Friday 14 February 2020

प्रार्थना

माना मैंने हर बात को क्रूर
बेढंग करके परोसा है
उसी कलम को विनती पर भी भरोसा है
ये कुछ ऐसा है जो समझ में आये
ये कुछ ऐसा है जो जहन में बसे
एक पक्षीय लिखने से पहले आपको सोचना पड़े-
कुछ ऐसा है क्यूंकि
हमारे मौसमों या ऋतुओं को
खेमों में बंट जाना पड़ता है
जिस किसी ने हर मौसम के अनुसार
अपना इंतजाम पुख्ता किया है
प्रार्थना है कि वो मौसम की खूबसूरती
का जिक्र अपनी बातों में ना छेड़े 
अलाव के साथ बैठकर
जो मजे से कह रहा था ठंड कड़ाके की है
कड़ाके शब्द को उसने नहीं जिया। 
जो नये साल पर कणकों में
आधी रात को पानी देता है
जिसके पैर जनवरी से जम गये हों
कस्सी की मार से पानी की बोछारें जब चहरे पर पडती है
और कभी क्यारी से टूटे पानी को रोकने के लिए
चादर की बुकल खोल देनी पडती है
तब होता है जनवरी व जिस्म का टकराव
और जिस्म की चटकनों की आवाज खेतों में गूंजती है
ऐसे आदमी को नहीं पता बार या कॉफ़ी हॉउसों में
बड़ी सी घड़ी में बीतने वाले साल के
आखिरी दस सेकंड का काम डाउन शुरू हो गया है
लोग साथ साथ में उलटी गिनती गिन रहे हैं
व शैम्पेन या व्हिस्की की बोछारें उछाली जाएगी
रंग बिरंगी रौशनी कोहरे में दब जाएगी
पटाखों की आवाज ठंडी रात को दहला देगी।
वो तो जमीन में खुदे चूल्हे पर चाय बनाएगा
दुआ करेगा
कि फसलों को पाला न मार जाये
उसकों नहीं मतलब कि बसंती फुल पीले होते हैं
वो ये जानने में व्यस्त है
कि सरसों की फलियों में दाना बना है या नहीं।

आप एयर कंडीशनर में बैठ कर अपने भाषणों में
इनकी मेहनत को 'मेहनत' नाम ना दें
जब तक कि आप को इसके असली मायने ना पता हो
खौलते कीचड़ में खाद देना
व तेज तपस में जब सब कोयला होने को हो
उसी में सफ़ेद बासमती कैसे पकता है
इसका आपको मात्र बातूनी ज्ञान है।

सावन की बरसातें बदन ठंडा करती हैं
जिस्मों को गिला करती है
मन में झूले पड़ते होंगे
लेकिन जब बरसातें रुके नहीं
तब कपासी फव्वों का जिस्म काले पड़ जाते है
और मेहनत पिंघलने लगती है
पेड़ों पर अंतकारी झूले पड़ते हैं
जिनकी सुर्खियां
चाय की चुस्कियों के साथ बासी हो जाती है

ये लोग मिलावट नहीं चाहते
जब उदासियाँ पनपती है तो भी
आपके साथ खिलखिलाते हैं
आपको चाहिए कि इन नकली हंसी को पहचाने
और मौन रहें
ताकि हौले से ये अपने मर्म को उजागर कर सकें
प्रार्थना है मौसम की खूबसूरती का कलमी बखान न करें
मौसमों को खेमों में ना बांटे,
अब हमें जरूरत है दूसरा व जमीनी रूप  जियें।
                               
               - रोहित 


19 comments:

  1. आपको चाहिए कि इन नकली हंसी को पहचाने
    और मौन रहें
    ताकि हौले से ये अपने मर्म को उजागर कर सकें

    सत्य कहा भाई जी आपने

    जब हम तपते हैं, तभी हमारी लेखनी प्रखर होती है क्यों कि हमें असली- नकली का भेद बखूबी समझ में आने लगता है।
    यही प्रार्थना हर प्रबुद्ध जनों से की जानी चाहिए कि वे मिलावट, बनावट और दिखावट से बचें..
    क्यों कि उन्हें समाज का आईना कहा जाता है।

    ReplyDelete
  2. यथार्थ चित्रण ... कहीं-कहीं रोंगटे खड़े हो गए
    सच्चाई क्रूर हो ही जाती है... बहुत खूब लेखनी चली है... आपकी कोई रचना जून अंक के लिए ले जाऊँगी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी धन्यवाद,
      जून अंक से मैं कुछ समझा नहीं।

