सब दोहराना
जैसे उसकी आदत सी बन गयी हो
पर इस मेहनत के बावजूद भी
वो कभी अपने हालात सुधार नहीं पाता
बाज़ार ये काम बख़ूबी करता है
उसकी मेहनत मन्दी की
भेंट चढ़ जाती है, और
मेहनताना महंगाई की
इस तरह ये बाज़ार
भूख को भूख बेच देता है।
ये सियासी जाल हैं ,
इसी सबब से
कोई केवल पांच सालों में
ये मंत्री अपनी खुद की तक़दीर बदल लेता हैं
रहने को घर,चलने को कार खरीद लेता हैं।
तो इस तरह ये देश
कृषि प्रधान बनता हैं।
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-रोहित
जिस देश में किसान सुखी नहीं वह देश आगे नहीं बढ़ सकता..अन्नदाता सुखी भवः का मंत्र सदा याद रखना होगा..
ReplyDeleteकोई केवल पांच सालों में
ReplyDeleteये मंत्री अपनी खुद की तक़दीर बदल लेता हैं
रहने को घर,चलने को कार खरीद लेता हैं। भावपूर्ण पंक्तियाँ,,
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बढ़िया कटाक्ष....
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति....
अनु
बहुत अटीक अभिव्यक्ति..
ReplyDeletesadiyon se isi sthiti ka samna karta aa rha hai Bharat ka bechara kisaan.
ReplyDeleteसत्य के करीब ... किसान की दशा का हु बहु विवरण ... बहुत बढ़िया बधाई .. सादर
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सोच और बहुत अच्छी कविता !
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