एक रास्ते के किनारे पर एक घना सा पेड़ है, उस पेड़ पर बसी पक्षियों की एक बस्ती है। जितना घना वो पेड़ उतनी घनी वो बस्ती हैं। बड़ी ही सुन्दर व दिलेफ़रोज़।
इस सर्दी की वो काली रात जिस रात को किसी की बरात गुजरी उस पेड़ के नीचे से और बराती अपनी धुन में DJ पर मस्त नाच रहे थे और रह-रह कर पटाखे भी फोड़ रहे थे।
पर पेड़ पर रहने वाले पक्षियों को इस शौरगुल की आदत थी ही नहीं। परिंदों के बच्चे डर के मारे दुबक गये प्रत्येक पटाखे की आवाज पर चीख निकल रही थी, पंख फड़-फड़ा रहे थे,न ही वो उड़ पा रहे थे और न सो पा रहे थे। उनकी आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी। अब बरात वहां से चली गयी लेकिन परिंदों ने वो सारी रात जाग कर गुजारी और अब सूरज निकलने में अभी 2 या 3 घंटे बाकी थे .. बेचारे पक्षियों को तनाव व थकान की वजह से झपकी लग गयी। अब चूँकि थकान व देर से सोने वाले को नींद गहरी आती है तो पक्षियों का भी शायद अब देर से जगना होगा। मगर ये क्या एक भूखे बिल्ले ने अपना दांव खेला और उस पेड़ पर चढ़ कर नींद में डूबी बस्ती पर हमला बोल दिया.
" सारी की सारी बस्ती उजड़ गई थी। रात को फड़-फड़ाने वाले पंख कुछ जमीं पर फैले पड़े थे कुछ अभी हवा में थे। सन्नाटा पसरा पड़ा था। लेकिन पेड़ की टहनियों से टपकती लहू की बूंदों की आवाज के आगे उन पटाखों की आवाज बड़ी तुच्छ जान पड़ रही थी। किसी की खुशियाँ किसी की जान पर बन आई थी। बसी बसाई बस्तियों के उजड़ने के अंजाम पर किसी की बस्ती बस चुकी थी। "
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~* रोहित *~
इस सर्दी की वो काली रात जिस रात को किसी की बरात गुजरी उस पेड़ के नीचे से और बराती अपनी धुन में DJ पर मस्त नाच रहे थे और रह-रह कर पटाखे भी फोड़ रहे थे।
पर पेड़ पर रहने वाले पक्षियों को इस शौरगुल की आदत थी ही नहीं। परिंदों के बच्चे डर के मारे दुबक गये प्रत्येक पटाखे की आवाज पर चीख निकल रही थी, पंख फड़-फड़ा रहे थे,न ही वो उड़ पा रहे थे और न सो पा रहे थे। उनकी आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी। अब बरात वहां से चली गयी लेकिन परिंदों ने वो सारी रात जाग कर गुजारी और अब सूरज निकलने में अभी 2 या 3 घंटे बाकी थे .. बेचारे पक्षियों को तनाव व थकान की वजह से झपकी लग गयी। अब चूँकि थकान व देर से सोने वाले को नींद गहरी आती है तो पक्षियों का भी शायद अब देर से जगना होगा। मगर ये क्या एक भूखे बिल्ले ने अपना दांव खेला और उस पेड़ पर चढ़ कर नींद में डूबी बस्ती पर हमला बोल दिया.
" सारी की सारी बस्ती उजड़ गई थी। रात को फड़-फड़ाने वाले पंख कुछ जमीं पर फैले पड़े थे कुछ अभी हवा में थे। सन्नाटा पसरा पड़ा था। लेकिन पेड़ की टहनियों से टपकती लहू की बूंदों की आवाज के आगे उन पटाखों की आवाज बड़ी तुच्छ जान पड़ रही थी। किसी की खुशियाँ किसी की जान पर बन आई थी। बसी बसाई बस्तियों के उजड़ने के अंजाम पर किसी की बस्ती बस चुकी थी। "
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~* रोहित *~
( " ये मेरी पहली कहानी हैं .. आपको ये कैसी लगी और ये भी बताईयेगा की मैं कहानी लिखने के लायक हूँ की नहीं " )
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे
ReplyDeleteपक्षी .लटके थे पेड़ से और कई घोंसले भी थे ........एक दिन गुजरी बारात उस बस्ती से .गए रात थे बाराती पूरी मस्ती में ....यहीं छोड़ी गई बे -तहाशा आतिशबाजी झूमते हुए शराब की मस्ती में
....बस
इसी शैली में कहानी कथा लघु आगे जाए जिसमें घटना होती है विवरण नहीं .,सन्देश होता है जैसा इस लघु कथा में है .
दिवाली की रात यह बदसुलूकी पूरे जीव जगत के साथ सलीके से होती है .गली के कुत्ते अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं .मैं यहाँ मुंबई के कोलाबा के एक ऐसे इलाके में रहता हूँ जहां पेड़ों का घना झुरमुट है
यह पश्चिमी नेवल कमान का मुख्यालय है नोफ्रा (NOFRA बोले तो नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़ि-डेंसी -यल एरिया ).यहाँ कौवों का हर शाख पे डेरा है .दिवाली के दो रोज़ पहले से ही रात को
पटाखों का शोर रहने लगा .दिवाली की रात देर आधी रात तक और बाद इसके भी कई रोज़ तक ऐसा होता रहा .
