सालों पहल
तेरी याद की वो याद है मुझे
जिसमें, बैठकर मैकदे में
चुने की दिवार पे
गूगल से ली गयी |
ग्लास के कांच से
तेरा नाम कुरेद आया था
अगली शब को
उसी नाम के साथ
हज़ार बातें मनाने की की
फिर ग्लास छलका
फिर मनाने की की
आज फिर नहीं मानी
आज फिर छलकते जाम से नशा ना हुआ
तेरे खुदे हुए उस नाम के
हर अक्षर के
हर घुमाव को छूकर
महसूस करता हूँ कि
छू रहा हूँ तुम्हें
तेरे थोड़ेसे खुले लबों को
खेल रहा हूँ खुले बालों से
चुम रहा हूँ गर्दन को
पकड़ रखी है कमर
खिंच रहा हूँ आलिंगन को
और मन की आँखों से
दिखता है तेरा लावण्य
और कहता हूँ कल फिर आऊंगा
देखो कल मान ही जाना
यहां आने में बदनाम हो रहे हैं
और आज फिर आया हूँ
यही हुआ तो फिर कल भी आऊंगा।
रोहित
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-02-2018) को ) "होली के ये रंग" (चर्चा अंक-2895) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' जी की ७९ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteतेरे खुदे हुए उस नाम के
ReplyDeleteहर अक्षर के
हर घुमाव को छूकर...बहुत खूब
उदास मन के उतार चढ़ाव के भावोँ का सुन्दर काव्य चित्रण....।
ReplyDeleteसुन्दर काव्य रचना . गज़ब की अभिव्यक्ति. ब्लॉग का look बहुत अच्छा है . आप का ब्लॉग प्रेम कविताओं का अच्छा दस्तावेज़ है . शुभकामनाएं
ReplyDeleteसादर