      Delete
    2. "लेख्य-मंजूषा"(साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती पंजीकृत संस्था) पटना(बिहार) से "साहित्यिक स्पंदन"(त्रैमासिक) पत्रिका प्रकाशित होती है मार्च अंक प्रेस में है जून अंक के लिए मार्च से तैयारी

      विभा रानी श्रीवास्तव
      अध्यक्ष-संपादक

      Delete
  3. बहुत गहराई से महसूस किया है मौसम की तल्खियों को और बेबाकी से प्रस्तुत किया है, प्रभावशाली रचना !

    ReplyDelete
  4. वो तो जमीन में खुदे चूल्हे पर चाय बनाएगा
    दुआ करेगा
    कि फसलों को पाला न मार जाये
    उसकों नहीं मतलब कि बसंती फुल पीले होते हैं
    वो ये जानने में व्यस्त है
    कि सरसों की फलियों में दाना बना है या नहीं। बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीय

    ReplyDelete
  5. भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति
    बधाई

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीय रोहितास जी।

    ReplyDelete
  7. और कभी क्यारी से टूटे पानी को रोकने के लिए
    चादर की बुकल खोल देनी पडती है
    तब होता है जनवरी व जिस्म का टकराव
    और जिस्म की चटकनों की आवाज खेतों में गूंजती है
    ऐसे आदमी को नहीं पता बार या कॉफ़ी हॉउसों में
    बड़ी सी घड़ी में बीतने वाले साल के
    आखिरी दस सेकंड का काम डाउन शुरू हो गया है...
    सत्य कथन....निशब्द हूँ...रचना का मर्म रुह को भिगो गया ।

    ReplyDelete
  8. नई सोच की, नए ढंग की, विचारोत्तेजक कविता है तुम्हारी रोहतास !
    सैम्पिन की जगह शैम्पेन कर लो और एयर कन्डीस्नर के स्थान पर एयर कंडीशनर कर लो.

    ReplyDelete
    Replies
    1. कर लिया है।
      यूँ गलतियों पर टोकते रहिएगा।

      बहुत बहुत आभार। 🙏

      Delete
    2. पोस्ट करने से पहले अपनी रचना को ख़ुद दो बार चेक कर लिया करो. और पोस्ट करने के बाद भी अगर कोई ग़लती दिखाई दे और या कोई और बताए तो उसे तुरंत ठीक कर लिया करो. मेरी तो ग़लती चाहे मुझे ख़ुद दिखाई दे या फिर कोई और उसे बताए, मैं उसे तत्क्षण ठीक कर लेता हूँ.

      Delete
  9. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,बेहतरीन अभिव्यक्ति ,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  10. सार्थक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  11. वाह।बेहतरीन और सराहनीय प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  12. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  13. रोहितास भाई,एयर कंडीशन में बैठ कर मेहनतकश लोगो पर बात करना और ओर प्रत्यक्ष मेहनत करना इसमें बहुत फर्क होता हैं। बहुत ही सुंदर और सटीक रचना।

    ReplyDelete
  14. hmm..sachhayi byaan krti rchnaaa

    man ki udhed bun jo chali rehati chaaro aur ..aapne swaar ke liye di

    bdhaayi

    ReplyDelete
  15. बहुत खूब प्रिय रोहित | ये रचना छद्म रचनाकारों को आइना दिखाती प्रतीत होती है |वातानुकूलित इमारतों में बैठकर कहाँ कोई किसी का दर्द महसूस कर सकता है |उनकी नकली प्रार्थना पर ये असली निवेदन बहुत हावी है | कथित उदास लोग जो खिलखिलाते हैं- दिखावे के लिए नकली हंसी हँसते हैं . उनका दर्द पहचानना महत्वपूर्ण है | अन्नदाता धरतीपुत्र किसान को क्या मतलब कि फूलों का रंग क्या है | सरसों के फूल नीले होते तो भी उसकी नजर तो उसके अधपके दानों पर ही रहती है| प्राकृतिक आपदा में फंसे किसान की वेदना को कौन कलम लिखने में सक्षम है | मन के कातर भावों से रची रचना के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं | कलम का ये सफ़र जारी रहे | हार्दिक स्नेह के साथ --

    ReplyDelete