बेचारे कौवे सुबह का कलरव कई दिन भूले रहे उस रात उनमें आपस में बातचीत नहीं हुई .एक गफलत पसरी रही पेड़ों पर .
पक्षियों की अपचयन दर (Metabolic rates ) बहुत ज्यादा होती है पर्यावरण की नव्ज़ की हरारत और सेहत ये सबसे पहले भांपते हैं .पर्यावरण के गंधाने की पहली आहट के साथ ही यह बस्ती से
उड़ जातें हैं -चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना ,तूने तिनका तिनका करके नगरी एक बसाई थी ........खत्म हुए दिन उस डाली के जिसपे तेरा बसेरा था ........तेरी किस्मत में लिख्खा था
जीते जी मर जाना ....
एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :
वाह ,,, बहुत उम्दा कहानी...बधाई एवं शुभकामनायें ...
ReplyDeleteबस लेखन में शब्दों की कसावट की जरूरत है ,,,
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
रोहित जी , बिल्कुल सही लिखा है आपने .. अब तो पंछियों के दिल से भी यही सदा निकलती होगी
ReplyDeleteआ अब लौट चलें कि यह देश हुआ बेगाना ...
(क्षमा चाहूंगी कि दो अलग अलग गानों को एक में मिला दिया ..पर बात पूरी होनी चाहिए बस)
umdaa nazar!!!
ReplyDeleteअविश्वनीय
ReplyDeleteमैं मान ही नहीं सकती कि आपकी यह पहली कहानी है
आपकी सोच में पर-पीड़ा झलकती है
आप अपनी इस रचना को मात्र चार बार पढ़िये...
रचना अपने-आप सुधर जाएगी
सादर
दिल को छू गई बधाई हो....
ReplyDeleteरोहित भाई सराहनीय प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें
ReplyDelete"करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात हि सिल पर होत निसान." रोहित जी इस्सके अलावा मे और कुछ नहीं कह सकता हू! सुन्दर सार्थक लघु कथा है! माँ वीणादायनी की सदा अनुकम्पा बनी रहे
ReplyDeleteथोड़े में ही अधिक कह रचना राख बहोर ।
ReplyDeleteलेखन लाख लख लख लह जनु किरन बिच अँजोर ।।
उम्दा लेखन.बधाई एवं शुभकामनायें
ReplyDeleteअच्छी लधु कहानी प्रस्तुत की है आपने..ऐसा अक्सर हो जाता है लोग अपनी खुशियों में दूसरों के कष्ट को नज़रअंदाज कर देते है...धन्यवाद
ReplyDeleteबढ़िया लगी आपकी लघु कथा
ReplyDeleteबहुत अच्छी लघु कथा .....संदेश देती हुई ....कृपया लिखते रहें ...शुभकामनायें ...
ReplyDeleteआपने अच्छी कहानी लिखी है जो उद्देश्यपूर्ण है और पर्यावरण तथा अन्य जीवों के लिये कल्याणकारी संदेश सदेती है .भाषा और शैली भी सराहनीय है (पहली कहानी है).
ReplyDeleteबेकार का विस्तार नही छोटी एवं प्रभावपूर्ण है.
बधाई! 1
संदेशपरक कहानी ...... सराहनीय प्रयास ।
ReplyDeleteकथा लेखक का संवेदनशील होना एक अनिवार्य शर्त है जो आपमें दिख रहा है। बाक़ी चीज़ें अभ्यास से आती रहेंगी।
ReplyDelete
ReplyDeleteअगिनी पाँख लग लग दह रयनी राख अँजोर ।
लिखनी लाख लख लख लह रचयित राख बहोर ।।
utam-***
ReplyDeleteसार्थक संदेश है एवं अच्छी पहल
ReplyDeleteसराहनीय प्रयास, बहुत अच्छा लेखन, जारी रखें... शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील।।
ReplyDeleteरोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
ReplyDeleteवीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए।
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
आपके स्पेम बोक्स में मेरी कमसे कम आठ नौ दस टिपण्णी होंगी कृपया उन्हें आज़ादी दें .आपकी सहज नित्य टिपण्णी हमारी ऊर्जा है .
ReplyDeleteयदि यह पहली कहानी है तो नि:संदेह कहूंगा कि
ReplyDeleteहोनहार बिरवान के होत चिकने पात
शैली के बारे में आदरणीय वीरेंद्र कुमार शर्मा जी ने राह दिखा दी है.
बहुत ही उम्दा प्रयास...
ReplyDeleteI think this is among the most significant information for me.
ReplyDeleteAnd i am glad reading your article. But should remark
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ReplyDeleteit I am sure.
वाह !कहानी भी ! अच्छा लिखा है | मार्मिक अभिव्यक्ति |
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