एकांत में बैठा
सुन्न शरीर और
खुली आँखों से भी
दिन की चहल पहल और
रात के तारे भी
नजर नहीं आते.
ख्याल में डूबा है
कोई रंगरूट कि
क्यों जान लेती है
सीमा पार से
आई गोलियां
हर रोज होता है
उल्लंगन
और बनता है तमासा
अपनों की मोत का
अभ्यास में भरे
जज्बे जोश को क्यों
बेकद्री में रखा गया
क्यों लगता है जैसे
बैठें हों अपने ही घर में दुबक कर
और मुन्तजिर हो अपनी मौत का.
गरमा जाती है सियासत
चंद दिनों के लिए, मगर
रंगरूटों के
हिम्मती हौसलों और जज्बातों पर
बेख्याली के पर्दे डले है
उस पार
मखौल बना है हमारा
कमजोर और बुझदिली का
तभी तो हिम्मत हैं उनमे कुकृत्य की
ये दस्तक ही है ऐसी मौतों की
चंद परिवारों के अलावा
किसको फर्क पड़ेगा।
By :-
रोहित
रंगरूट = नए सैनिक मुन्तजिर = प्रतीक्षित
सुन्न शरीर और
खुली आँखों से भी
दिन की चहल पहल और
रात के तारे भी
नजर नहीं आते.
ख्याल में डूबा है
कोई रंगरूट कि
क्यों जान लेती है
सीमा पार से
आई गोलियां
हर रोज होता है
उल्लंगन
और बनता है तमासा
अपनों की मोत का
अभ्यास में भरे
जज्बे जोश को क्यों
बेकद्री में रखा गया
क्यों लगता है जैसे
बैठें हों अपने ही घर में दुबक कर
और मुन्तजिर हो अपनी मौत का.
गरमा जाती है सियासत
चंद दिनों के लिए, मगर
रंगरूटों के
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हिम्मती हौसलों और जज्बातों पर
बेख्याली के पर्दे डले है
उस पार
मखौल बना है हमारा
कमजोर और बुझदिली का
तभी तो हिम्मत हैं उनमे कुकृत्य की
ये दस्तक ही है ऐसी मौतों की
चंद परिवारों के अलावा
किसको फर्क पड़ेगा।
By :-
रोहित
रंगरूट = नए सैनिक मुन्तजिर = प्रतीक्षित
अच्छी रचना।
ReplyDeleteचित्र सब कुछ बोल रहे हैं।
उस पार
ReplyDeleteमखौल बना है हमारा
कमजोर और बुझदिली का
तभी तो हिम्मत हैं उनमे कुकृत्य की
ये दस्तक ही है ऐसी मौतों की
चंद परिवारों के अलावा
किसको फर्क पड़ेगा।
कटु यथार्थ ,मार्मिक प्रसंग।
ReplyDeleteउस पार
मखौल बना है हमारा
कमजोर और बुझदिली का
तभी तो हिम्मत हैं उनमे कुकृत्य की
यूं सरे आम कहना सच को ,सच मान लो जुर्म है इस बे -दिल व्यवस्था में।
सच बयाँ करती रचना !!
ReplyDeleteवाह... बेहतरीन..
ReplyDeleteमार्मिक रचना..
ReplyDeleteदेशप्रेम का जज्बा लिए सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक मंगलकामना
देशप्रेम का जज्बा लिए सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteI blog often and I truly thank you for your content. This great article has truly peaked my interest.
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सत्य कभी-कभी कठोर होते हैं,राजनीति और देशभक्ति दो विपरीत दिशाएं है हलांकि साथ-साथ भी चलना होता है आज के परिद्रुश्य में.
ReplyDeleteसंवेदनशील बात उठाई है। वाकई फर्क प्रकट झेलनेवालों के अलावा किस को पड़ता है।
ReplyDeleteगहरे भाव ... सच है किसी को फर्क नहीं पड़ता सिवाए उनके जो भोगते हैं ...
ReplyDeleteGazab!
ReplyDeleteSahaj Baat, jhakjhortee samvedna aur rekhankit kartee ek aisee bebasee jo dikhaaee nahin detee.
aur ek atirikt dukh, is baat ka, ki nahin kar paatee vah bhee
jo kar sakte hain
jiske liye taiyyar hain
par ummeed hai ab hogee naee baat
jagega jajba, ham sab hain saath saath
Achchee aur saarthak aur mahatvpurn rachnaa
ke liye badhaaee
Ashok Vyas
शुभ संध्या रोहित
ReplyDeleteअच्छी रचना पढ़वाई आपने....
समझ पाने वाले को इशारा काफी है
और
आभारी हूँ
नयी पुरानी हलचल में आपने विस्तृत प्रतिक्रया हेतु
सागर भर दिया आपने.....
सादर....
Sundar bhav..satik tasweer
ReplyDeleteसुंदर रचना है रोहित जी, अच्छे भाव , सामयिक भी एवं यथार्थ परक भी । एक इल्तिजा है , वर्तनी को एक बार अवश्य जांच लें ॥
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteवाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
ReplyDeleteसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
चंद परिवारों के अलावा,
ReplyDeleteकिसको फर्क पड़ेगा।
अक्षरशः सत्य !
भावपूर्ण रचना ! बोलते हुए चित्र !
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसुन्दर ,....धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत सटीक और भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteSaarthak prastuti ke liye badhayi aapko....!!
ReplyDeletebahut sunder !
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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